Nirbhaya Fund: जुबान पर महिला सुरक्षा का वादा, जमीनी काम में उदासीन हैं सरकारें

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महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने निर्भया कोष की रकम खर्च करने में नाकाम रहीं देश की राज्य सरकारें
पांच साल में महज 20 प्रतिशत रकम खर्च पाईं विभिन्न सरकारें, 36 सौ करोड़ की ​राशि बाकी

सांकेतिक फोटो

नई दिल्ली। महिला सुरक्षा के लिए ठोस कदमों की दरकार हो या फिर किसी पीड़ित की सहायता की जरूरत, इसमें पैसे की कमी का कारण देश की लगभग हर सरकार का पसंदीदा जुमलों में से है। लेकिन हकीकत और आंकड़े कुछ और ही बयान कर रहे हैं। असल में महिला सुरक्षा के लिए जितनी रकम आवंटित की गई, कई राज्य सरकारें उसे पूरा खर्च करने में ही नाकाम रही हैं। यह जानकारी खुद केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दी गई है।

2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल करते हुए महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया कोष की स्थापना की थी। हैरत की बात यह है कि देश में बलात्कार और महिला उत्पीड़न की घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके बावजूद तमाम राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 2015 से 2018 के बीच निर्भया कोष में आवंटित की गई राशि में से महज 20 फीसदी ही खर्च कर सके हैं। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश किए गए इस आंकड़े को महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकारों की उदासीनता करार देते हुए कहा है कि इससे कोष की स्थापना का मकसद ही बेमतलब साबित हो रहा है।

एक हजार करोड़ रुपए से हुई थी निर्भया कोष की शुरुआत
दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी सुर्खिया बटोरी थीं। इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये के शुरुआती आवंटन के साथ महिलाओं की सुरक्षा के प्रति समर्पित एक विशेष कोष की स्थापना का ऐलान किया था। इसे निर्भया कोष का नाम दिया गया। वर्ष 2013 के बजट में इस कोष के लिए एक हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। लेकिन पैसा आवंटित होने के बावजूद सरकार इसे खर्च करने में नाकाम रही है।

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2015 में बदल दी गई नोडल एजेंसी
इस कोष के तहत आवंटित धन का महज एक प्रतिशत खर्च होने की वजह से 2015 में सरकार ने गृह मंत्रालय की जगह महिला व बाल विकास मंत्रालय को निर्भया कोष के लिए नोडल एजेंसी बना दिया। बावजूद इसके तमाम राज्य सरकारें इस रकम को खर्च करने में नाकाम रही हैं। बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कोष से पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे की दर पर चिंता जताई थी।

कोष में बची है 3600 करोड़ की रकम
केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से संसद में पेश आंकड़ों में बताया गया है कि केंद्र की ओर से इस मद में जारी 854.66 करोड़ की रकम में विभिन्न राज्य और केंद्रशासित प्रदेश महज 165.48 करोड़ रुपये ही खर्च कर सके हैं। इस कोष में फिलहाल 3600 करोड़ की रकम है। 2013 में स्थापना के बावजूद इस कोष से धन आवंटन की प्रक्रिया 2015 से तेज हुई। इसके तहत बलात्कार और अपराध की शिकार महिलाओं को विभिन्न योजनाओं के तहत मुआवजे समेत कई तरह की सहायता का प्रावधान है।

चंड़ीगढ़ फंड खर्च करने में अव्वल
कोष के तहत आवंटित रकम के इस्तेमाल में चंडीगढ़ (59.83%), मिजोरम (56.32%), उत्तराखंड (51.68%), आंध्र प्रदेश (43.23%) और नागालैंड (38.17%) जैसे राज्यों की स्थित बेहतर है। लेकिन इस मामले में सबसे खराब प्रदर्शन वाले पांच राज्यों में मणिपुर, महाराष्ट्र, लक्षद्वीप ने इस कोष का एक पैसा भी खर्च नहीं किया। वहीं पश्चिम बंगाल (0.76%) और दिल्ली (0.84%) 1 प्रतिशत राशि भी खर्च नहीं कर पाए। विडंबना यह है कि बलात्कार और महिला अपराधों के मामले में बंगाल और दिल्ली के नाम शीर्ष पांच राज्यों में शुमार हैं।

केंद्र को राज्यों, मंत्रालयों से 59 प्रस्ताव
सरकार ने बताया है कि पिछले तीन साल में विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों ओर केंद्र शासित प्रदेशों से निर्भया कोष के तहत 59 प्रस्ताव मिले हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि अधिकारिता समिति ने निर्भया कोष के तहत अनुदान के लिए अब तक 30 प्रस्तावों की सिफारिश की है। ईरानी ने इस संबंध में पूछे गए सवाल के लिखित उत्तर में बताया कि इन प्रस्तावों में महाराष्ट्र सरकार का महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए नवोन्मेषी परियोजनाओं की स्थापना करने संबंधी प्रस्ताव तथा गृह मंत्रालय का आत्म रक्षा प्रशिक्षण योजना संबंधी प्रस्ताव भी शामिल है।

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महिला—बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध पर निष्क्रिय हैं सरकारें
मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि दिल्ली को उक्त कोष के तहत शुरू की गई चार योजनाओं के लिए 35 करोड़ की रकम आवंटित की गई थी। लेकिन उसने पीड़ितों को मुआवजा देने पर महज 3.41 प्रतिशत रकम ही खर्च की। महिलाओं व बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकने की योजना पर किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने इस कोष में से अब तक एक पाई तक नहीं खर्च की है जबकि ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार ने अकेले इसी योजना के लिए 2017 में 93.12 करोड़ की रकम आवंटित की थी।

21 राज्यों ने एसिड हमलों, मानव तस्करी जैसे मदों पर खर्च ही नहीं किया
बलात्कार, एसिड हमलों व मानव तस्करी की शिकार और सीमा पार से होने वाली फायरिंग में मरने या घायल होने वाली महिलाओं को मुआवजा देने की योजना के तहत इस कोष से मिली रकम का 21 राज्यों ने इस्तेमाल ही नहीं किया। ऐसी पीड़िताओं को राज्य सरकारों की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता को बढ़ाने और विभिन्न राज्यों में मुआवजे की रकम में अंतर को पाटने के मकसद से केंद्र ने इस मद में 200 करोड़ की रकम जारी की थी।

रोजाना बलात्कार के 106 मामले
इस बीच देश में बलात्कार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के दौरान रोजाना बलात्कार के 106 मामले दर्ज किए। ऐसे हर 10 में से चार मामले में पीड़ित नाबालिग थे। रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में से 12 प्रतिशत बलात्कार से संबंधित होते हैं। एनसीआरबी ने कहा है कि 1994 से 2016 के बीच देश में छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं में चार गुनी वृद्धि दर्ज की गई है। ऐसे ज्यादातर मामलों में अभियुक्त उन बच्चियों के नजदीकी संबंधी ही होते हैं।

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