Bhopal Crematorium News: चार के भरोसे 40 चिताएं, शमशान से संकट के संकेत

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Bhopal Corona Effect News: चिताएं की लपटों के बीच प्रशासन के साथ टकराव की खबरें

Bhopal Crematorium News
विश्रामगृह की फाइल फोटो

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal Crematorium News) में फैल रहे संक्रमणों के बीच मौत के आंकड़े को लेकर बहस चल रही है। सरकार के आंकड़े कुछ बयां कर रहे है जबकि शमशान घाट पर जलती चिताएं की लपटें चिंता की तरफ इशारा कर रही है। इन सबके बीच प्रशासन और शहर के कई विश्राम घाट कमेटी के बीच टकराव की खबरें भी मिल रही है। इन खबरों को कपोल बताकर टाला जा रहा है। लेकिन, जो विषय सामने आए हैं उसको कोई नहीं टाल सकता। शहर में डॉक्टरों के इंतजामों को लेकर जितनी सख्ती सरकार दिखा रही है उतनी संजीदगी मोक्ष स्थल की व्यवस्थाओं को लेकर नहीं दिख रही।

राजधानी होने के चलते बिगड़ रहे हालात

भोपाल के आस—पास छोटे कई जिले हैं। वहां से भी कोरोना के संक्रमित ऐसे मरीज जो गंभीर है उन्हें भोपाल के अस्पतालों में शिफ्ट किया जा रहा है। इतना ही नहीं मौत होने पर शव को उस जिले में नहीं लेकर जाने दिया जा रहा है। इन शवों का अंतिम संस्कार कोविड गाइड लाइन के तहत भदभदा और सुभाष नगर विश्राम घाट में हो रहा है। वहीं झदा कब्रिस्तान में मुस्लिम समाज के शवों को दफनाया जा रहा है। इस काम के लिए विश्राम घाट की कमेटियां इंतजाम करती है। यहां लकड़ी की कमी से लेकर कई अन्य दूसरी समस्याएं अब सामने आने लगी है। इन्हीं विषय को लेकर कमेटी और प्रशासन के बीच बंद कमरों में मंथन बैठक चल रही है। इस बात का मजमून बाहर आने नहीं दिया जा रहा है।

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यह है समस्या

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विश्रामगृह की फाइल फोटो

विश्राम घाट में अंत्येष्टि का काम कर्मकांडी या फिर डोम समाज के लोग करते हैं। इनकी संख्या शहर में ज्यादा नहीं है। इसलिए विश्राम घाट कमेटी की तरफ से यह प्रश्न उठाया गया है। दर्जनों शव की अंत्येष्टि के लिए विश्रामघाट में कर्मकांडी कम पड़ने लग गए है। इसलिए सुझाव दिया गया है कि चिरायु और हमीदिया अस्पताल के शव का अंतिम संस्कार बैरागढ़ में किया जाए। इसके अलावा हिनोतिया आलम में भी अतिरिक्त विश्राम स्थल में अंत्येष्टि की जाए। ताकि सुभाष नगर और भदभदा विश्राम घाट में पड़ रहे दबाव को कम किया जा सके। इसी विषय को लेकर शनिवार को सोशल मीडिया में एक समाचार वायरल हुआ। हालांकि भदभदा विश्राम घाट की तरफ से अरुण चौधरी (Arun Choudhry) ने इस संदेश को भ्रामक बताया।

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चार लोग कितनी चिताए जलाएंगे

भोपाल में भदभदा विश्राम घाट में सबसे ज्यादा दबाव रहता है। यहां कोविड गाइड लाइन के तहत सबसे ज्यादा अंत्येष्टि भी होती है। लेकिन, यहां के इंतजामों की हकीकत यह है कि केवल चार कर्मकांडी है। यह लोग दिनभर चिताए जलाने का काम कर रहे हैं। औसतन एक शव के लिए तीन क्विंटल लकड़ी लगती है। इन्हें जमाने में समय से लेकर अंत्येष्टि में काफी वक्त लगता है। कर्मकांडी कर्मचारी शहर में उपलब्ध भी नहीं है। यह काम हर कोई नहीं कर सकता है। भ​दभदा विश्राम घाट कमेटी के पदाधिकारी अरुण चौधरी ने कर्मकांडी की संख्या चार बताते हुए कहा कि मेरे पास अभी तकनीकी बिंदुओं पर आपको विस्तृत जानकारी देने का समय नहीं है। हालात काफी चिंताजनक हैं।

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तस्वीरें बयां कर रही हालातों को मान जाइए

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विश्रामगृह की फाइल फोटो

शहर में कोरोना संक्रमण के फैलते प्रभाव की तस्वीरें हर तरफ से आ रही है। अस्पतालों में हंगामा, इंजेक्शन की कालाबाजारी, इंजेक्शन की चोरी, दवा के नाम पर अवैध वसूली से लेकर दूसरी समस्याएं विकराल होती जा रही है। एक तरफ कर्मकांडी की कमी झलकने लगी है वहीं दूसरी तरफ एम्बुलेंस का भी संकट है। मरीजों को लाने और ले जाने में लगे वाहनों के बीच सामान्य मौत वाले मरीजों को अंत्येष्टि के लिए वाहन ले जाने मुक्ति वाहन नहीं मिल पा रहे हैं। दैनिक भास्कर में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 15 अप्रैल को 116 व्यक्तियों की मौत हुई। दो दिन बाद यह आंकड़ा 118 बताया गया। जबकि दोनों ही दिन सरकारी आंकड़ों में मौतों की संख्या चार बताई गई।

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यहां पर केवल तीन

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यही समस्या सुभाष नगर विश्राम घाट में भी बनने लगी है। यहां कर्मकांडी की संख्या केवल तीन है। यह संख्या औसत मृत्यु दर को देखते हुए समिति की तरफ से तय की गई है। यहां पर बिजली से शवदाह करने का भी संयत्र है। समिति के पदाधिकारी शोभराज सुखवानी ने बताया कि तीन कर्मचारी पहले पर्याप्त थे। हालांकि वे कोविड मरीजों के शव को लेकर कुछ नहीं बोल सके। यह संभव है कि सरकार और प्रशासन के दबाव में समितियां अपनी राय या पीड़ा व्य​क्त नहीं कर पा रही है। लेकिन, कर्मकांडियों की संख्या बता रही है कि शव दाह करने में किस तरह से काम लिया जा रहा है।

नोट: हमारा उद्देश्य सनसनी या भय फैलाना नहीं है। समाचार के जरिये सरकार और सिस्टम को आगाह करना है। यह बहुत संयमित होकर प्रदेश और जनहित में सेवाकार्य करते रहने का है। इसमें नागरिकों से भी अपील है। इन परिस्थितियों को गंभीरता से ले और घर से न निकलकर समाज में योगदान दे। संपादक

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