जूताकांड में पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल, अज्ञात आरोपियों के खिलाफ दर्ज की गई तोड़फोड़ की रिपोर्ट
भोपाल। अक्सर फिल्मों में दिखाया जाता है कि कानून की आंखों पर काली पट्टी बंधी है। मतलब जो दिख रहा है, जरूरी नहीं कि वो सच है। उसे अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता। ठीक इसी परिपाटी पर उत्तर प्रदेश की पुलिस ने काम किया है। कानून की रखवालों ने आंखों देखी पर भरोसा ही नहीं किया।
मामला कबीरगंज में सांसद-विधायक जूताकांड का है। बुधवार को जिला कार्ययोजना की बैठक के दौरान माननियों के बीच जमकर जूतमपैजार हो गई थी। कलेक्ट्रेट में चल रही जिला कार्ययोजना की बैठक में बीजेपी विधायक राकेश सिंह और सांसद शरद त्रिपाठी आपस में भिड़ गए। प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन के सामने शुरू हुई बहस कब जंग में बदल गई पता ही नहीं चला। इस दौरान बैठक में कलेक्टर के साथ तमाम अधिकारी और कर्मचारी मौजूद थे। शिलान्यास के पत्थर पर नाम न लिखे जाने से सांसद शरद त्रिपाठी इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के विधायक को ४ सेकंड में ७ जूते मारे थे। हालांकि वीडियो को गौर से देखने पर पता चला कि बहस के दौरान विधायक राकेश सिंह ने सांसद को जूते से मारने के लिए धमकाया था और धमकाते ही सांसद ने जूतों की बारिश कर दी। विधायक ने पलटवार करने की कोशिश की लेकिन उनके हाथ में जूता नहीं थी। इस बिगडती स्थिति को पुलिस अधिकारियों ने बमुश्किल काबू में किया था। जिसके बाद बीजेपी विधायक राकेश सिंह के समर्थकों ने डीएम आवास के बाहर प्रदर्शन कर सांसद शरद त्रिपाठी के गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे। पुलिस ने विधायक समर्थकों की बात तो मानी। लेकिन एफआईआर गमला तोड़ने की दर्ज की गई है। दर्ज शिकायत के मुताबिक डीएम दफ्तर के कुछ गमले अज्ञात आरोपियों ने तोड़ दिए है। पुलिस उनकी तलाश कर रही है। जबकि पूरा देश जानता है कि बुधवार को कलेक्ट्रेट में हुई किस घटना के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है। लेकिन आरोपी और फरियादी दोनों ही सत्ताधारी दल के है। लिहाजा कानून की आंखे बंद है और पुलिस के हाथ बंधे हुए है।