बदलाव के बाद अब वक्त है बदले का

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केशवराज पांडे,
ब्यूरो चीफ, मध्य प्रदेश—छत्तीसगढ़
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लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य बदलने के आसार
आयकर के छापे भविष्य के खतरे की तरफ करते हैं संकेत, केंद्र के अफसरों की बढ़ी मुश्किलें
राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सत्ता हथियाने का औजार बनी सरकारी मशीनरी

हमारा देश जब आजाद हुआ था तब किसी ने सोचा नहीं था, कि आने वाले सालों में हालात किस कदर लोकतंत्र विरोधी हो जाएंगे। देश को स्वतंत्र कराने के लिए जान, धन, खेत—खलिहान तक बलिदान करने वाली पुश्तें मौजूदा परिदृश्य देखकर हैरान हो जातीं। देश में अलग-अलग स्वतंत्र विचारधाराओं को प्राथमिकता देते हुए संविधान की परिकल्पना की गई थी। इस बचाने के लिए कई स्वतंत्र एजेंसियां भी बनाई गईं लेकिन पिछले दो दशक से यह एजेंसियां अपनी स्वतंत्रता और अस्तित्व को लेकर जूझ रही हैं। यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छे संकेत नहीं कहे जा सकते।

सत्ता के दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़ी दिखाई देने वाली इस संस्थाओं के विचलन का नया मामला देश का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में ​सामने आया है। मध्य प्रदेश में 15 साल से कांग्रेस सत्ता से दूर थी। कुर्सी पाने के लिए कई वादों और नारों के साथ कांग्रेस ने प्रचार किया। इसमें से एक नारा ज्यादा चला जो था— वक्त है बदलाव का। इसी दौरान भाजपा ने माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज के बूते मुहिम छेड़ी। राजनीतिक पंडितों ने साफ संकेत दिए थे कि दोनों ही दल मजबूत तो होंगे लेकिन साफ संकेत जनता से नहीं मिलेगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही। कांग्रेस 114 तो भाजपा 109 सीट पर सिमट गई। कुछ निर्दलीय और बसपा के मौखिक समर्थन के बूते कांग्रेस सरकार में आ गई।

सरकार में आने के साथ ही उसका संघर्ष शुरू हो गया। यह संघर्ष अब भी बना हुआ है जो मुख्यमंत्री कमलनाथ के खतरे में होने की ओर इशारा कर रहा है। मुख्यमंत्री के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं जिसका सामना उन्हें आने वाले महीनों में करना पड़ सकता है। इसके संकेत भी मिल रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो वह अपनी ही पार्टी के भीतर मौजूद उनके विरोधियों के हथकंड़ों का शिकार बन सकते हैं।

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बदले की रणनीति नहीं समझे
कार्यकुशलता के मामले में कमलनाथ को बेशक कोई पछाड़ नहीं सकता। शांत स्वभाव के साथ-साथ उनकी जनता के बीच अच्छी पकड़ है। यह दर्शाता है कि जब पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर थी। इसके बावजूद छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के नेता उन्हें शिकस्त नहीं दे पाए। उस वक्त प्रदेश में भाजपा की ही सरकार थी। इसके बाद बीते साल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने और फिर भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सरकार को इतिहास के पन्नों में धकेलकर कमलनाथ ने अपनी राजनीतिक चतुराई और प्रबंधन का भी लोहा मनवाया। उन्हें विधानसभा में नेता बनाकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया। उनके मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर भी बड़ी उठापटक चली। हालांकि कमलनाथ कामयाब हुए और प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली।

दिक्कत इसके बाद शुरू हुई। कुर्सी संभालते ही कांग्रेस ने वक्त है बदलाव का जैसे अपने नारे केे उलट काम करना शुरू कर दिया। कमलनाथ सरकार ने 200 से अधिक आईपीएस और इतनी ही संख्या में आईएएस को इधर-उधर पहुंचाना शुरू कर दिया। लेकिन, अब जो आयकर छापे के बाद सामने आ रहा है उससे साफ है कि कमलनाथ को उनके ही कई सिपहसालारों ने अंधेरे में रखकर अपनी रोटियां भी सेंक ली। शंका यह है कि मध्य प्रदेश में भी हालात यूपीए—2 सरकार जैसे न बन जाएं। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाक के नीचे उनके मंत्री और अफसरान भ्रष्टाचार को अंजाम देते हुए अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे और सरकार की मिट्टी पलीद करते रहे।

अफसरों में भय
मौजूदा परिदृश्य में अफसरों में भय देखा जा रहा है। सरकारी मशीनरी से जुड़े अफसरों के सामने अपनी नौकरी बचाने की भी चिंता है। उन्हें चिंता इस बात की भी है कि राजनीतिक दल के आला नेता उनकी किसी कार्रवाई या बात से नाराज न हो जाएं। तटस्थ रहकर कब तक चला जा सकेगा। दरअसल, अभी आदर्श चुनाव आचार संहिता चल रही है। जिसका बहाना बनाकर प्रदेश में कई अफसर अपने फैसलों को अमलीजामा पहना पा रहे हैं। लेकिन, इसके खत्म होते ही कैसे हालात बनेंगे उसके लिए इंतजार किया जा रहा है। आयकर छापे के दौरान सीआरपीएफ के साथ हुए विवाद को लेकर भी कई अफसरों में भय है।

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बदलाव के बाद टकराव
कांग्रेस ने आते ही भारी संख्या में तबादले किए। उसमें व्यक्ति की योग्यता और कुशलता की गणना नहीं की। इस कारण जिन्हें मलाईदार मिला वे खुश हो गए और जो हाशिए में गए वह अब मुखर हो गए। खबर है कि आयकर छापे के बाद कांग्रेस सरकार लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाओं में लंबित मामलों की स्क्रूटनी करने में जुट गई है। ताकि वह राजनीतिक व्यक्तियों से जुड़ी हस्तियों पर मुकदमा दर्ज करा सके। इस काम में एक पुलिस के अफसर बहुत सक्रियता से काम कर रहे हैं। यह वह अफसर हैं जिनकी मुख्यमंत्री के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ से काफी नजदीकियां हैं। इन दोनों अफसरों ने कई तबादला पोस्टिंग में अहम भूमिका निभाई थी। इन अफसर को प्रदेश के चर्चित डंपर घोटाले को दबाने में रिश्तेदार की भूमिका के किस्से सुनाए जाते हैं। हालांकि इन कपोल कल्पनाओं के बीच यदि ऐसा होता है तो केंद्र और राज्य की इन एजेंसियों पर जनता का भरोसा उठने लगेगा। वहीं ऐसी परिपाटी शुरू हुई तो यह राजनीतिक दलों के लिए भी अच्छी बात नहीं होगी।

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