क्या टिक टॉक एप पर प्रतिबंध लगाएगा सुप्रीम कोर्ट?

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ब्लू व्हेल, पॉकेमान के बाद अब टिक टॉक बना कानून की मुसीबत
नई दिल्ली।
मौजूदा समय में गेम और एप से जुड़े मामले कानून के जानकारों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। बीते दो सालों में ऐसे 15 से ज्यादा मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। ताजा मामला है वीडियो एप TikTok का। इस पर प्रतिबंध का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। एप पर प्रतिबंध लगाने के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस पर गौर किया जाएगा।

साढ़े पांच करोड़ मंथली एक्टिव यूजर्स
टिक टॉक एप के इस समय भारत में 54 मिलियन यानी 5.4 करोड़ मंथली एक्टिव यूजर्स हैं। टिक टॉक को 2018 में भारत में लॉन्च किया गया और फरवरी 2018 में यह सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला नॉन गेमिंग एप बन गया।

क्या है मामला
मद्रास हाईकोर्ट के मदुरै बेंच में टिक टॉक एप के विरोध में एक याचिका दायर की गई। हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश में केंद्र सरकार को शॉर्ट वीडियो मेकिंग एप टिक टॉक को बैन करने की सलाह दी। इसके अलावा कोर्ट ने मीडिया हाउस को टिक टॉक एप द्वारा बनाए गए वीडियो को टेलीकास्ट करने से भी रोका। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस चीनी एप को बैन करने के आदेश में कहा है कि यह चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे रही है। मदुरै के वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता मूथू कुमार ने सांस्कृतिक अवमूल्यन, बाल यौन हिंसा, आत्महत्या को बढ़ावा देने जैसे मामलों को उठाते हुए टिक टॉक एप के विरोध में पिटिशन दायर की थी।

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16 अप्रैल को होगी सुनवाई
मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एन किरूबाकरण और एसएस सुंदर की पीठ ने केंद्र सरकार से 16 अप्रैल से पहले जबाब मांगा है। इस एप को बैन करने वाले मुद्दे पर अगली सुनवाई 16 अप्रैल को की जाएगी। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार से जबाब मांगते हुए कहा, क्या केंद्र सरकार अमरीका की तरह चाइल्ड ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट की तरह ही कोई नीति ला सकती है जो बच्चों को ऑनलाइन विक्टिम बनने से रोक सके?

इस मामले में टिक टॉक की ओर से बयान दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कंपनी स्थानीय कानून का पूरी तरह से सम्मान करती है और कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी का इंतजार कर रही है। इसके बाद ही किसी भी तरह का एक्शन लिया जाएगा।

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