MP Cop News: डीजीपी की फटकार के बाद करोड़ों रुपए के घोटाले में हुई एफआईआर

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 Bhopal Cop News: पुलिस मुख्यालय के तीन मिनिस्ट्रीयल स्टाफ कर्मचारी फंसे, जाली दस्तावेजों की मदद से करोड़ों रुपए के बिल लगाकर अपने खातों में रकम कराई गई ट्रांसफर, ट्रैजरी के सॉफ्टवेयर ने पकड़ी थी गड़बड़ी, स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के बाद डीजीपी ने भोपाल पुलिस कमिश्नर को कार्रवाई करने दिए थे आदेश

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सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

भोपाल। डीजीपी कैलाश मकवाना की फटकार के बाद करोड़ों रुपए के प्रो—लांग सर्टिफिकेट के जरिए निकाली गई रकम के मामले में जहांगीराबाद पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर लिया है। इस संबंध में भोपाल पुलिस कमिश्नर (MP Cop News) को पिछले महीने ही कार्रवाई करने के आदेश पुलिस मुख्यालय की तरफ से दिए गए थे। इसके बावजूद एफआईआर नहीं होने पर पुलिस मुख्यालय ने तल्खी दिखाई थी।

भोपाल पुलिस मौन, पीएचक्यू ने एफआईआर के संबंध में दी जानकारी

इस पूरे मामले में भोपाल पुलिस ने चुप्पी साध ली। जबकि पुलिस मुख्यालय (PHQ) की तरफ से एडीजी अनिल कुमार (ADG Anil Kumar) ने बताया कि तीनों आरोपी मिनिस्ट्रीयल स्टाफ में तैनात थे। इसमें सूबेदार(अ) नीरज कुमार, उनि (अ) हरिहर सोनी और सउनि (अ) हर्ष वानखेड़े है। उनको मेडिकल देयको के आहरण में गड़बड़ी की आशंका होने पर 08 जनवरी 2025 को निलंबित कर दिया गया था। देयकों में कपटपूर्ण भुगतान पर जांच आदेशित की गई थी। पुलिस मुख्यालय की जांच समिति ने प्रतिवेदन पेश कर दिया था। आरोपियों ने कूट रचित प्रॉलोंग मेडिकल सर्टिफिकेट बनाकर अपने ही खाते में देयकों का भुगतान किया था। तीनों कर्मचारियों के आपराधिक कृत्य के लिए थाना जहांगीराबाद में अपराध पंजीबद्ध करने हेतु जांच प्रतिवेदन प्रेषित किया गया था।

अभी तो आठ बिल ही हुए हैं उजागर

पुलिस मुख्यालय के पास यह पूरा मामला ट्रेजरी विभाग के साफ्टवेयर से पता चला था। रेंडम जांच के दौरान एक ही बीमारी के एक ही बिल पाए गए थे। जिसके संबंध में ट्रेजरी ने पुलिस मुख्यालय को गड़बड़ी की शंका जताते हुए आगाह किया था। इसी प्रकरण की गुप्त जांच की जा रही थी। पुलिस मुख्यालय की आंतरिक संमिति ने दस बिलों की पड़ताल की थी। जिसमें आठ बिल फर्जी पाए गए। अब सूबेदारनीरज कुमार (Neeraj Kumar) , उनि हरिहर सोनी (SI Harihar Soni) और सउनि हर्ष वानखेड़े (ASI Harsh Wankhede) के कार्यकाल के प्रत्येक बिल की स्क्रूटनी कमेटी की तरफ से की जा रही है। शुरुआती पड़ताल में तीनों के खाते में करीब 70 लाख रुपए की राशि ट्रांसफर होने के सबूत मिल गए हैं। प्रत्येक के खाते में 20 से 30 लाख रुपए की रकम जमा हुई थी। नीरज अहिरवार (Neeraj Ahirwar) पुलिस मुख्यालय की लेखा शाखा में अकाउंट अफसर था। वहीं हर्ष वानखेड़े और हरिहर सोनी के पास क्लर्क की जिम्मेदारी थी। तीनों के खिलाफ एआईजी वेलफेयर अंशुमान अग्रवाल (AIG Anshuman Agrawal) ने जांच की थी। उनके साथ वित्त अधिकारी रीना यादव (Reena Yadav) और तीन आडिटर्स को भी शामिल किया था।

कल्याण शाखा के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध

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इस घोटाले को लेकर पुलिस मुख्यालय ने स्वास्थ्य विभाग से भी गोपनीय रिपोर्ट मांगी थी। जिसमें पता चला कि नीरज कुमार, हरिहर सोनी और हर्ष वानखेड़े की तरफ से लगाए गए सारे विकल्पों के दस्तावेज उनकी तरफ से जारी ही नहीं हुए। तीनों आरोपियों (MP Cop News) ने उक्त मेडिकल अधिकारियों के बिल में लगे सील और दस्तावेजों की कूटरचना की थी। उसमें जो नंबर लगे थे वह पूर्व में जारी किसी अन्य बिल के थे। उन्हीं नंबरों में बार—बार भुगतान होने पर यह फर्जीवाड़ा पकड़ में आया था। पुलिस मुख्यालय के अफसरों को शंका है कि इस फर्जीवाड़े में लेखा शाखा के अलावा वेलफेयर शाखा के भी कुछ कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध हैं। इस फर्जीवाड़े के सामने आने के बाद पुलिस मुख्यालय के इन दोनों शाखाओं में लंबे समय से तैनात सभी कर्मचारियों के काम भी बदलने की कवायद की जा रही है।

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पूरे प्रदेश की सभी यूनिट में भी छानबीन जारी

प्रो—लांग सर्टिफिकेट घोटाले में आरोपी नीरज कुमार, हरिहर सोनी और हर्ष वानखेड़े ने यह तकनीक कैसे हासिल की इस संबंध में पता लगाया जा रहा है। आरोपियों को जहांगीराबाद (Jahangirabad) थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उन्हें अदालत में पेश करके फर्जीवाड़े की योजना की शुरुआत के संबंध में पूछताछ की जाएगी। सूत्रों के अनुसार प्रो—लांग सर्टिफिकेट (Pro-long Certificate) पुलिस कर्मचारियों के मेडिकल बिल से संबंधित भुगतान पर बनाया जाता है। इसके बिना किसी भी उपचार से संबंधित बिल पर भुगतान नहीं होता था। यह प्रमाण पत्र के मान्यता की अवधि एक साल होती है। यदि पुलिस अधिकारी या कर्मचारी को बीमारी ठीक नहीं होने पर उसे रिन्यू कराना होता है। आरोपियों ने साफ्टवेयर की तकनीकी कमी का फायदा उठाया है। जिसके बाद उसे भी अपडेट किया जा रहा है। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह फर्जीवाड़ा 2019 से लगातार 2024 तक किया गया। इसलिए इस अवधि के सभी बिलों की बारीकी से जांच की जा रही है। इसके अलावा प्रदेश के सभी यूनिट को चेताया गया है कि प्रो—लांग सर्टिफिकेट को लेकर अपने स्तर पर पड़ताल की जाए।

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