भारत-नेपाल समेत अन्य देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों पर लिखी किताब में किया गया यह दावा, राजा वीरेन्द्र ने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से दस मिनट देरी से की थी मुलाकात
नई दिल्ली। भारत-नेपाल के बिगड़ते (Indo-Nepal Relation) रिश्तों को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल कई बार पहले कार्यकाल के दौरान आरोप-प्रत्यारोप लगा चुका है। लेकिन, इन आरोपों की हवा रविवार को जारी हुए एक साक्षात्कार के बाद निकल गई। दरअसल, नेपाल के मीडिया हाउस सेतोपाटी डॉट कॉम ने विष्णु रिजाल की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक को लेकर इंटरव्यू जारी किया है। इसमें पुस्तक में लिखी कई बातें बताई गई है। इस पुस्तक के सामने आने के बाद अब यह साफ हो गया है कि भारत-नेपाल के बीच रिश्ते कांग्रेस सरकार के जमाने से ही बिगड़ गए थे।
पांच राजदूत राजी नहीं हुए
पुस्तक का नाम “नेपालको कुटनीति अभ्यास” शीर्षक के नाम से प्रकाशित हुई है। हिन्दी में कहे तो इसका मतलब है कि नेपाली कुटनीति अभ्यास। इसके लेखक हैं विष्णु रिजाल जो कि विश्व के कई देशों में नेपाली राजदूत की भूमिका निभा चुके हैं। रिजाल ने यह पुस्तक 20 देश-विदेश के राजनायिकों से बातचीत करने के बाद लिखी है। पत्रकारिता फिर राजनायिक की भूमिका अदा करने वाले रिजाल ने कहा कि पुस्तक लिखने का विचार उन्हें पांच साल पहले आया था। रिजाल फिलहाल नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के केन्द्रीय सदस्य भी है। रिजाल की पुस्तक से भारत-नेपाल के बीच (Indo-Nepal Relation) फिर कूटनीतिक दंगल होने की अटकलों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
यह किताब लिखने से पहले रिजाल ने भारतीय राजदूत रहे केबी राजन की संपादित किताब एंबेस्डर्स क्लब, इंडियन डिप्लोमेट एट लार्ज का अध्ययन किया। इसी किताब से प्रेरित होकर रिजाल ने अपनी पुस्तक लिखने का मन बनाया। उन्होंने अपने साक्षात्कार में बताया कि उम्र बढऩे के साथ-साथ व्यक्ति की याददाश्त कमजोर होने लगती है। लेकिन, ऐसी अवस्था आने से पहले उन अनुभवों को पुस्तक में बदलने से हमारी आने वाली पीढ़ी को (Indo-Nepal Relation) कुटनीति के क्षेत्र में जानकारियां और उसका लाभ मिल सकता है। यही सोचकर किताब को लिखने का इरादा किया। पुरानी और नई पीढ़ी के बीच सेतु कैसे बने इसके लिए इतिहास जानने के लिए मैंने पाकिस्तानी राजदूत से अनुभव भी सुने। ऐसे करते हुए करीब तत्कालीन 25 राजदूत से बातचीत भी की। इसमें से पांच राजदूत बातचीत के लिए राजी नहीं हुए।
डॉक्टर को राजदूत बनाया
रिजाल का दावा है कि इस पुस्तक की मदद से (Indo-Nepal Relation) कूटनीति के क्षेत्र में आगे कैसे बढ़े इसमें मदद मिल सकती है। उन्होंने साक्षात्कार में कहा कि नियुक्ति में अराजकता जैसे तमाम अन्य अड़चनों को देखकर मौजूदा पीढ़ी चल रही है। इस अराजकता की गंध राजदूत जैसे पद में भी देखने को मिल रही है। हमें आजकल राजदूत के रूप में अस्पताल के डॉक्टर जो कभी मरीजों का इलाज करते थे या फिर व्यापारी देखने को मिल रहे हैं। यह नेताओं ने किया है ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। यह नेपाल के राजाओं के जमाने से विरासत से मिला हुआ है। नेपाल के पहले राजदूत बहादुर शमशेर बने थे। नेपाली वर्ष 1934 में उन्हें ब्रिटेन के लिए चुना गया था। बाद में बहादुर शमशेर के बेटे के बेटे को भी राजदूत बनाया गया था।
राजदूत की पत्नी के पत्र से सुधरे रिश्ते
रिजाल ने अपनी पुस्तम में लिखा है कि अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जिम्मी कार्टर को हराकर रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाए गए रोनाल्ड रेगन विजेता बने थे। आस्ट्रेलिया की शरणार्थी हेलिन, रेगन की निज सचिव बनकर व्हाइट हाउस पहुंची। उस वक्त हेलिन वहां की मीडिया में काफी जाना-माना नाम था। उसी दौरान एक चैनल के इंटरव्यू के दौरान हेलिन से एंकर ने पूछ लिया कि आप शरणार्थी बनकर यहां आई और अब विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति की निज सचिव हैं अब इसके बाद अगला लक्ष्य कौन सा है आपका। तब उन्होंने कहा था कि मैं नेपाल में स्थित हिमालय को देखना चाहती हूं। यह साक्षात्कार अमेरिका में नेपाली राजदूत भेष बहादुर थापा की पत्नी रीता थापा ने भी देखा था। यह सुनने के बाद रीता ने नेपाली राजदूत की पत्नी का हवाला देकर उन्हें पत्र लिखा कि हम नेपाल में आपके स्वागत के लिए काफी उत्सुक हैं। यह पत्र पहुंचते ही व्हाइट हाउस ने नेपाली राजदूत को तलब कर लिया।
इस एक पत्र ने दोनों देशों के बीच रिश्तों में घुल रही कड़वाहट को दूर करने का काम किया। इसी पत्र ने नेपाल के तत्कालीन राजा वीरेन्द्र की अमेरिकी यात्रा के लिए रास्ते खोल दिए थे। नेपाली वर्ष 1983 में वीरेन्द्र यह राजकीय भ्रमण किया था। थापा ने रिजाल को पुस्तक के लिए बताया कि उस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति रेगन और राजा वीरेन्द्र के बीच प्रजातंत्र, मानव अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत कई अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर खुलकर विचार एक-दूसरे से आदान-प्रदान किए गए। लेकिन, नेपाल में इसके विपरीत होने लगा। पाश्चात्य संस्कृति को रोकने, इसाई समुदाय पर हमले जैसी घटनाएं नेपाल में होने लगी। इस बात को लेकर अमेरिका ने नाराजगी जताई और राजदूत के माध्यम से अपना संदेशा राजा तक पहुंचाया। राजदूत के इस पत्र पर संज्ञान लेने की बजाय राजा की तरफ से उन्हें फटकार मिली। उनसे कहा गया कि वह अमेरिका को उनके मुंह में कड़ा संदेश देने जाए। यह संदेश नेपाल से मिलने के बाद थापा ने राजदूत के पद से इस्तीफा दे दिया। थापा ने रिजाल को अपने अनुभव में बताया कि उनके कार्यकाल में राजा वीरेन्द्र की राजकीय यात्रा के बाद फिर चार दशक तक किसी भी सरकार या राज दरबार के प्रतिनिधि की अमेरिका में राजकीय यात्रा नहीं हो सकी।
राजीव गांधी ने समय देने से इनकार किया
रिजाल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ऐसा व्यवहार राज दरबार ने अमेरिका ही नहीं दूसरे (Indo-Nepal Relation) देशों के साथ भी किया। उन्होंने एक घटनाक्रम का उदाहरण देते हुए बताया कि (नेपाली तारीख) 7 फरवरी, 1973 से 10 फरवरी के बीच भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नेपाल दौरा कार्यक्रम था। उस वक्त नेपाल में राजशाही हुआ करती थी। राजा वीरेन्द्र ने सिंह दरबार के स्टेट हॉल में डिनर के लिए इंदिरा गांधी को निमंत्रण दिया था। सामान्यत: कुटनीति के अनुसार स्वागत राजा वीरेन्द्र को करना था। लेकिन, राज दरबार के सचिवों ने ऐसा करने से उन्हें रोक दिया। सचिव की तरफ से प्रोटोकॉल को मुद्दा बनाकर राजा को जाने नहीं दिया। राजा वीरेन्द्र दस मिनट की देरी से वहां पर पहुंचे। भारतीय प्रधानमंत्री को यह अच्छा नहीं लगा और उसका असर अगले दिन भी देखने को मिला। नेपाल के पोखरा शहर के भ्रमण के दौरान इंदिरा गांधी दिनभर नाराज दिखाई दी। इस घटना ने भारत-नेपाल के (Indo-Nepal Relation) रिश्तों में दूरी बढ़ाने का भी काम किया। यह कड़वाहट काफी लंबे समय तक बनी रही। इसी तरह पाकिस्तान में आयोजित सार्क सम्मेलन के दौरान भारत-पाकिस्तान की तरफ से युवा राजनेता प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री राजीव गांधी तो पाकिस्तान की तरफ से बेनजीर भुट्टो थी। इधर, भारत-नेपाल के बीच (Indo-Nepal Relation) रिश्तों में अनबन चल रही थी। नेपाल में भारत की तरफ से नाकाबंदी शुरू हो चुकी थी।
भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सार्क देश के प्रमुखों को ब्रेकफास्ट के लिए आमंत्रित किया। यह निमंत्रण नेपाल के राजा वीरेन्द्र को भी पहुंचाया गया। राज दरबार को बार-बार बोले जाने पर भी जानकारी नहीं दी गई। हालांकि मेजमान देश से दरबार के सचवि नारायण प्रसाद श्रेष्ठ ने पाकिस्तान से इसको लेकर बातचीत की। इस बातचीत के बाद राज दरबार की तरफ से सुबह आठ बजे का समय बताकर मामले को टालने का प्रयास किया गया। दरअसल, राजा वीरेन्द्र सुबह 11 बजे के बाद ही अपने कार्यक्रम तय किया करते थे। उसी दिन भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और नेपाल के राजा वीरेन्द्र के साथ सौजन्य मुलाकात कार्यक्रम पहले से तय था। लेकिन, ब्रेक फास्ट में न पहुंचने के कारण यह मुलाकात भारत की तरफ से रद्द कर दी गई। इस घटना के अगले दिन ही पाकिस्तान में राजदूत अर्जुन सिंह राणा और भारत में (Indo-Nepal Relation) नेपाल के राजदूत विंदेश्वरी शाह भारत के विदेश सचिव एसके सिंह से मुलाकात करने पहुंचे। दोनों राजदूतों ने राजा वीरेन्द्र और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मुलाकात के लिए समय मांगा। लेकिन, विदेश सचिव ने बेहद रूखे तरीके से जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के पास समय नहीं हैं, आपने आने में देरी कर दी। आपके राजा ने एक अच्छा अवसर भी खो दिया कहते हुए जवाब दिया।
राजा तो शिकार पर गए हैं
रिजाल ने कहा कि राजीव गांधी के साथ हुआ (Indo-Nepal Relation) यह पहला वाक्या नहीं था। इसके अलावा भी एक अन्य घटना है। बांग्लादेश में नेपाली राजदूत डॉक्टर मोहन प्रसाद लोहनी थे। उनसे बातचीत में यह बात पता चली। भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का यूरोप में दौरा कार्यक्रम था। उस दौरान यूरोप के नेताओं ने राजीव गांधी से कहा था कि छोटे देशों पर नाकाबंदी लगाकर आप उन्हें दबाने की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे आरोप लगने पर राजीव गांधी ने नेपाल के दरबार में फोन किया। फोन दरबार के सचिव ने उठाया। भारत के प्रधानमंत्री का परिचय मिलने के बाद कहा गया कि राजा वीरेन्द्र इस वक्त शिकार में गए हैं। इसलिए मैं अभी बातचीत नहीं करा सकता हूं। लेकिन, राजा वीरेन्द्र उस वक्त दरबार में बैठे थे। लोहानी ने इस घटनाक्रम को पुस्तक में भी दिया है। यह नेपाल (Indo-Nepal Relation) की तरफ से भारी भूल थी। इस बात से भारत फिर नाराज हो गया और उसने लगभग 15 महीने लंबी नाकाबंदी कर दी। इसका खामियाजा नेपाल को ही भोगना पड़ा।