Nepal Election: अमित शाह के निज सहायक समानुपातिक उम्मीदवार

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Nepal Election: कांग्रेस और ऐमाले गठबंधन के बीच सीधे मुकाबला, दोनों में से कोई भी जीता तो भारत के साथ पड़ोसी के कैसे होंगे संबंध, चीनी फॉर्मूले के चुनाव का दो व्यक्ति कर रहे नेपाल में विरोध

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पुष्प कमल दहल प्रचंड एवं केपी शर्मा ओली— फाइल फोटो

दिल्ली/काठमांडू। नेपाल में इसी महीने 20 तारीख को अहम चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव नेपाल में नवगठित सात राज्यों के साथ—साथ केंद्र के हैं। इस चुनाव में छोटी—बड़ी मिलाकर लगभग 100 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। नेपाल (Nepal Election) दक्षिण एशिया की दो बड़ी शक्तियों भारत और चीन के बीच महत्वपूर्ण देश है। इस कारण यहां होने वाली हर गतिविधि सामरिक महत्व के लिहाज से दोनों ही देशों के लिए उत्सुकता का विषय रहती है। सात नव गठित प्रदेशों में दूसरी बार चुनाव हो रहे हैं। इसमें सात मुख्यमंत्रियों का चयन होना है। वहीं देश के लिए प्रधानमंत्री का नाम भी देश के करीब 1 करोड़ 80 लाख मतदाता चुनेंगे। नेपाल के चुनाव काफी रोचक होते हैं। यहां मिश्रित चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है।

इसलिए महिलाओं पर केंद्रीत होते हैं चुनाव

नेपाल में प्रमुख दलों में करीब डेढ़ दर्जन हैं जो प्रधानमंत्री और कुर्सी के नाम तय करते हैं। उसमें प्रमुख दल नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी, ऐमाले और अन्य पार्टियां प्रमुख है। इनमें सभी दल अपने—अपने लोक लुभावने वादे जनता से कर रहे हैं। इसमें ऐमाले ने ऐलान किया है कि वह महिलाओं के लिए प्रतिवर्ष सैनेटरी पैड के लिए 1500 रूपए देगी। इसके अलावा भारत में कोलकाता के रास्ते जल परिवहन, मेट्रो ट्रेन, रोपवे ट्रांसपोर्ट जैसे वादे किए गए हैं। इसी तरह नेपाली कांग्रेस ने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा, खाद बनाने का कारखाना लगाना, जड़ी—बूटी कारोबार को दोगुना, देश में 20 लाख पर्यटक प्रतिवर्ष लेकर आना, प्रसूताओं को पांच हजार रुपए का भत्ता देना भी शामिल है। सभी पार्टियां महिलाओं पर इसलिए फोकस करती है क्योंकि यहां कुल मतदाताओं में से 91 लाख वोटर महिलाएं हैं। इसी तरह पुरूष मतदाताओं की संख्या साढ़े 88 लाख है।

विश्व में कितनी तरह की चुनाव प्रणाली

राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने अपने एजेंडे में हिंदू राष्ट्र बनाने, नेपाल में होने वाले बंद को रोकने, सीनियर सिटीजन को निशुल्क यातायात सुविधा के साथ—साथ सीमा विवाद सुलझाने का वादा किया है। नेपाल (Nepal Election) में चुनाव को लेकर मोहन वैद्य (Mohan Vaidya) और विप्लव विरोध में हैं। वे संसदीय व्यवस्था को ठीक नहीं मानकर चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं। इसी तरह नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने सभी घर में बिजली, एक पालिका एक उद्योग का वादा किया है। इस पार्टी ने भी नेपाल की चुनाव प्रणाली में सुधार करने का एजेंडा शामिल किया है। विश्व में चार तरह के चुनाव होते हैं। इनमें बहुमत निर्वाचन प्रणाली, समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली, मिश्रित निर्वाचन प्रणाली के अलावा चौथे प्रणाली के भीतर कई बातें हैं। इनमें से नेपाल के संविधान में मिश्रित चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है। जबकि भारत में बहुमत निर्वाचन प्रणाली के तहत चुनाव होते हैं।

चीन में इस तरह की प्रणाली का चलन

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पुष्प कमल दहल प्रचंड एवं शेर बहादुर देउबा— फाइल फोटो

बहुमत निर्वाचन प्रणाली के तहत सर्वाधिक मत पाने वाले व्यक्ति को विजेता माना जाता है। जबकि समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली के तहत दल अपने उम्मीदवार के नाम चुनाव आयोग को भेजते हैं। इसी प्रणाली के तहत चीन में चुनाव होते हैं। जबकि नेपाल में बहुमत और समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली अपनाई जाती है। इसलिए इस व्यवस्था को मिश्रित चुनाव प्रणाली कहा जाता है। नेपाल में सांसद को प्रतिनिधि सभा उम्मीदवार कहा जाता है। कुल सीट 275 है जिसमें से 60 फीसदी का चयन नेपाल की जनता करती है। यानि 165 उम्मीदवार का चयन जनता के जरिए होता है। जबकि 110 उम्मीदवार पार्टी तय करती है। जिन्हें वरीयता के अनुसार नेपाल में चुनाव आयोग में बंद लिफाफे में भेजा जाता है। जनता के कुल मतदान को सीट में भाग देकर उसका प्रतिशत निकाला जाता है। उसके परिणाम के अनुसार दलों के अनुसार भेजे गए समानुपातिक उम्मीदवार के नाम क्रम अनुसार चुने जाते हैं।

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इन कारणों से प्रचंड ने दिया समर्थन

नेपाल में सात राज्यों के चुनाव 2015 में हुए थे। अभी नेपाल में शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) और पुष्प कमल दहल प्रचंड (Pushp Kamal Dahal Prachand) के गठबंधन वाली सरकार है। प्रचंड वामपंथी नेता है और विपरीत विचारधारा के बावजूद मौजूदा गठबंधन के साथ चुनाव में फिर उतरे हैं। इससे पहले उन्होंने केपी शर्मा ओली (KP Sharma Olu) को प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए अपना समर्थन दिया था। ओली को चीन का करीबी नेता भी नेपाल में माना जाता है। इधर, चीन की वामपंथी नेता भी नेपाल में बिखरे कम्युनिस्ट विचारधाराओं वाली पार्टी को एक मंच पर लेकर आने का पूरा प्रयास करते रहे। हालांकि चीन इसमें कामयाब नहीं हो सका। प्रचंड ने मौजूदा सरकार को ही समर्थन देने का फैसला लिया। इस वक्त चित्र बहादुर केसी, माधव नेपाल, महंत ठाकुर का दल समेत अन्य एक मंच पर है। खबर है कि यदि मौजूदा गठबंधन चुनाव जीत जाता है ​तो देउबा दोबारा प्रधानमंत्री नहीं होंगे। इस शर्त के साथ प्रचंड ने गठबंधन बरकरार रखा है।

भारत के लिए कितना प्रभाव डालेगा चुनाव

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पुष्प कमल दहल प्रचंड, शेर बहादुर देउबा एवं केपी शर्मा ओली— फाइल फोटो

भारत और नेपाल की संस्कृति और धर्म में ज्यादा अंतर नहीं है। इसलिए भारत के साथ उसके रिश्ते सनातनी रहे भी है। भारत की आजादी में नेपाली नागरिकों की भी महत्ववपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन, भारत की वर्तमान सरकार के साथ पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की बन नहीं पाती थी। जिसमें मध्यस्थता की भूमिका में कई बार पुष्प कमल दहल रहे हैं। वे पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के निमंत्रण में दिल्ली आए थे। यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) से उनकी मुलाकात जरूर नहीं हुई थी। लेकिन, पार्टी ने पूरी गर्मजोशी के साथ प्रचंड को सम्मान दिया था। मौजूदा सरकार यदि नेपाल (Nepal Election) में दोबारा चुनी जाती है तो उसमें प्रचंड महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसा नेपाली कांग्रेस को भी लगता है। इस कारण नेपाली कांग्रेस ने प्रचंड से दो कदम आगे जाकर एक महत्वपूर्ण फैसला लिया। नेपाली कांग्रेस ने पाल्पा से संजीव राणा (Sanjeev Rana) को समानुपातिक उम्मीदवार बनाया है। संजीव राणा नेपाल के लिए बड़ा नाम न हो लेकिन भारत के लिए ज्यादा प्रभावित चेहरा है। दरअसल, वे भारत के गृहमंत्री अमित शाह के निज स्टाफ में रहे हैं। उनके नेपाल में समानुपातिक उम्मीदवार बनाने की जानकारी जन आस्था डॉट कॉम ने दी है।

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