दक्षिण एशिया में तेजी से पैर पसार रहा ड्रग माफिया
बीते करीब चार महीनों में देश के ड्रग कारोबार के खिलाफ सरकारी एजेंसियों को खासी सफलताएं मिली हैं। मध्य प्रदेश के नीमच से लेकर राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ तक अफीम के खिलाफ कार्रवाइयां हों या फिर दिल्ली में पांच बड़े मामलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के रैकेट का भंडाफोड़ हो। यह सफलताएं शाबासी की हकदार हैं, लेकिन साथ ही खतरे का संकेत भी। इस खतरे का केंद्र फिलहाल मुंबई और पंजाब बने हैं, लेकिन आने वाले महीनों में देश के अन्य राज्यों में नशे के कारोबारियों की हरकतें तेज होने की आशंका है। चिंता की बात यह है कि बड़े-बड़े दावों और विशेष कार्यक्रमों की योजना के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों की प्राथमिकता में नशे के कारोबार पर लगाम कसना है ही नहीं। इसी का फायदा उठाकर अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया भारत में अपनी जड़ें जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, जिसमें उसे सफलता मिलना भी शुरू हो गई है।
असल में इसी दशक की शुरुआत में 2012 तक मैक्सिको में सरकार के साथ चली दो साल लंबी खूनी लड़ाई में कमजोर हुआ ड्रग माफिया बीते चार-पांच साल से अपने कारोबार के लिए नए केंद्र की तलाश में है। भारत समेत दक्षिण एशिया के देशों की भौगोलिक स्थिति इसके लिए मुफीद है, क्योंकि यह बदनाम गोल्डन ट्रैंगल और गोल्डन क्रीसेंट के बीच का इलाका है। तथ्य बताते हैं कि करीब 67000 अरब रुपए सालाना के इस काले कारोबार ने राजनीति और ग्लैमर के गठजोड़ से बीते 10 सालों में दुनिया के हर मुल्क में अपनी जड़ें जमाईं हैं। अब इस कारोबार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित करने वाले करीब 100 परिवारों की नजर भारत समेत दक्षिण एशिया पर है, जहां से दुनिया भर के ड्रग कारोबार को संचालित किया जा सके।
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भारत बन रहा ड्रग डंपिंग केंद्र
हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में अफीम की खेती से जुड़े लोगों पर जब एजेंसियों की कार्रवाई हुई तो यह तथ्य भी सामने आया कि नारकोटिक्स से जुड़े अफसर ही 3-3 लाख रुपए में अवैध खेती को बढ़ावा देते थे और फिर किसानों से तस्करी करवाते थे। उधर, दिल्ली के कई इलाकों में हुई गिरफ्तारियों के तार अमरीका, अफगानिस्तान और यूरोपीय देशों से जुड़े हुए हैं। कोलकाता, इंदौर, उदयपुर, मुंबई में भी ऐसी कई कार्रवाइयां सामने आईं। नारकोटिक्स से जुड़े जानकार बताते हैं कि इन सारी गिरफ्तारियों में जो ड्रग सामने आई है, वह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहनी थी, यह आसपास के अन्य देशों तक जानी थी। भांग के साथ खाई जाने वाली गोलियों की खपत भारत के जरिये की जा रही है, जो अफ्रीका और एशिया में “रिक्रीशनल ड्रग” के तौर पर पहुंचाई जाती हैं। यह उदाहरण बताते हैं कि भारत में ड्रग माफिया की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं।
जांच एजेंसियों के बीच भी है दखल
हाल ही में चंडीगढ़ से सटे मोहाली में दिन दहाड़े महिला ड्रग इंस्पेक्टर नेहा शौरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वे काफी तेजी से ड्रग नेटवर्क को तोडऩे का काम कर रही थीं और इसी वजह से ड्रग माफिया की आंख में कांटें की तरह चुभ रही थीं। इससे पहले भी कई अधिकारियों की काम के दौरान हत्या की जाती रही है। तस्कर अधिकारियों को धमकी देने के साथ ही उनकी हत्या भी करते रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जांच एजेंसियों में तस्करों की खासी दखल है और ज्यादातर मामलों में उन्हें कार्रवाई के पहले ही सूचना मिल जाती है। हालांकि इससे बचने के लिए जांच एजेंसियों की ओर से ऐहतियाती कदम उठाए जाते रहे हैं, लेकिन यह अभी तक नाकाफी साबित हुए हैं। पंजाब में तो एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर से ही हेरोइन बरामद हुई थी।