SBI Loan Fraud: बैंक को रकम देने से बचने दूसरे शोरुम से बेची कार

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SBI Loan Fraud: बैंक ने क्रेडिट लिमिट बढ़ाने से कर दिया था इंकार, भौतिक सत्यापन में पाई गई थी गड़बड़ी

SBI Loan Fraud
भोपाल स्थित आर्थिक प्रकोष्ठ विंग मुख्यालय

भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में स्थित मैसर्स राजपाल आॅटो लिंक प्रायवेट लिमिटेड (MS Rajpal Indore Fraud Case) कंपनी और उसके डायरेक्टर के खिलाफ जालसाजी, गबन, दस्तावेजों की कूटरचना का गंभीर मुकदमा दर्ज किया गया है। यह आॅटो मोबाइल कंपनी फोर्ड कंपनी से जुड़ी कार की खरीद—बिक्री करती है। जिसके लिए कंपनी ने 12 करोड़ रुपए का लोन भारतीय स्टेट बैंक (SBI Loan Fraud) से ले रखा था। कंपनी ने लोन चुकाने की बजाय दूसरे रास्ते कारोबार जारी रखा। वहीं कंपनी दिवालिया घोषित करके लोन की रकम चुकाने से बचना चाहती थी। जब यह राज उजागर हुआ तो कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल भी पहुंच गई। जालसाजी (MP Bank Loan Fraud Case) का मुकदमा आर्थिक प्रकोष्ठ विंग की इंदौर (EOW Indore News) इकाई ने दर्ज किया है।

ऐसे शुरु हुई जालसाजी की सीढ़ी

इंदौर (Indore Cheating Case) की राजपाल कंपनी चार पहिया वाहनों का कारोबार करती है। इस कारोबार के लिए कंपनी ने भारतीय स्टेट बैंक एसएमई खेल प्रशाल ब्रांच से लोन (SBI Loan Cheating Case) लिया था। कंपनी के पास बैंक में 10 करोड़ रुपए की क्रेडिट लिमिट थी। इस लिमिट को बढ़ाने के लिए कंपनी ने आवेदन किया। जिसके बाद उसको बढ़ाकर 12 करोड़ कर दिया गया। यह निर्णय फरवरी, 2018 में लिया गया। इस व्यवस्था को ईडीएफएस लिमिट बोला जाता है। लेकिन, इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए कंपनी को बैंक के नियमों का पालन करना था।

यह थी बैंक की शर्त

कंपनी के डायरेक्टर बोर्ड में महेन्द्र राजपाल (Mahendra Rajpal), पत्नी नीता राजपाल (Neeta Rajpal) और बेटा सुमित राजपाल (Sumit Rajpal) थे। इन तीनों ने ही दो करोड़ रुपए लोन के लिए क्रेडिट लिमिट बढ़ाने आवेदन किया था। आवेदन के साथ बैंक की शर्त थी। जिसमें वाहनों की बिक्री की रकम उस खाते में जमा होनी थी जिससे लोन की राशि जारी की गई। शोरुम, यार्ड और बेचे गए वाहनों का स्टॉक रिपोर्ट देनो के अलावा अंतिम स्टॉक का हर महीने वैरीफिकेशन करना था। लेकिन, महेन्द्र राजपाल, नीता राजपाल और सुमित राजपाल ने लोन (MP Loan Scam) चुकाने से बचने के लिए साजिश रची।

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ऐसे किया गया फर्जीवाड़ा

SBI Loan Fraud
सांकेतिक चित्र

ईओडब्ल्यू (Indore EOW Hindi News) के अनुसार आरोपियों महेन्द्र राजपाल, नीता राजपाल और सुमित राजपाल ने अपनी कंपनी के फोर्ड वाहनों को रतलाम स्थित गैलेक्सी व्हीकल कंपनी के मालिक अब्बास मोईजअली (Abbas Moizali) के जरिए बेचा गया। इन वाहनों को बेचे जाने की जानकारी बैंक से छुपाई गई। जिसके प्रमाण फोर्ड कंपनी (Indore Ford Car Cheating Case) के वाहनों की सूची के अलावा आरटीओ से प्राप्त किए गए। जांच के बाद ईओडब्ल्यू ने राजपाल परिवार के अलावा रतलाम में गैलेक्सी व्हीकल कंपनी (Ratlam Galaxy Vehicle Company) के मालिक को भी आरोपी बनाया गया।

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फर्जीवाड़े के लिए डायरेक्टर बने

ईओडब्ल्यू ने बताया कि इस गड़बड़ी (Indore Diwaliya News) की शिकायत भारतीय स्टेट बैंक के चीफ मैनेजर अरुण सिंह (Arun Singh) ने की थी। जिसकी जांच में यह पता चला कि कंपनी को डायरेक्टर बोर्ड बनाने पर बैंक (SBI Loan Fraud) को सूचित करने अथवा अनुमति लेना अनिवार्य था। इसके बावजूद महेन्द्र राजपाल, नीता राजपाल और सुमित राजपाल ने जितेन्द्र भावसार (Jitendra Bhavsar) को डायरेक्टर बनाया। इस संबंध में भारतीय स्टेट बैंक को आरोपी राजपाल परिवार ने लेटर आॅफ अरेंजमेंट में दिया हुआ है। कंपनी दिवालिया हुई नहीं है वह बनने के लिए साजिश कर रही है।

इतना था लोन

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सांकेतिक चित्र

ईओडब्ल्यू ने बताया कि कंपनी का करीब 12 करोड़ रुपए का लोन था। जिसके लिए करीब तीन करोड़ की एफडीआर जमा थी। लोन नहीं चुका पाने की दशा में बैंक ने यह एफडीआर कैश करा ली। इसके बावजूद करीब 8 करोड़ रुपए के लोन की रिकवरी बची (SBI Loan Cheater News) थी। यह चुकाना न पड़े इसके लिए कंपनी अपना कारोबार यहां—वहां से कर रही है। कंपनी ने बैंक से लोन लेते वक्त खंडवा (Khandwa) और उज्जैन (Ujjain) के शोरुम बताए थे। जहां ताले लगे पाए गए। वहीं रिकॉर्ड में 123 वाहन दिखाए गए। जबकि भौतिक सत्यापन में वह दो ही मिले। जबकि 37 वाहन रतलाम से बेचे गए।

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यह कहा बचाव में

ईओडब्ल्यू को भारतीय स्टेट बैंक ने तमाम दस्तावेज सौंप दिए है। जिसके अध्ययन के बाद जालसाजी (SBI Loan Fraud) का मुकदमा 7 नवंबर को दर्ज कर लिया गया है। इसमें 7 कंपनी के डायरेक्टरों को आरोपी बनाया गया है। इसके अलावा अन्य भी आरोपी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राजपाल परिवार बैंक पर तथ्य छुपाने का आरोप लगा रहा है। उसका कहना है कि मामला लॉ ट्रिब्यूनल में चल रहा है। जहां आॅबिट्रेटर के सामने बैंक को अपना पक्ष रखना है। एक ही मामला दो अलग—अलग एजेंसियों में चलाया नहीं जा सकता। इस एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती देने का उन्होंने दावा किया है।

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