संवेदनशीलता की बातें बहुत, लेकिन नतीजा हर बार सिफर

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नहीं मिट पा रही जनता और पुलिस के बीच की दूरी, हर स्तर पर की जा चुकी है पहल

केस-1
भोपाल के हबीबगंज आरपीएफ पुलिस चौकी के नजदीक एक यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रही छात्रा के साथ गैंगरेप की घटना हुई थी। इस मामले की एफआईआर एमपी नगर, हबीबगंज और जीआरपी हबीबगंज किसी भी थाना पुलिस ने दर्ज नहीं की। मामला सुर्खियों में आया तो अफसरों ने तीन टीआई, दो एसआई को सस्पेंड कर दिया था। एक सीएसपी को पीएचक्यू भी अटैच किया। मामले में पाचों आरोपी दोषी करार दिए गए।

केस-2
भोपाल के कमला नगर इलाके में नौ साल की गुडिय़ा से ज्यादती हुई। उसकी गला घोंटकर हत्या की गई। सूचना पुलिस को भी मिली लेकिन डेढ़ घंटे तक कोई सुनवाई नहीं हुई। लाश मिलने के बाद अफसरों को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हुआ और सात पुलिस कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया गया।

केस-3
जबलपुर में एसपी रहे अमित सिंह ने गोहलपुर, अधारताल थाने के 23 पुलिस अफसर और कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया था। इनके खिलाफ कार्रवाई का आधार एक डायरी बनी थी। यह डायरी शहर के एक कुख्यात बदमाश से मिली थी जो सट्टे का नेटवर्क चला रहा था। डायरी में भुगतान की गई रकम से लेकर उसकी तारीखें लिखी हुई थी।

केस-4
इंदौर के विजय नगर इलाके में नए साल का जश्र मनाकर सौरभ सूर्यवंशी नाम का व्यक्ति लौट रहा था। वह सड़क दुर्घटना में जख्मी हो गया। जिसे एक एएसआई और आरक्षक एमवाय अस्पताल में भर्ती कराकर घर चले गए। कुछ दिनों बाद सौरभ को होश आया और वह अस्पताल से गायब हो गया। उसकी हालत पहचानने योग्य नहीं थी। इधर, उसके परिजन छह दिनों तक उसको तलाशते रहे। मामले में गुमशुदगी भी दर्ज थी। बदहवासी में ही उसकी मौत हो गई और उसका शव अज्ञात बताकर मर्चुरी रूम में रखवा दिया गया। बाद में हकीकत सामने आई तो डीआईजी सिटी संतोष कुमार ने दोनों पुलिस कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया।

केस-5
सतना में तेल व्यापारी बृजेश रावत के जुड़वा बेटों प्रियांश और श्रेयांश को स्कूल बस से निकालकर अगवा किया गया। फिरौती की रकम लेने के लिए परिवार को फोन किया गया। लेकिन, इस जानकारी से पुलिस अनजान रही। जब वे मिले तो उनकी लाशें थी। इस मामले में एसपी संतोष सिंह गौर ने टीआई समेत चार पुलिस अफसर और कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया था।

Bhopal crimeअफसर खुद मानते हैं— समझा जाता है अंग्रेजों की पुलिस
सीबीआई में डायरेक्टर और मध्यप्रदेश के पूर्व डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी हमें अंग्रेजों की पुलिस ही समझा जाता है। जनता के बीच बने इस भ्रम को हम आज तक नहीं मिटा सके हैं। जब तक एक आम नागरिक के प्रति हमारे दिल में संवेदनशीलता नहीं आएगी तब तक चुनौतियां ऐसी ही बनी रहेगी। शुक्ला भोपाल में स्थित नई विधानसभा के सभागार में जनवरी, 2018 में आयोजित आईपीएस मीट में यह बात बोल रहे थे। उन्होंने अपने संबोधन में माना था कि आम नागरिक और बदमाशों के बीच में अंतर करने की कमी महकमे में हैं। उस वक्त सभागार में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत पूरे प्रदेश से आए आईपीएस शामिल थे। डीजीपी रहते उन्होंने नवाचार के माध्यम से कई सुधार कार्यक्रम भी चलाए। लेकिन, मैदान में पहुंचते तक नतीजा सिफर ही रहा। ऊपर दिए गए सभी पांच मामले उनके रहते या उनके बाद आए अफसरों के सामने हुए।

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कार्यशाला हुईं, बजट आया, सुधार कार्यक्रम भी चले, लेकिन हालात जस के तस
संवेदनशीलता के विषय पर प्रदेश के प्रत्येक जिले में अफसर यह बातें बहुत करते हैं। लेकिन, मैदानी हकीकत इन सब बातों से जुदा हैं। मैदानी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए कार्यशाला से लेकर तमाम बजटों के माध्यम से कर चुकाने वाले आम नागरिकों के पैसे से सुधार कार्यक्रम भी चलाए गए और वह आज भी चलते हैं। कोई बड़ी घटना होने के बाद हर मौर्चे पर संवेदनशीलता दिखाई जाती है। जैसे ही मामला शांत होता है तो पुलिस अपने उसी रोल में आ जाती है। ऊपर दिए यह पांच उदाहरण ही मात्र हैं। ऐसे दर्जनों मामले हर दिन सामने आते हैं। जिससे यह साफ होता है कि अफसरों और मैदानी कर्मचारियों के बीच संवाद की कमी हैं। इसलिए अफसरों की अपेक्षा के अनुसार मैदान में परिणाम देखने को नहीं मिलता है।

नवनियुक्त आईजी ने हाल ही में जताई चिंता
यह बातें फिर इसलिए हो रही हैं क्योंकि इसी संवेदनशीलता पर एक बार फिर नवागत आईजी भोपाल योगेश देशमुख ने चिंता जताई है। कुर्सी संभालने के बाद उन्होंने पहली बार प्रेस कांफ्रेंस करते हुए मैदानी कर्मचारियों की संवेदनशीलता पर चिंता जताई। यह चिंता कमला नगर में हुई घटना के बाद उनके सामने आया। उन्होंने दावा किया कि कांस्टेबल से लेकर एएसआई तक मैदानी कर्मचारियों को आम जनता के प्रति व्यवहार को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए एनजीओ की मदद ली जाएगी। उन्होंने कहा कि जनता से जुडऩे के लिए नई तकनीक विकसित करने की भी कोशिश होगी। सुरक्षा समितियों में सुधार से लेकर कॉलोनियों में जन संवाद कार्यक्रम चलाया जाएगा।

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Bhopal crimeघोषणा पहली बार नहीं, अमलीजामा की कमी
आईजी योगेश देशमुख ने ऐलान किया है कि वे शहर की बस्तियों को लेकर फोकस कर रहे हैं। इसके लिए पुलिस की मैत्री स्क्वायड को सक्रिय करके बस्तियों में जाकर समस्याओं को चिन्हित किया जाएगा। बच्चियों की सुरक्षा को लेकर बस्ती के लोगों को जोड़ा भी जाएगा। हालांकि आईजी भोपाल का यह ऐलान नया नहीं हैं। इससे पहले महिला अपराध शाखा ने यह मुहिम चलाई थी। इसके लिए महिला अपराध शाखा ने बागसेवनिया इलाके की बस्तियों को चिन्हित किया था। अभियान एक महीने तक चला था। पर उसके बाद जाकर कभी किसी थाना स्टाफ ने सुध नहीं ली। छेडख़ानी से लेकर तमाम समस्याएं वहां पर अभी भी बरकरार हैं। योजना की सफलता पर उस वक्त काफी तस्वीरें खिचाई गई और उसका प्रचार भी किया गया। इस योजना में महिला एवं बाल विकास विभाग की भी मदद ली गई।

यह है मैदानी हकीकत
पूर्व डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला ने भी महिला हिंसा की रोकथाम के लिए उर्जा डेस्क का गठन किया था। शुरूआत जहांगीराबाद थाने से हुई थी। इसकी नियमित समीक्षा भी होती है। लेकिन, उसमें जो समस्याएं विभाग के कर्मचारी बताते हैं उसका समाधान नहीं होता। पुलिस विभाग ने ही तंग बस्तियों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से संपर्क अभियान चलाया था। यह अभियान कितने दिन चला उसकी कोई ठोस रिपोर्ट नहीं बन सकी है। उसकी सफलता अथवा असफलता का पता नहीं लगाया गया। समस्याओं को दूर करने की कोशिश ही नहीं हुई। शहर में तीन दर्जन से अधिक थाने हैं। कई थानों में महिला स्टाफ ही नहीं हैं। जहां महिला स्टाफ है वहां उनके लिए अलग से शौचालय ही नहीं हैं। महिला स्टाफ के अनुकूल वातावरण भी नहीं मिल पाने के कारण कई महिला कर्मचारियों ने भी अपने तबादले करा लिए। महिला पुलिस कर्मचारियों के लिए सीएसआर योजना के तहत भोपाल पुलिस को आने-जाने के लिए वाहन मिले थे। इन वाहनों को लेकर कई बार तस्वीरें खिचाई गई पर आज यह कहा है उसकी सुध लेने वाला कोई अफसर नहीं हैं। ऐसी ही कई सुविधाएं है जिसे सरकार ने अपने स्तर पर चालू कराया। अफसरों ने उसको लागू किया लेकिन, मैदानी कर्मचारियों की बेरूखी के चलते वह बंद होने की कगार पर पहुंच गई।

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