MP Cop Gossip: एमपी में महिला परामर्श केंद्र के बहुत बुरे हालात, निगरानी करने वाले सिस्टम की जड़ों में दीमक लगी, ‘सरकार की लाडली’ थानों में ‘लाचार’, जिस दिन चोर ने चुगली की उस दिन दो थानों में से किसी एक थाने के कर्मचारियों पर गाज गिरना तय, मुलाकातियों से ज्यादा महफिलों में व्यस्त अफसरों ने डाल रखा है पर्दा
भोपाल। मध्यप्रदेश (MP Cop Gossip) के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने ब्रांडिंग के बूते अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। जैसे ही प्रदेश में मामा बोले तो मुख्यमंत्री का चेहरा और उनका हंसता हुआ चेहरा सामने होता है। ऐसा ही दूसरा शब्द है लाडली। यह शब्द आते ही सामने मुख्यमंत्री का चेहरा और मासूम बेटियों को गोद में उठाई तस्वीरें मस्तिष्क में डोलने लगती है। यह अलग बात है कि जितना वे करते हैं उतना मध्यप्रदेश के कई जिलों के पुलिस थानों में नहीं होता। जिस दिन मैन स्ट्रीम मीडिया ने आडंबर की चादर फाड़ी तो कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगें। खासतौर पर प्रदेश के महिला थानों की स्थितियां बहुत खराब चल रही है। आज हम प्रदेश के दो जिलों भोपाल—इंदौर में स्थित महिला थानों की पोल खोलने जा रहे हैं। हमारा मकसद किसी व्यवस्था, व्यक्ति अथवा पद को छोटा—बड़ा बताना नहीं है। मैदानी हकीकत क्या है उसकी सच्चाई से रूबरू कराना है।
पंद्रह दिन में अफसरों को तीन बार आवेदन दिया
यह मामला भोपाल शहर के महिला थाने से जुड़ा है। पीड़िता एक मुस्लिम महिला है जो अपने पति को पाना चाहती है। लेकिन, उसने दो महीने से उसको बेघर कर दिया है। पीड़िता आवेदन लेकर थाने गई थी। यहां उसकी सुनवाई करने की बजाय पति की सुनवाई शुरू हो गई। पति राजनीतिक पहुंच रखता है। जिसके आडंबर में कानून की व्यवस्था बौनी होती चली गई। इस बात की शिकायत पुलिस कमिश्नर, महिला शाखा एडीसीपी से लेकर थाना प्रभारी को भी की गई। उस आवेदन से पूर्व महिला थाने की काउंसलर की गतिविधियों को लेकर महिला शाखा एडीसीपी से की गई। कोई निष्कर्ष नहीं निकला बल्कि पीड़िता को अफसरों के पास जाने की सजा दी गई। पीड़िता के आवेदन को यदि अफसरों ने बारीकी से अध्ययन किया तो व्यवस्था की दीमक उजागर हो जाएगी। लेकिन, पुलिस कमिश्नरेट में अफसरों से मिलना किसी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के अवसर जैसा हो गया है।
आज भी धक्के खाने को मजबूर
पुलिस विभाग में मुस्लिम समुदाय को लेकर एक अलग सोच और नजरिया प्रदर्शित करता यह मामला है। भोपाल पुलिस कमिश्नरेट में आवेदन का क्या हाल होता है। यह पिछले दिनों उजागर हो चुका है। जब लिखकर दिया गया था कि आवेदन गुम हो गया है। मुस्लिम महिला पंद्रह दिन में तीन बार महिला थाने की गतिविधियों को लेकर शिकायत कर चुकी है। किसी भी आवेदन पर लापरवाह, गैरजिम्मेदार को फटकार तो छोड़िए बातचीत भी नहीं की गई। मुस्लिम समाज के वैवाहिक रिश्तों को लेकर मैदान में काम करने वाले कर्मचारियों और काउंसलर जिस तरह से काम कर रही हैं वह महिला थाने की साख को खत्म कर रहा है। अब लाडली बहना का इरादा है कि वह अपनी दो लाडली बेटियों के साथ मुख्यमंत्री निवास जाकर शिकायत करने की तैयारी कर रही है।
कमिश्नरेट के सामने किसी की नहीं चलती
एक भोपाल की लाडली बहना है, उसे लगता है कि सीएम हाउस जाकर उसकी सुनवाई होगी। लेकिन, पुलिस कमिश्नरेट के सामने किसी की नहीं चलती यह दूसरे मामले से पता चल जाएगा। यह मामला इंदौर शहर के महिला थाने का है। भोपाल में काउंसलिग शुरू ही नहीं की गई। लेकिन, इंदौर में काउंसलिंग की आड़ में गेम कर दिया गया। इसको एक्सपोज करने पर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जाने लगी। आरोपी सुनकर एकतरफा नहीं सोचिए भीतर बहुत सारी कहानी है। दरअसल, शादी को एक साल नहीं हुए वह महिला परामर्श केंद्र पहुंच गई। यहां महिला थाने में गया मामला दोस्ती, वफादरी और रिश्तों से जुड़ा है। क्योंकि जिस पीड़िता ने महिला थाना प्रभारी से जुगाड़ लगाई वह उसकी शादी में आशीर्वाद देने भी गई थी। थाना प्रभारी के पति भी इंदौर शहर में ही एक दूसरे थाने में टीआई है। इसलिए पति—पत्नी की इंदौर पुलिस कमिश्नरेट में तूती बोलती है। इस एफआईआर और उसके पूर्व की गई अवैधानिक गतिविधियों की बारीकी से जांच की गई तो थाना प्रभारी कई मामलों में जवाब नहीं दे सकती।
जांच तो कर लो, यह बोलकर इन्होंने लगाया था फोन
इंदौर पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय में मुख्यमंत्री सचिवालय, गृहमंत्री कार्यालय के अलावा डीजीपी कार्यालय से भी फोन गया था। महिला थाना प्रभारी ने काउंसलिंग पूरी होने के पहले ही मुकदमा दर्ज कर लिया। प्रकरण में ऐसी विवादित धारा लगाई गई जिसमें जमानत का लाभ न मिल सके। इन्हीं विषयों को लेकर अफसरों से शिकायत हुई थी। महिला थाना प्रभारी एक एफआईआर के लिए रिश्तेदारी निभा रही है। इन आरोपों पर जांच अधिकारी बदला जाना था। संभाग के किसी अन्य अधिकारी को पारदर्शिता के लिए तैनात करना था। यह करने के लिए ही भोपाल के लगभग आधा दर्जन कार्यालय से फोन पहुंचे थे। लेकिन, महिला थाना प्रभारी आज भी पूरे दमखम के साथ आरोपी पति को अपमानित करने के उद्देश्य से दबिश दे रही है। अग्रिम जमानत के लिए महिला थाने से एफआईआर और दस्तावेज ही सबमिट नहीं किए गए। ऐसे ही तमाम कानूनी अड़चने खड़ी करके सिस्टम बताना चाह रहा है उसके सामने किसी की नहीं चलती।
हमने लाल और हरी गोली का अंतर न समझाया होता तो अस्पताल में वह आती ही नहीं…समाचार के बाद अस्पतालों में दवा का इंतजाम तो हुआ। वीडियो को पूरा एक बार जरूर सुनना। शायद आपको हमारी गंभीर पत्रकारिता के जज्बे का अहसास हो सके।
मुलाकातियों से ज्यादा महफिल में मशगूल अफसर
यह सनसनीखेज घटना भोपाल शहर की है। जिस दिन यह बंद पिटारे से बाहर आई तो एक बार फिर भोपाल पुलिस की किरकिरी होना तय है। पिटारे की चाबी एक शातिर चोर के पास है। उसको रात्रिगश्त में एक थाने की पुलिस के दो कर्मचारियों ने दबोच लिया था। जब दबोचा गया उससे एक घंटा पहले ही वह एक मकान से करीब दो लाख रूपए का माल बटोरकर भागा था। पेट्रोलिंग पार्टी ने धारा 151 की कार्रवाई करके उस थाने को सौंप दिया जहां उसने वारदात की थी। उस थाने की पुलिस ने उसको दिनभर बैठाकर रखा। रात को यह बोलकर छोड़ दिया उसके पास कुछ नहीं मिला। जबकि पीड़ित परिवार उसे पहचान चुका है। उसका कहना है कि जब वे घर पहुंचे थे तब वह उनके सामने भागा था। अब देखना यह है कि पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली में मुलाकातियों से ज्यादा महफिल में मशगूल रहने वाले अफसर तक इस मामले की नस्ती कब तक उनके कबीने के काबिल कर्मचारी डीसीपी साहब की टेबिल में रखते हैं।
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