MP Cop News: इंटरनेट की 5जी स्पीड ने बढ़ाई सीबीआई की टेंशन, बेशर्म सर्चिंग से बाल—महिला अपराध का डर, एमपी की राजधानी भोपाल में चल रहा इस बात को लेकर मंथन
भोपाल। सूचना संचार में 2जी, 3जी, 4जी के बाद अब 5जी की स्पीड आ गई है। भारतीय संस्कृति में कितना असर पड़ रहा है, यह जिम्मेदारी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानि सीबीआई बारीकी से मॉनिटरिंग कर रहा है। इस विषय पर सीबीआई में तैनात एसपी प्रवीण मंडलोई ने प्रकाश डाला। वे मध्यप्रदेश पुलिस मुख्यालय (MP Cop News) के आफिसर मेस में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन एक सत्र को संबोधित कर रहे थे। इसमें यूपी पुलिस के एडीजी डॉक्टर जीके गोस्वामी ने भी भावी चुनौतियों को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि समाज में सफल सरकारी सेवा देने का मकसद यह नहीं कि निर्दोष को फंसा दिया जाए। जितनी न्यायालयों की जवाबदारी है उससे कहीं अधिक विधि अनुसार उसके समक्ष सबूत पेश करके उचित न्याय दिलाना हमारी ड्यूटी है। कार्यशाला में महिला और बाल अपराधों को लेकर कई बिंदुओं पर चर्चा हुई।
यह बोले यूपी के एडीजी
पुलिस मुख्यालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार द प्रैकेडमिक एक्शन रिसर्च इनिशिएटिव फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच लैब (परिमल) और जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “जीवा कार्यशाला” चल रही है। जिसके दूसरे दिन महिला एवं बाल अपराध, कानून के प्रावधानों और विवेचना में निष्पक्षता पर आधारित बिंदुओं पर मंथन हुआ। पुलिस ऑफिसर्स मेस के पारिजात हॉल में आयोजित कार्यशाला के पहले सत्र में उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी जीके गाेस्वामी (ADG GK Goswami) ने संबोधित किया। उन्होंने साक्ष्यों को जुटाने और उनकी कड़ी से कड़ी जोड़कर माननीय न्यायालय में प्रस्तुत करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विवेचना के दौरान पारदर्शिता रखें ताकि पीड़ितों को उचित न्याय मिल सके और किसी निर्दोष को सजा न हो। कार्यक्रम में विशेष रूप से एडीजी प्रशिक्षण अनुराधा शंकर (ADG Anuradha Shankar) प्रमुख रूप से उपस्थित थीं। कार्यशाला के सभी सत्रों का संचालन परिमल के सचिव एवं डीसीपी डॉ. विनीत कपूर (DCP Dr Vineet Kapoor) ने किया। एडीजी डॉक्टर जीके गोस्वामी ने कहा कि किसी भी अप्रिय घटना के दौरान पीड़ित सबसे पहले न्याय की मांग करता है। न्याय पाने के लिए सबसे पहले हमें उसकी सच्चाई तक पहुंचना होता है। इसमें जरूरी है सबूत। तथ्यों के पीछे छिपे सच को उजागर करने में साक्ष्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आप भी जानिए जेआरएफ का पूरा मतलब
एडीजी ने कहा कि सत्य की बिनाह पर ही हम न्याय तक पहुंचेंगे। उन्होंने “जेआरएफ” (JRF) शब्द को न्याय के रूप उल्लेखित करते हुए कहा कि यहां जे का अर्थ है जस्टिस। काम ऐसा हो कि किसी के साथ अन्याय ना हो। “आर” का अर्थ है रीजनल। हम कोई भी बात कहें तो उसमें तर्क हो। अदालतों में केवल तर्क दिए जाते हैं। इसी के आधार पर अधिवक्ता, जज को कन्वेंस करने का प्रयास करते हैं तभी न्याय तक पहुंचा जाता है। “एफ” का अर्थ है फेयरनेस यानी पारदर्शिता। यदि आप किसी विषय के पक्षधर हैं तो वो चीज कभी उचित नहीं हो सकती। हम जो सबूतों का वर्गीकरण करते हैं वो प्राइमरी और सेंकेंडरी होते हैं। जो व्यक्ति चश्मदीद है वही प्राइमरी एवीडेंस कहलाता है। शेष सभी सेकेंडरी एवीडेंस कहलाते हैं। कई बार चश्मदीदों के आधार पर ही जरूरी नहीं है कि हम न्याय की ओर बढ़ पाएं। वर्ष 2014 से 2019 में हुए रेप के प्रकरणों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 60 फीसदी मामलों में आरोपी छूट जाते हैं।
इन कारणों से बलात्कार पीड़िताओं को नहीं मिल रहा न्याय
एडीजी ने कहा कि इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं या तो आरोपी बेकसूर था या सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया। इसी तरह पॉक्सो एक्ट के मामले में भी है। इस 60 फीसदी गेप को कैसे दूर किया जाए। कई बार विवेचना के दौरान एक पक्ष का साथ देने से निर्दोष भी दोषी करार दे दिए जाते हैं। दरअसल वे आरोपी भी एक तरह से पीड़ित हुए। यौन उत्पीड़न के मामलों (MP Cop News) में विवेचना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि विवेचना में यह ध्यान रखें कि कड़ियां एक-दूसरे से मजबूती से जुड़ें, ताकि आरोपी को इसका फायदा ना मिल सके। इस दौरान उन्होंने विभिन्न धाराओं और अधिनियमों के बारे में जानकारी दी। विवेचना में साक्ष्यों को जुटाने में फॉरेंसिक साइंस के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
बच्चों के विषय पर यह बोले विशेषज्ञ
दूसरे सत्र में भोपाल सीएमएचओ डॉक्टर प्रभाकर तिवारी, रीजनल फारेंसिक साइंस लैब भोपाल के साइंटिस्ट डॉक्टर एके सिंह, एडीपीओ मनीषा पटेल, एडवोकेट रजनीश बरैया, सिविल सोसायटी वर्कर अर्चना सहाय, यूनिसेफ के पॉक्सो ट्रेनर अमरजीत, एसीपी निधि सक्सेना, भोपाल सिविल सोसायटी वर्कर एक्टिविस्ट सौम्या सक्सेना, पिरामल फाउंडेशन की स्वाति सिंह उपस्थित थे। पर्सपेक्टिव एंड परसूट्स ऑफ जस्टिस के अतंर्गत “री-विक्टिमाइजेशन थ्रू द प्रोसेस ऑफ एवीडेंस कलेक्शन इन हॉस्पिटल एंड हेल्थ फेसिलटी” और “पॉक्सो एंड लॉ इन्फोर्समेंट प्रॉब्लम्स इन इंवेस्टिगेशन एंड जस्टिस डिलीवरी” थीम पर पैनलिस्ट ने विचार रखे। री-विक्टिमाइजेशन थ्रो द प्रोसेस ऑफ एविडेंस कलेक्शन इन हॉस्पिटल्स एन्ड हेल्थ फेसेलिटीस के अंतर्गत मेडिकल फॉरेसिंक एंविडेंस और जांच प्रक्रिया के बारे में चर्चा की गई।
यह होती है विधि विरोधी मामलों में समस्याएं
भोपाल रीजनल फॉरेसिंक लैब में पदस्थ डीएनए एक्सपर्ट, सीनियर साइंटिस्ट, डॉ अनिल कुमार सिंह (Dr Anil Kumar Singh) ने बताया कि घटना स्थल पर पूरे एविडेंस कलेक्ट किए जाते हैं। लेकिन एक्जामिनेशन और कलेक्शन के दौरान जल्दबाजी करते हैं। जिससे जांच (MP Cop News) प्रभावित हो जाती है। डॉ रजनीश पवैया, डिफेंस लॉयर ने बताया इंवेस्टिगेशन से लेकर ट्रायल तक कई स्तर पर सुधार की जरूरत है। किसी भी प्रकरण में दाेंनो पक्षों को ध्यान में रखना चाहिए। सीएचए, ट्रेनिंग एंड एडवायजरी के स्टेट हेड, दीपेश चौकसे ने बताया कि जब पाॅक्सो विक्टिम बच्चों को एक जिले से दूसरे जिले के लिए इंवेस्टिगेशन के लिए जाना पड़ता है, तो उसको परेशानी होती है। चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन में रहने वाले बच्चों को कंपन्शेसन भी बहुत कम मिल पाता है। ऐसे बच्चों के लिए सबसे जरूरी होता है सपोर्ट पर्सन, जिनकी संख्या सिर्फ 12 है। इसमें सुधार की जरूरत है।
इंटरनेट से अश्लील कंटेंट हटाना चुनौती
कार्यशाला के दूसरे दिन अंतिम सत्र में सीबीआई एसपी प्रवीण मंडलोई ने कहा कि इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट की भरमार है। हर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर CSEM (Child Sexual Abuse Material) कंटेंट मौजूद है। इस तरह के कंटेंट को इंटरनेट से हटाना बड़ी चुनौती है। पुलिस को इस तरह के कंटेंट को आइडेंटिफाई करने के लिए स्कैन करना होता है। यू-ट्यूब के साथ ही कई वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने CSEM कंटेंट को हटाया है। सीबीआई ने स्कैन करने के बाद 269 रिफरेंस इंटरपोल को भेजे हैं। सीबीआई ने अश्लील कंटेंट को स्कैन करने और उसे इंटरनेट से हटाने के लिए ऑपरेशन चलाया है। भारत में 5जी नेटवर्क आने के बाद तेजी से सेक्सुअल कंटेंट वायरल हो रहा है।
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