भोपाल में कथित नक्सल लिंक में दंपति की गिरफ्तार पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और लेखकों में रोष
गुरुवार को लखनऊ के एटीएस कोर्ट में पेश किया जाएगा मनीष और अमिता को
नई दिल्ली। बीते कुछ दिनों में देशभर में नक्सल लिंक बताकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों और बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी का जो सिलसिला चला है, उसकी ताजा कड़ी में सोमवार को उत्तर प्रदेश के देवरिया और कानपुर के अलावा मध्य प्रदेश के भोपाल में गिरफ्तारियां हुई हैं। हालांकि इनके खिलाफ विरोध के स्वर भी तेज हो गए हैं। भोपाल से गिरफ्तार किए गए दंपति मनीष और अमिता श्रीवास्तव को सामाजिक कार्यकर्ता सीमा आजाद ने राजकीय दमन का एक और नमूना करार दिया है। साथ ही उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा है कि पुलिस की कहानी झूठी है। मनीष और अमिता की गिरफ्तारी पर देश भर के प्रगतिशील, वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ताओं और लेखकों में रोष है। गौरतलब है कि मनीष श्रीवास्तव, सीमा आजाद के भाई हैं और वे पिछले काफी समय से भोपाल में रह रहे थे। मनीष और अमिता को बुधवार को भोपाल से ट्रांज़िट रिमांड पर लखनऊ ले जाया जा रहा है। गुरुवार को लखनऊ के एटीएस कोर्ट में 1 बजे या उसके पहले उन्हें प्रस्तुत किया जाएगा। सीमा आजाद ने लखनऊ के राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, जागरूक समाज से अपील की है कि वे इस मौके पर एटीएस कोर्ट पहुंचें।
मामले में सोमवार को देवरिया और कानपुर से कुल छह लोगों को उत्तर प्रदेश के एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) ने गिरफ्तार किया। हालांकि पूछताछ के बाद इन्हें छोड़ दिया गया। इस बीच भोपाल में यूपी एटीएस ने कथित तौर पर एक दंपत्ति मनीष और वर्षा उर्फ अमिता श्रीवास्तव को नक्सल लिंक के नाम पर गिरफ्तार किया। यह दंपत्ति उत्तर प्रदेश के जौनपुर का निवासी है।
इस गिरफ्तारी पर इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “दस्तक” की संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता सीमा आजाद ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर पुलिस की कहानी को झूठा बताते हुए इस गिरफ्तारी को राजकीय दमन का एक और नमूना करार दिया है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में जो लिखा है उसे हम जस का तस प्रस्तुत कर रहे हैं—
“कल हम सब उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा उठाए गए चार लोगों के कुछ पता न चलने से परेशान थे, आज सुबह अखबारों से पता चला कि उप एटीएस ने भोपाल से उत्तरप्रदेश के मनीष श्रीवास्तव और अमिता श्रीवास्तव को नक्सल लिंक बताकर गिरफ्तार किया है। पुलिस अपनी स्टोरी में बता रही है कि उनके पास मनीष और अमिता के जंगल में गुरिल्लाओं से बात करते वीडियो है। हमेशा की तरह पुलिस की यह कहानी झूठी है। मनीष और अमिता राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, अपनी आजीविका के लिए अमिता भोपाल के एक स्कूल में पढ़ाती थी, और दोनों ही professional तौर पर अनुवादक है। मनीष मेरा भाई और अमिता मेरी भाभी है। दोनों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है, दोनों बहुत अच्छे विद्यार्थी रहे हैं। मनीष ने इलाहाबाद विश्ववद्यालय से BA और गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में MA किया है, अमिता ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ओरल हिस्ट्री में पीएचडी की है। दोनों छात्र जीवन से ही सामाजिक राजनैतिक कामों में सक्रिय रहे हैं, और इलाहाबाद और गोरखपुर दोनों जगहों जाने जाते हैं। अमिता कहानीकार कवि और गायिका भी हैं। उनकी शिरीन नाम से कविताएं, कहानियां विभिन्न साहित्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उन्होंने बोलीविया के खदान में काम करने वाली मजदूर डोमितिला की खदान का जीवन बयान करने वाली किताब let me speak का हिंदी अनुवाद किया है। दोनों ने मिलकर हान सुइन की ऐतिहासिक किताब morning deluge का हिंदी अनुवाद किया है जो कि शीघ्र प्रकाश्य है, Margaret Randall की पुस्तक Sandino,s daughter,s का हिंदी अनुवाद किया है। अमिता श्रीवास्तव ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर की पेशेंट है दोनों टाइम इंसुलिन लेना पड़ता है, मनीष को सर्वाइकल की समस्या है। पुलिस की कहानी फर्जी है और यह गिरफ्तारी लेखकों बुद्धिजीवियों राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर बढ़ते दमन का एक और नमूना है।”