Bhopal Court News: फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने बेहद भावुक तरीके से रवीन्द्र नाथ टैगोर के वचनों को अपने सुनाए 104 पेज के फैसले में शामिल किया
जिला एवं सत्र न्यायालय, भोपाल — फाइल फोटो
भोपाल। बेटी जिसके जन्म के बाद भारतीय संस्कृति में दुलार और प्यार के साथ—साथ उसे सम्मान देकर पूजा जाता है। लेकिन, एक निर्मोही मां ने जन्म के एक महीने के भीतर ही उसकी जान ले लिया। यह प्रकरण भोपाल (Bhopal Court News) शहर के खजूरी सड़क थाना क्षेत्र का था। जिसमें भोपाल न्यायालय में सबूतों के साथ दलीले पेश की गई थी। अब इस प्रकरण में अदालत ने मां को दोषी मानते हुए उसे एक हजार रुपए अर्थदंड के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई। फैसले में अतुल सक्सेना 23वे अपर सत्र न्यायाधीश ने रवीन्द्र नाथ टैगोर के वचनों को भी शामिल किया। फैसला करीब 104 पेज में उन्होंने दिया है।
यह है घटना जिसने सभी लोगों को झकझोर दिया
भोपाल अदालत से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार आरोपी सरिता मेवाडा (Sarita Mewada) के खिलाफ खजूरी सड़क थाने में हत्या का प्रकरण दर्ज हुआ था। यह प्रकरण 16 सितंबर, 2020 को दर्ज किया गया था। जिसमें सरिता मेवाड़ा को दोषी करार देते हुए उसे आजीवन कारावास और एक हजार रुपए अर्थदण्ड से दण्डित किये जाने का निर्णय पारित किया गया। प्रकरण में विशेष लोक अभियोजक सुधाविजय सिंह भदौरिया की तरफ से दलीले पेश की गई थी। दोषी मां ने एक महीने पूर्व जन्मी किंजल (Kinjal) की पानी की टंकी में डालकर उसकी हत्या कर दी थी। उस वक्त घर पर कोई व्यक्ति नहीं था। कमरे के अंदर जाने के दो दरवाजे थे। जिसमें से एक बंद था वहीं दूसरे दरवाजे पर सरिता मेवाड़ा ही आना—जाना कर सकती थी। अदालत में उसके पति सचिन मेवाडा (Sachin Mewada) ने बताया कि उसने पत्नी से पूछा तो वह रोने लगी। उसने ही अपनी लडकी किंजल उम्र एक माह को पानी की टंकी में डालकर ढक्कन बंद कर दिया था। सरिता ने सोचा था कि उसे लडका होगा। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वह उदास हो गई थी। उसे लड़की से कोई प्रेम नहीं था। वह जब-जब उसे देखती थी तो खुद को कोसने लगती थी। खजूरी सड़क थाना पुलिस मर्ग 40/20 दर्ज कर बाद में प्रकरण 451/2020 दर्ज किया था।
कोर्ट ने इस तरह का दिया है फैसला
सम्पूर्ण प्रकरण परिस्थितिजन साक्ष्य ओर मृतिका और उसकी माता को अन्तिम बार एक साथ देखे जाने की साक्ष्य पर आधारित था। न्यायालय ने निर्णय देते हुये अभियोजन की तरफ से पेश साक्ष्य, तर्क एवं न्यायदृष्टांतों से सहमत होते हुए सरिता मेवाड़ा को दोषसिद्ध करार दिया। न्यायालय की तरफ से 104 पेज का निर्णय पारित कियागया। जिसमें विशेष टिप्पणी दी गई है। आदेश में कहा गया है कि ‘वर्तमान मे पुत्रियां सभ्यता, सस्ंकृति व राष्ट्र निर्माण का सशक्त हस्ताक्षर है। शास्त्रों मे पुत्रियों को हृदयों का बंधन, भावों का स्पंदन, सृजन का आधार, भक्ति का आकार और संस्कृति का संस्कार माना गया है। वर्तमान मे भारत जैसे विकसित राष्ट्र मे पुत्रियों को साहस, सृजन, सेवा, सभ्यता, सौंदर्य एवं शक्ति के पुंज के रूप मे देखा जा रहा है।’ न्यायालय ने निर्णय में रविन्द्र नाथ टैगारे की पंक्तियों को भी समाहित किया है। ‘जब एक पुत्री का जन्म होता है तो यह इस बात का निश्चायक सबूत है, कि ईश्वर मानव जाति से अप्रसन्न नहीं है, क्योंकि ईश्वर पुत्रियों के माध्यम से स्वयं को साकार रूप देता है।’
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