सरकार चढ़ाव पर संगठन उतार पर…

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वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह का कॉलम

सीएम शिवराज और भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा

भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में कुछ वर्षों से जो सीन है उसमें सरकार किसी की भी हो संगठन की तुलना में हमेशा चढ़ाव पर रहता है और संगठन उतार पर दिखता है। शिवराज जी ने तो गुडों को जमीन में गाड़ देना डायलॉग मारकर फर्राटेदार बढ़त बना ली है। उज्जैन में भाजपा व संघ से जुड़े लोगों के जुलूस पर पथराव करने वालों कड़ी कारवाई कर अपने दांवों को सही साबित भी करने में जुट गए हैं। अभी संगठन पर अपना महत्व प्रमाणित करने का दायित्व आ गया है।

सत्ता का यही चरित्र है। संगठन के कंधों पर चढ़कर सरकार की रसमलाई खाने वाले नए सामंत बन जाते हैं। पंच- सरपंच से लेकर मंत्री-विधायक और सांसदों तक का रहन – सहन,घोड़ा गाड़ी के साथ बंगलों का करोड़ों रुपए के शाही रिनोवेशन व रख रखाव सब राजे रजवाड़ों को मात देता दिखता है। बहरहाल सादगी गुजरे जमाने की बातें हो गईं हैं। सत्ता की चकाचौन्ध और चापलूसों की जी हुजूरी से संगठन साइड लाइन हो जाता है। इस मामले में क्या कांग्रेस और क्या भाजपा सब एक घाट पर ही हैं।भाजपा की सत्ता है इसलिए फोकस उसी पर रहेगा। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की कभी भी घोषित होने वाली कार्यकारणी प्रसव वेदना से गुजर रही है मगर उसका ऐलान नही हो पाना नेता-कार्यकर्ताओं में बैचेनी बढा रहा है। इससे संगठन की साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं जो कि अध्यक्ष के आभा मण्डल को कम कर रहे हैं।

दिग्विजय सिंह, राज्यसभा सांसद, फाइल फोटो

इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का किसान आंदोलन कार्यकर्ताओं में उनकी ताकत के पत्ते खोलने वाला साबित होगा। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जरूर कांतिलाल भूरिया के चिरंजीव डॉ विक्रांत भूरिया को प्रदेश युवक कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित करवा कर कार्यकर्ताओं पर अपनी पकड़ प्रमाणित कर दी है।

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प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी के गठन को लेकर 9 महीने से तारीख पर तारीख ने वीडी शर्मा की छवि को चमकदार होने से रोका है। उनकी संगठन पर पकड़ भी ढीली पड़ी है। एक तरह से शर्मा को नन्दू भैया की कार्यकारिणी से ही काम चलाना पड़ रहा है। करीब एक साल बाद कोर ग्रुप की रस्मी बैठक सीहोर में हो पाई। वह भी इसलिए कि नए प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव और उनके साथ दो सह प्रभारी के साथ परिचय बैठक रखी गई थी। प्रभारियों की यह टीम मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन के सामने स्वयं ही प्रभारी कम प्रशिक्षु ज्यादा मान रही है। चर्चा में उन्होंने इस सत्य और तथ्य को स्वीकार भी किया है। अब भला बताइए ये प्रभारी चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष किस तरह से संगठन की पक्ष रख समन्वय कर पाएंगे। यह काम वरिष्ठ नेता विनय सहस्रबुद्धे भी सफलतापूर्वक नही कर पाए थे। मंत्रिमण्डल विस्तार के साथ निगम मंडलों में नियुक्ति और फिर टीम वीडी शर्मा का बिना विवाद व असन्तोष के ऐलान करना बेहद कठिन काम होगा। यद्द्पि कहा यही जा रहा है कि सब कुछ तय हो गया है और कभी भी घोषणा हो जाएगी। लेकिन हर बार तारीख बढ़ जाने पर संगठन की विश्वनीयता भी दांव पर लग गई है और कार्यकर्ताओं के सामने नेताओं की किरकिरी होने लगी है। वीडी शर्मा के समर्थक भी अपने नेता को असफल होता नही देखना चाहते इसलिए मानसिक दबाव बढ़ रहा है।

संगठन की कमजोरी में आजीवन सदस्यता निधि का मामला भी मुद्दा बन रहा है। इसमें ग्यारह करोड़ रुपए का लक्ष्य रखा था लेकिन पांच करोड़ भी एकत्र नही होने की खबर है। वरिष्ठ नेता रघुनन्दन शर्मा के प्रभार में यह कार्य जरूर गम्भीरता से सम्पन्न होता आया था लेकिन अब संगठन की पकड़ कमजोर होने से इसमें अपेक्षित नतीजे नही आ पा रहे हैं। प्रदेश भाजपा ने संगठन की दृष्टि से मण्डलों की संख्या लगभग दोगुनी कर दी है। लेकिन उनकी कार्यकारणी का गठन देरी से होना उदासीनता का भाव पैदा कर रहा है।

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सिंधिया और समर्थकों के धैर्य की परीक्षा का दौर

ज्योतिरादित्य सिंधिया, राज्यसभा सांसद

शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार जितना टल रहा है उतनी ही बैचेनी उनके केम्प में बढ़ रही है। कांग्रेस के नेता ऐसे हालात में सिंधिया की लाचारी पर यदाकदा चुटकी भी ले लेते हैं। भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में उनके समर्थकों को प्रवेश नही मिलने पर भी केके मिश्रा जैसे नेताओं ने खासे मजे लिए। कांग्रेस में यह भी कहा जा रहा है कि जिन्हें हम सिर माथे बैठाते थे उन्हें भाजपा की बैठकों में घुसने की जगह नही मिल रही है। लेकिन इतना तय है कि मंत्रिमंडल विस्तार में जितनी देरी होगी सिंधिया शिविर के नेताओं का धीरज उतना ही टूटता दिखे तो किसी को हैरत नही होगी।

कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कमलनाथ के ही आसार…

कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री

कांग्रेस में प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर डॉ विक्रांत भूरिया के चयन के बाद अब पीसीसी चीफ का मामला ही सुर्खियों में है। इस पद पर जीतू पटवारी का दावा सबसे मजबूत है। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब कमलनाथ अध्यक्ष पद छोड़ने को राजी हो। अभी कांग्रेस में यह मसला लटकता दिख रहा है। इतना जरूर है कि इसमें भी दिग्विजय सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी।

ये विचार वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह के हैं। उनकी अनुमति से प्रकाशित किए गए है।

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