यूरोप के एशियाई द्वार तुर्की से दोस्ती बढ़ा रहा चीन, क्या है भारत के लिए खतरा?

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चीन और तुर्की के राष्ट्रपति 2012 के बाद मिल चुके हैं 8 बार
कमजोर अर्थव्यवस्था को नए संबंधों के जरिये सुधारना चाहता है तुर्की
यूरोप और अमेरिका पर निर्भरता कम कर अपने लिए नई संभावना खोज रहा है तुर्की
चीन की तरफ झुका है फिलहाल 23 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार

नई दिल्ली। एशियाई बाजारों में अपनी पैठ मजबूत कर चुका चीन अब यूरोपीय देशों में दबदबा बढ़ाना चाहता है। इसकी तैयारी तो वह बीते एक दशक से कर रहा है, लेकिन अब चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है। एशिया के यूरोपीय द्वार कहे जाने वाले तुर्की के रास्ते दुनिया के सबसे धनी बाजार पर कब्जा जमाने की शुरुआत चीन कर रहा है। इसके लिए चीन और तुर्की के बीच आपसी संबंध मजबूत किये जा रहे हैं। इन संबंधों से यूरोपीय देशों समेत भारत, अमेरिका और अन्य बड़े देशों की कड़ी नजर है। यूरोप और एशिया के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी तुर्की की शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की कोशिशें इस बदलते आर्थिक-राजनीतिक संतुलन का नया समीकरण है।

पिछले दिनों तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के अमेरिका के साथ संबंध बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं। तुर्की के अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ कई मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आए हैं। इसकी वजहों में 3 प्रमुख हैं। पहली, सीरिया के मसले पर तुर्की की अलग राय। दूसरी, तुर्की की महत्वाकांक्षी रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने की योजना। और तीसरी, 2016 में तुर्की में हुई तख्तापलट की नाकाम कोशिश।

पूर्व और पश्चिम से सामंजस्य की कोशिश
तुर्की और चीन के राष्ट्रपति की मुलाकात से साफ है कि नाटो का सदस्य देश तुर्की पूर्व और पश्चिम के साथ अपने संबंधों में सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहा है। एर्दोवान की योजना है कि तुर्की शंघाई सहयोग संगठन का भी सदस्य बने। फिलहाल शंघाई सहयोग संगठन में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजाकिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं।

हाल में चीन और अमेरिका के बीच चल रहा कारोबारी युद्ध दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच की लड़ाई है। ये कारोबारी युद्ध भविष्य में दुनिया पर अपना दबदबा कायम करने की कोशिश भी है।

आर्थिक संबंधों की मजबूती बदलेगी राजनीतिक हालात
एर्दोवान की 2012 के बाद से जिनपिंग के साथ ये आठवीं मुलाकात है। यह मुलाकात अर्थव्यवस्था और संबंधों में विविधता लाने के लिए हो रही हैं। लेकिन मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में आर्थिक संबंध राजनीतिक हालात को प्रभावित कर रहे हैं। जाहिर है ऊपरी तौर पर इन मुलाकातों का पूर्वी देशों के साथ खेमेबंदी जैसा कोई अर्थ भले न हो, लेकिन जमीन पर संबंध नए सिरे से तय होंगे ही।

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हालांकि तुर्की के चीन के साथ संबंध फिलहाल तुर्की के अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों की जगह नहीं ले सकते। तुर्की के पश्चिमी देशों के साथ बहुत गहरे और फायदेमंद रिश्ते हैं। लेकिन यह तुर्की की राजनीतिक और आर्थिक सीमाओं को भी दर्शाता है। अंकारा की विदेश नीति अब तुर्की को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की है। इसलिए तुर्की अब सारे देशों से संबंध रखना चाहता है। अब तुर्की शीत युद्ध के समय पश्चिमी देशों के साथ रहने जैसा एकपक्षीय कदम नहीं उठाएगा।

चीन और तुर्की के आर्थिक हित एक जैसे
इन हालात में चीन अब तुर्की के लिए जरूरी देश बनता जा रहा है। इसकी वजह दोनों देशों के सामूहिक आर्थिक हित हैं। सबसे बड़ा अंतर राजनीतिक और भौगोलिक है। अगर दोनों देशों के बीच आर्थिक निर्भरता ज्यादा बढ़ती है तो ये राजनीतिक और भौगोलिक अंतर जल्दी ही खुलकर सामने आ सकते हैं। हालांकि चीन और तुर्की का रुख सीरियाई गृह युद्ध के बारे में अलग अलग है। तुर्की सीरिया में विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है जबकि चीन वहां राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार का साथ दे रहा है। चीन वहां राष्ट्रपति असद के समर्थन में रूस के सैन्य हस्तक्षेप का भी समर्थक है।

चीन का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साथी
तुर्की के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चीन और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार 23 अरब डॉलर का हो गया है। चीन अब तुर्की का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है। लेकिन तुर्की के लिए परेशानी ये है कि इसमें 18 अरब डॉलर का हिस्सा चीनी आयात का है। यानी ये संबंध चीन की ओर झुके हैं। तुर्की अब अपना निर्यात बढ़ाने पर जोर दे रहा है। साथ ही वह चीनी व्यापारियों को तुर्की में आकर निवेश करने का आमंत्रण भी दे रहा है।

चीन को हैं तुर्की से बहुत अपेक्षा
चीन के लिए तुर्की की भौगोलिक स्थिति बेहद मुफीद है। पश्चिम एशिया, दक्षिण काकेशस, पूर्वी भूमध्य और यूरोप के चौराहे पर तुर्की का होना इसे चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड योजना के लिए जरूरी बनाता है। चीन इन संबंधों का विस्तार कर अमेरिका के साथ शक्ति संतुलन बनाना चाहता है।
तुर्की की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वन बेल्ट वन रोड में यह चीन को यूरोप से जोड़ने की संभावना रखता है। ऐसे में चीन अपने लिए तुर्की से बड़ी अपेक्षाएं रखता है, जिसकी संभावना भी है।

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चीन के दिये कर्ज में फंसने का डर
अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों ने चेतावनी दी है कि चीन द्वारा दुनियाभर में करवाए जा रहे प्रायोजित निर्माण कार्यों से ये देश के कर्ज के जाल में फंस जाएंगे और ये सब चीन पर निर्भर हो जाएंगे। इससे चीन को रणनीतिक बढ़त मिलेगी। वहीं तुर्की वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर सकारात्मक है। तुर्की इसे अपने मिडिल कोरिडोर की तरह मानता है जिसमें वो प्राचीन सिल्क रोड के साथ काकेशस से होते हुए मध्य एशिया से चीन तक रेल और सड़कों का जाल बनाया जाना है।

उइगुर समुदाय है विवाद का विषय
एर्दोवान ने 2009 में चीन के ऊपर उइगुर समुदाय के लोगों की सामूहिक हत्या और नरसंहार करने जैसे आरोप लगाए थे। हालांकि पिछले कुछ सालों में उन्होंने उइगुर समुदाय के ऊपर चुप्पी साधी हुई है। चीन में करीब 10 लाख लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें अधिकतर उइगुर समुदाय के मुस्लिम लोग हैं। उइगुर तुर्क मूल के मुस्लिम हैं जो सदियों से चीन के शिनचियांग प्रांत में रह रहे हैं।
चीन में उइगुर समुदाय के लोगों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के चलते तुर्की में रहने वाले उइगुर लोगों में चीन के प्रति नाराजगी रही है। तुर्की ने फरवरी में उइगुर समुदाय के खिलाफ चीनी कार्रवाई को मानवता के लिए शर्मनाक करार दिया, लेकिन उसके बाद से चीन ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है।
चीन का कहना है कि उसके “पुनर्शिक्षित करने वाले कैंप” कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ हैं। हजारों उइगुर जिहादियों पर तुर्की के रास्ते सीरिया जाकर आईएस में भर्ती होने का भी शक है। चीन का कहना है कि कई उइगुर जिहादियों ने पश्चिमी चीन में हमले किए और हो सकता है कई सारे जिहादी प्रशिक्षण लेकर वापस आएं और हमला कर दें।

फिलहाल साध रखी है चुप्पी
तुर्की अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण फिलहाल उइगुरों के मुद्दे पर चुप्पी साधे रहना चाहता है। साथ ही चीन भी एर्दोवान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है क्योंकि वो मुस्लिम समुदाय में बहुत लोकप्रिय हैं। अगर एर्दोवान ने उइगुर समुदाय के लिए आवाज उठाई तो चीन की मुस्लिम विरोधी छवि को बल मिलेगा और मुस्लिम समुदाय में चीनी विरोधी भावना बढ़ेंगी।

तुर्की इस मामले पर सावधानी बरत रहा है। तुर्की की सरकार ने चीनी संप्रभुता और आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई के अधिकार का समर्थन किया है। साथ ही तुर्की यह भी बता देता है कि हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं है।

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