World No Tobacco Day : मध्य प्रदेश की आधे से ज्यादा आबादी पर पैसिव स्मोकिंग यानी ‘सेकंड हैंड स्मोक’ का कहर

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विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) के मौके पर विशेष

World No Tobacco Day नई दिल्ली। अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं, तब भी आप इसका शिकार होते हैं, यह बात लगभग सभी वयस्क जानते हैं। लेकिन इसका असर कितना होता है, इसकी किसी को फिक्र नहीं और इसी वजह से धड़ल्ले से लोग अपने करीबियों को धूम्रपान के कहर का शिकार बना रहे हैं। मध्य प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या 65 प्रतिशत हैं, जो पेसिव स्मोकिंग यानी सेकंड हैंड स्मोक का कहर झेल रहे हैं। सेकंड हैंड स्मोक बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। घरों या फिर कार्यालय इत्यादि स्थानों पर जो धूम्रपान किया जाता है, उससे सिंगरेट पीने वाले या सेकंड हैंड स्मोक से प्रभावित को कैंसर जैसी घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

क्या कहते हैं आंकड़े
मध्यप्रदेश में वर्तमान में 10.2 प्रतिशत लोग धूम्रपान करते हैं। इनमें 19 प्रतिशत पुरुष और 0.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। 28.1 प्रतिशत लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते हैं, जिसमें 38.7 प्रतिशत पुरुष व 16.8 प्रतिशत महिलाए हैं। घरों में सेकंड हैंड स्मोक का शिकार होने वाले 65 प्रतिशत हैं, जिसमें 66.8 प्रतिशत पुरुष और 63.2 प्रतिशत महिलाएं हैं। कार्यस्थल पर 38 प्रतिशत लोग सेकंड हैंड स्मोक का शिकार हो रहे हैं, जिसमें 41 प्रतिशत पुरुष और 23.7 प्रतिशत महिलाएं हैं।

क्या है सेकंड हैंड स्मोकिंग
सेकंड हैंड स्मोक से आशय उन लोगों से है जो धूम्रपान नहीं करते हैं लेकिन उससे प्रभावित होते हैं। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने वाले को तो उसका दुष्प्रभाव हो ही रहा है मगर जो सामने है और धूम्रपान नहीं कर रहा वह भी उससे प्रभावित हो रहा है।

शरीर पर क्या असर डालती है एक सिगरेट
साइनस में रुकावट: एक सिगरेट पीने के फौरन बाद नाक, आंख और माथे में मौजूद खोखले साइनस में बाधा आने लगती है। नाक हल्की बंद सी हो जाती है।
दिमाग में बदलाव: सिगरेट के धुएं के साथ निकोटिन खून में घुलता है और इसका असर मस्तिष्क पर भी होता है। दिमाग में आनंद का अहसास कराने वाला रसायन डोपोमीन रिलीज होता है। सिगरेट की लत के लिए इसका रिसाव काफी हद तक जिम्मेदार है।
कान में फ्लूइड: पहली सिगरेट पीने के साथ साथ कान की ग्रंथियों में लसलसा द्रवीय तरल जमा होने लगता है।
गले में कफ: धुआं, टार और कार्बन मोनोऑक्साइड का मिश्रण गले में खराश पैदा करता है। लंबी नींद के दौरान शरीर इन हानिकारक तत्वों को बाहर निकालता है, यही वजह है कि सिगरेट पीने वालों को अक्सर सुबह सुबह कफ की शिकायत रहती है।
फेफड़ों पर असर: करोड़ों छिद्रों की मदद से इंसान के फेफड़े हर दिन करीब 20 लाख लीटर हवा फिल्टर करते हैं। लेकिन सिगरेट के धुएं में मौजूद टार कई छेदों को बंद कर देता है।
धड़कन तेज: पहली सिगरेट पीने के साथ ही इंसान का दिल हर मिनट तीन बार ज्यादा धड़कता है। आम तौर पर दिल प्रति मिनट 72 बार धड़कता है, लेकिन सिगरेट पीने वालों की धड़कन 75 प्रति मिनट हो जाती है। इससे इंसान जल्दी थकने लगता है।
पेट पर असर: सिगरेट आंतों में मौजूद अच्छे और जरूरी बैक्टीरिया पर भी बुरा असर डालती है। इसकी वजह से पोषक तत्वों की प्रोसेसिंग कुछ देर के लिए थम जाती है। धूम्रपान से पेट में एसिड बढ़ जाता है।

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फेफड़ों के कैंसर का खतरा
तंबाकू के धूम्रपान के कारण विश्व स्तर पर फेफड़ों के कैंसर से दो-तिहाई मौतें होती हैं। यहां तक कि दूसरों द्वारा धूम्रपान करने से पैदा हुए धुएं के संपर्क में आने से भी फेफडों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी ओर धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है। धूम्रपान छोड़ने के 10 साल के बाद धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के फेफड़ों को कैंसर का खतरा लगभग आधा हो जाता है।

डॉक्टरों के मुताबिक, फेफड़ों के कैंसर के अलावा तंबाकू धूम्रपान भी क्रोनिक प्रतिरोधी फुफुसीय रोग (सीओपीडी) का कारण बनता है। इस बीमारी में फेफड़ों में मवाद से भरा बलगम बनता है जिससे दर्दनाक खांसी होती है और सांस लेने में काफी कठिनाई होती है।

1.65 लाख बच्चे मर जाते हैं हर साल
डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व स्तर पर अनुमानित 1.65 लाख बच्चे पांच वर्ष की आयु से पहले दूसरों के धूम्रपान करने से पैदा हुए धुएं के कारण श्वसन संक्रमण के कारण मर जाते हैं। ऐसे बच्चे जो वयस्क हो जाते हैं, वे हमेशा बीमारी से पीड़ित रहते हैं और इनमें सीओपीडी विकसित होने का खतरा होता है।

ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2017 के अनुसार भारत में टीबी के अनुमानित मामले दुनिया के टीबी मामलों के एक चौथाई लगभग 28 लाख दर्ज हो गए थे।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है, तो आगे चलकर उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का धुआं इनडोर प्रदूषण का खतरनाक रूप है क्योंकि इसमें 7000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर का कारण बनते हैं। तंबाकू का धुआं पांच घंटे तक हवा में रहता है, जो फेफड़ों के कैंसर, सीओपीडी और फेफड़ों के संक्रमण को बढ़ाता है।

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के अनुसार भारत में सभी वयस्कों में 10.7 प्रतिशत धूम्रपान करते हैं। इनमें 19 प्रतिशत पुरुष और दो प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।

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