नई दिल्ली। मौजूदा समय के बारे में आमतौर पर कहा जाता है कि यह शांति का समय है और दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में लोग मुश्किलों के बावजूद घर, दफ्तर और अपने शहरों—गांवों के ईदगिर्द जीवनयापन कर रहे हैं। लेकिन हालिया आंकड़े इस तथ्य को झूठा साबित करते हैं। असल में इस समय युद्ध, अस्थिरता और अन्य कारणों से प्रभावित लोगों की संख्या ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक है। खुद संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया में बेघर होने वाले लोगों की तादाद रिकॉर्ड स्तर को छू रही है। 2018 के अंत में यह आंकड़ा सात करोड़ के पार जा पहुंचा है। इतना ही नहीं यह संख्या लगातार बढ़ रही है, क्योंकि वेनेजुएला जैसे देशों में संकट जारी है।
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर का कहना है कि पिछले साल 20 लाख लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस तरह दुनिया भर में बेघर लोगों की तादाद 7.08 करोड़ हो गई है। इस आंकड़े में शरणार्थी, शरण का आवेदन करने वाले और आंतरिक रूप से बेघर लोग भी शामिल हैं। यह आंकड़ा 2018 के आखिर तक का है।
बेघर लोगों का बढ़ता आंकड़ा “गलत दिशा” में जा रहा है और हम शांति कायम करने में लगभग अक्षम हो गए हैं। यह बात सही है कि नए संकट पैदा हो रहे हैं, नई परिस्थितियां शरणार्थियों को पैदा कर रही हैं, लेकिन हम तो पुराने संकटों को भी नहीं सुलझा पाए हैं। जरा सोचिए कौन सा आखिरी संकट है जो हमने सुलझाया हो।
फिलिपो ग्रैंडी, यूएन एचसीआर के प्रमुख
साल दर साल बढ़ते बेघर
पिछले साल इथियोपिया में हिंसा की वजह से 15.6 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। हालांकि इनमें से ज्यादातर लोग इथियोपिया की सीमाओं के भीतर ही रहे। इस बीच, शरण का आवेदन देने वाले लोगों में लगभग 20 प्रतिशत वेनेजुएला के हैं जहां से लोग राजनीतिक और आर्थिक संकट की वजह से भागने में ही भलाई समझ रहे हैं। यूएनएचसीआर के मुताबिक शरण का आवेदन करने वाले वेनेजुएला के लोगों की संख्या 3.4 लाख है। यह संख्या और ज्यादा हो सकती है क्योंकि वेनेजुएला के संकट की सही से रिपोर्टिंग नहीं हो रही है।
जर्मनी ने संभाला शरणार्थियों को
यूएनएचसीआर की रिपोर्ट में जर्मनी की तारीफ करते हुए कहा गया है कि उसने इस बात को गलत साबित कर दिया है कि माइग्रेशन को संभाला नहीं जा सकता। ग्रैंडी ने बताया, “मैं आम तौर पर सराहना या आलोचना नहीं करता, लेकिन इस मामले में मैं जर्मनी की तारीफ करना चाहूंगा। जो कुछ जर्मनी ने किया है, वह तारीफ के काबिल है।”
उदारता का खामियाजा भी उठाया मर्केल ने
हालांकि जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल को अपनी आव्रजन नीति की वजह से ‘बड़ी राजनीतिक कीमत’ चुकानी पड़ी है, लेकिन इसी से उनका कदम और साहसिक हो जाता है। जर्मनी ने 2015 से शरणार्थी संकट के बाद से 10 लाख से ज्यादा लोगों को अपने यहां जगह दी है। इसका देश के भीतर कई तबकों में विरोध भी हुआ।
दर दर भटकते लोगों की 9 दास्तानें
1. गरीबी और ठंड से संघर्ष: बोस्निया हर्जगोविना से लोग क्रोएशिया और आसपास के अन्य देशों में जा रहे हैं। बोस्निया हर्जगोविना की आर्थिक हालत खस्ता है। वहीं क्रोएशिया यूरोपीय संघ का हिस्सा है। बेहतर भविष्य की तलाश में लोग कड़ाके की सर्दी में मीलों पैदल चलकर बॉर्डर पार करने की कोशिश करते हैं। इस दौरान कुछ लोग बर्फीले तूफान में दम भी तोड़ देते हैं।
2. उम्मीदों का ट्रक: मध्य अमेरिका से हिंसा और भुखमरी के चलते लोग होंडूरास, निकारागुआ, अल सल्वाडोर और ग्वाटेमाला छोड़ रहे हैं। उनकी मंजिल अमेरिका है। लेकिन वहां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अवैध अप्रवासन के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। किसी तरह अमेरिका पहुंचने की कोशिश में ज्यादातर मैक्सिको सीमा पर ही फंसे रह जाते हैं।
3. बिखर गए सपने: ऑस्ट्रेलिया की सरकार नहीं चाहती कि उनके यहां रिफ्यूजी आएं। वहां से बड़ी संख्या में शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजा जा रहा है। डिपोर्टेशन को लेकर ऑस्ट्रेलिया ने प्रशांत क्षेत्र के कई देशों से समझौता भी किया है। वापस भेजने से पहले रिफ्यूजियों को कैंप में रखा जाता है। जान जोखिम में डालकर ऑस्ट्रेलिया पहुंचे ऐसे लोग इन कैंपों में बड़ी बुरी मनोदशा में होते हैं।
4. कोई सुध बुध लेने वाला नहीं: लाखों फलस्तीनी रिफ्यूजी कई दशकों से जॉर्डन में रह रहे हैं। जॉर्डन की आबादी करीब एक करोड़ है, जिसमें रिफ्यूजियों की संख्या 23 लाख है। कुछ तो 1948 से वहां रह रहे हैं। उन्हें अपनी मिट्टी पर लौटने की कोई उम्मीद नहीं है और जॉर्डन में दशकों बाद भी उन्हें पूरे अधिकार नहीं मिले हैं।
5. तेल से समृद्ध देश के गरीब नागरिक: वेनेजुएला के पास बड़ी मात्रा में तेल और गैस के भंडार हैं। लेकिन कारोबारी प्रतिबंधों के चलते देश आर्थिक तंगी, दवाओं की कमी और महंगाई का सामना कर रहा है। ज्यादातर नागरिक देश छोड़ने की फिराक में हैं। उनका आखिरी ठिकाना कोलंबिया होता है।
6. सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप: दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप बांग्लादेश के कुतुपलोंग में है। म्यांमार से भागने वाले ज्यादातर रोहिंग्या मुस्लिम यहीं रहते हैं। बांग्लादेश आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है, रिफ्यूजी संकट ने उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है।
7. पड़ोस की अशांति का असर: मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक खनिजों से भरा है। वहां की जमीन भी उपजाऊ है, लेकिन पड़ोसी देशों में छिड़े युद्ध, जातीय हिंसा और आतंकवाद ने राजधानी बांगी को विस्थापितों से भर दिया है।
8. गरीब देश पर और बोझ: लंबे समय तक गृहयुद्ध ने युगांडा को झुलसाए रखा। लेकिन अब अन्य अफ्रीकी देशों के मुकाबले वहां हालात काफी सामान्य हुए हैं। इसी वजह से युगांडा अब दक्षिणी सूडान के लोगों का ठिकाना सा बन गया है। जान बचाने के लिए हजारों सूडानी नागरिक युगांडा में रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं।
9. पहुंच गए यूरोप: स्पेन के मलागा पहुंचे रिफ्यूजियों को रेड क्रॉस प्राथमिक उपचार दे रहा है। अफ्रीका से भागकर यूरोप आने वाले ये लोग जान जोखिम में डालकर समंदर पार करते हैं। पहले वे लीबिया के रास्ते आते थे। सैकड़ों रिफ्यूजियों के लीबिया में कैद होने के बाद अब नए रिफ्यूजी अल्जीरिया या मोरक्को के रास्ते यूरोप के लिए निकलते हैं।