वक्त है बदले का : आयकर छापे के बाद ई—टेंडर घोटाले में एफआईआर

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केन्द्र और राज्य के बीच खीचीं तलवार, सात कंपनियों और तीन सॉफ्टवेयर कंपनियों को बनाया आरोपी, संबंधित विभाग के अफसर और राजनेता भी शामिल

भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हुए चर्चित घोटालों में से एक ई—टेंडर घोटाले में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ईओडब्ल्यू ने मामला दर्ज कर लिया है। ईओडब्ल्यू ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया है। इन मुकदमों में सात निर्माण कार्य से जुड़ी कंपनियों के अलावा तीन आईटी की कंपनियां भी शामिल है।

डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने मीडिया को बताया कि इस मामले में जांच के लिए प्राथमिकी जून, 2018 दर्ज हुई थी। ईओडब्ल्यू के पास सायबर से जुड़े मामले की विशेषज्ञता हासिल नहीं थी। इसलिए मामले की जांच कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम नई दिल्ली को दी गई थी। इस संस्था की रिपोर्ट को आधार बनाकर मामला दर्ज किया गया है। जांच में यह पाया गया है कि आॅनलाइन होने वाले ई—टेंडर की कीमतों को लेकर हेर—फेर किया गया। इसमें जल निगम के तीन टेंडर, लोक निर्माण विभाग के दो टेंडर, सड़क विकास निगम के एक टेंडर, लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का एक टेंडर ऐसे करके कुल नौ टेंडरों में गड़बड़ी की गई। यह घोटाला लगभग तीन हजार करोड़ रूपए का है।

किस कंपनी पर मामला दर्ज

मीडिया को जानकारी देते हुए डीजी केएन तिवारी
डीजी ने बताया कि इस मामले में हैदराबाद की कंपनी मैसर्स जीवीपीआर लिमिटेड, मैसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंपनियां दी ह्यूम पाइप लिमिटेड, मैसर्स जेएमसी​ लिमिटेड, बड़ौदा की कंपनी सोरठिया बेलजी प्रायवेट लिमिटेड, मैसर्स माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्टक्शन कंपनी मैसर्स रामकुमार नरवानी लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें संचालकगणों को आरोपी बनाया गया है।

आईटी की यह कंपनियां भी आरोपी
ईओडब्ल्यू ने इस मामले में साफ्टवेयर बनाने वाली आॅस्मो आईटी सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, एमपी एसईडीसी, एन्टेस प्रायवेट लिमिटेड और बैगलोर की टीसीएस कंपनी पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है। इसके अलावा संबंधित विभाग के अफसरों और कर्मचारियों को भी आरोपी बनाया गया है। सभी के खिलाफ जालसाजी, दस्तावेजों की कूटरचना, षडयंत्र करना, सूचना प्रौद्योगिकी का गलत इस्तेमाल करना और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एक पते पर है दर्जनों कंपनियां
एफआईआर में शामिल जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड हैदराबाद की कंपनी है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी है, जो सिविल इंजीनियरिंग के काम करती है। यह कंपनी 6 दिसंबर, 1997 को बनी थी। इसकी अधिकृत शेयर पूंजी 33 करोड़ रुपए है। कंपनी की आखिरी वार्षिक आम सभा 25 सितंबर, 2018 को हुई थी। उस वक्त यह मामला उछल गया था। कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, कंपनी के डॉयरेक्टर्स में जीवीरा शेखर रेड्डी, मोहन कृष्ण रेड्डी, जी शिवापोथुलुरू वीरारेड्डी, राजशेखरा रेड्डी, सामीरेड्डी वीरा लक्ष्मी देवी शामिल हैं। कंपनी हैदराबाद के जुबली हिल्स के पते पर रजिस्टर्ड है। इसी पते पर अन्य नौ कंपनियां भी रजिस्टर्ड हैं। इनमें विजया ​कन्वेंशन्स, शिवरा शंकर इंफोटैक, शिवा शंकर मिनिर्ल्स, शास्त्र इन्फ्राटैक इंटरप्राइजेज, वीरा एनर्जी, न्यू इरा इंश्योरेंश ब्रोकिंग सर्विस, शिवा शंकर इंफोटैक, जीएसपी इंफ्राटैक डेवलपमेंट और जीएसपी टूर्स एंड ट्रेवल्स शामिल हैं।
इन सभी के डॉयरेक्टर जीवीपीआर में शामिल कारोबारी ही हैं। जी वीरा शेखर रेड्डी 14 अन्य कंपनियों में डायरेक्टर हैं। इसी तरह मोहन कृष्ण रेड्डी नौ कंपनियों में, जी शिवापोथुलुरू वीरारेड्डी 7 कंपनियों में, राजशेखरा रेड्डी 11 कंपनियों में, सामीरेड्डी वीरा लक्ष्मी देवी 2 कंपनियों में डॉयरेक्टर हैं।

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राजनीतिक पहुंच वाली कंपनियां
ईओडब्ल्यू ने जिस कंपनी पर मुकदमा दर्ज किया है उसमें शामिल द इंडियन ह्यूम पाइप कंपनी लिमिटेड है। यह कंपनी 20 जुलाई, 1926 को मुंबई के पते पर रजिस्टर्ड हुई। इस कंपनी की अधिकृत शेयर पूंजी सरकारी दस्तावेजों में 20 करोड़ रुपए बताई गई है। कंपनी का मुख्य काम मशीनरी, उपकरण की होलसेल आपूर्ति है। कंपनी की आखिरी वार्षिक आम सभा 20 जुलाई, 2018 को हुई थी। इसके डॉयरेक्टर्स में मयूर राजस दोशी, पांडुरंग दिनकर केलकर, ज्योति राजस दोशी, राजेंद्र मोतिचंद गांधी, रामेश्वर डियोकिसन सर्दा, बालकृष्णनन नाचिमुथु, अनिमा भूपेंद्र कपाड़िया, विजयकुमार महाबीर प्रसाद जटिया, राजस रतनचंद दोशी शामिल हैं। कंपनी मुंबई के कंस्ट्रक्शन हाउस वालचंधिराचंद मार्ग के पते पर रजिस्टर्ड है। कंपनी के डॉयरेक्टर्स में मयूर राजस दोशी 5 अन्य कंपनियों, पांडुरंग दिनकर केलकर 1, ज्योति राजस दोशी 7, रामेश्वर डियोकिसन सर्दा 5, अनिमा भूपेंद्र कपाड़िया 3, विजयकुमार महाबीर प्रसाद जटिया 18 और राजस रतनचंद दोशी 10 अन्य कंपनियों में डॉयरेक्टर हैं। जबकि राजेंद्र मोतिचंद गांधी और बालकृष्णनन नाचिमुथु अन्य किसी कंपनी से नहीं जुड़े हैं। कंपनी के पते पर नौ अन्य कंपनियां भी रजिस्टर्ड हैं, जिनके डॉयरेक्टर्स ह्यूम पाइप के कर्ताधर्ता ही हैं।

जांच करने पर अफसर को हटाया था।
एमपी एसईडीसी के एमडी मनीष रस्तोगी 1994 बैच के अधिकारी हैं। उन्होंने ही इस मामले की आंतरिक जांच की थी। जांच में रस्तोगी ने पाया कि राजगढ़ और सतना जिले में ग्रामीण पानी की सप्लाई स्कीम के 3 कॉन्ट्रैक्ट में फेरबदल कर हैदराबाद की 2 कंपनियों और मुंबई की 1 कपनी को सबसे कम बोली लगाने वाला बनाया गया। पता चला कि कुछ बोली लगाने वालों को अवैध तौर पर पहले ही पता चल गया कि सबसे कम बोली कितने की है। इन 3 प्रोजेक्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट की रकम 2,322 करोड़ रुपए थी। ईटी के मुताबिक इसी तरह PWD के 6 कॉन्ट्रैक्ट, जल संसाधन विभाग, एमपी रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की ई-बोली में भी गड़बड़ी हुई। इसके लिए रस्तोगी ने टीसीएम और एंटारेस सिस्टम को 6 जून को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। यह मामला लीक होने के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार ने रस्तोगी को उस विभाग से हटा दिया था।

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क्या था मामला
MPSEDC ने पत्र लिखकर 6 और टेंडर को रद्द करने के लिए कहा। आंतरिक जांच में OSMO IT सॉल्यूशन पर सवाल उठ रहे हैं। OSMO को समान नंबर की आईडी के लिए 5 पासवर्ड दिए गए थे। इनको अवैध रूप से उपयोग कर बोलियों में हेराफेरी की गई। OSMO के डायरेक्टर वरूण चतुर्वेदी ने घोटाले में उनकी कंपनी के किसी तरह के रोल से इंकार किया है। रस्तोगी ने इस मामले पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया। मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी बीपी सिंह के आदेश के बाद सभी 9 टेंडर जांच के लिए इकोनॉमिक अफेंस विंग को सौंप दिए गए। ईओडब्लू के एक अधिकारी ने ने 3000 करोड़ रुपए की रकम का अनुमान लगाया है।

ब्यूरोक्रेसी में मचा हड़कंप
ईओडब्ल्यू डीजी ने जैसे ही मीडिया को ब्रीफि​ंग की तो चारों तरफ तहलका मच गया। इस एफआईआर के राजनीतिक मायने काफी है। कई संस्था और उससे जुड़े लोग भाजपा या उसके एसोसिएट संस्थाओं से जुड़े है। इस एफआईआर को दबी जुबान में आयकर छापे का जवाब भी कहा जा रहा है। मामले की तकनीकी रूप से जांच हुई तो कई विभागों के अफसरों के सर्विस रिकॉर्ड में बन आएगी। जो अफसर इस जांच की जद में आ सकते हैं उसमें मोहम्मद सुलेमान, आरएस जुलानिया, विवेक अग्रवाल, हरिरंजन राव समेत कई अन्य अफसर है। इसके अलावा नरोत्तम मिश्रा समेत कई अन्य मंत्री भी जद में आ सकते है। इस कारण अभी कमलनाथ सरकार में शामिल ब्यूरोक्रेसी में चिंता बढ़ गई है। भविष्य में उनकी कमियों को तलाशकर परेशान न किया जाए।

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