MP Cop Gossip: सीएस दिल्ली से तय अब डीजीपी की बारी 

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MP Cop Gossip: चार नामों के पैनल को लेकर हर अखबार ने कर दी है रिपोर्टिंग, देरी की वजह पर सस्पेंस बरकरार, डीजे वाले बाबू ने पूरे सिस्टम की ही बैंड बजा दी

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सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग काफी बड़ा है। इसमें भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। ऐसी ही बातों का हमारा नियमित साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) है। हमारा मकसद किसी व्यवस्था, व्यक्ति को ठेस पहुंचाना नहीं है। बल्कि इस बात का अहसास कराना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में भी बोला जा सकने का अधिकार है।

सबकुछ तो दिल्ली तय कर रहा

पिछले दिनों सीएस के नाम को लेकर सोशल मीडिया से लेकर मैन स्ट्रीम मीडिया में जमकर समाचार छपे। इसके नाम उसके नाम बोलकर काफी हल्ला मचा रहा। एक अखबार ने तो एक अधिकारी को लगभग सीएस बना ही दिया था। उनके अरमानों ने दिल्ली से आए नाम पर पानी फेर दिया। अब नए डीजीपी को लेकर फिर वही हालात बन गए हैं। नामों का पैनल राज्य सरकार बनाने में पहले ही देरी कर चुकी है। अब उसे भेजा गया है तो तब से रोज किसी न किसी मीडिया हाउस में उसकी खबरें चलने लगी है। इधर, पीएचक्यू समेत अन्य गलियारों में पुलिस विभाग का अगला मुखिया कौन को लेकर चिंतन शिविर चल रहा है। यह शिविर खबरनवीस के बीच ज्यादा चलाया जा रहा है। जिससे जो जिस लॉबी से जुड़ा है उसको कटिंग भेजकर खुश करने में जुटा है। इधर, कुछ यह देख रहे हैं कि सीएस की तरह दिल्ली से ही कोई डीजीपी भोपाल न आ जाए। बहरहाल तब तक अफसरों के कैबिन में खबरनवीसों को इसी बहाने प्रवेश करने का मौका मिल रहा है।

चार महीने आखिर चल क्या रहा था

एमपी में गृह विभाग उतना तेज नहीं चल पा रहा जितनी उसकी पहले रफ्तार हुआ करती थी। पहले अफसर दौड़—दौड़कर काम करते थे। लेकिन, कुछ महीनों से यह गति पर काफी अवरोधक बने हुए हैं। इसका ताजा उदाहर आधी रात आधा दर्जन अफसरों की हुई पोस्टिंग है। इसमें एडीजी संतोष सिंह को इंदौर भेजा गया। उनका नाम इंदौर के लिए चार महीने से चल रहा था। आखिर इतना वक्त लगने को लेकर सस्पेंस बरकरार है। ऐसा ही भोपाल को लेकर भी तय हो चुका है। जब तक नाम नहीं आए तब तक खबरनवीस और पुलिस मुख्यालय के गलियारों में सिक्का यूं ही उछलता रहेगा।

थाना प्रभारी है कि मानते ही नहीं

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राजधानी के एक जोन में थाना प्रभारी काफी जिद्दी है। वह सामाजिक भावनाओं को स्थान नहीं देते। अफसरों के आदेश अंगूठे पर रखते हैं। उनके थाने में वे एफआईआर अपनी मर्जी से ही करते हैं। उन्होंने शहर में जब से आमद दी है तब से लेकर अब तक कोई तीर भी नहीं मारा। जबकि राजधानी कई बड़े खुलासे करने वाले अफसरों से भरी पड़ी है। इसके बावजूद निरीक्षक महोदय (MP Cop Gossip) न जाने किस तैश में रहते हैं। उनके बाजू में ही उनकी निगरानी करने वाले एक नहीं दो—दो अफसर है। लेकिन, उन अफसरों का नेटवर्क टीआई की पहुंच के आगे नहीं चलता। निरीक्षक महोदय ने एक कारोबारी को एक महीने से लटका रखा है। वे उनकी चोरी की एफआईआर ही दर्ज नहीं कर रहे। यह बात उनके लिए गले की हड्डी बनेगी वह नहीं जानते। जब कागज बोलेगा तब उन्हें अहसास होगा यह राजधानी है यहां किसी को भी यूं ही नहीं घुमाया जा सकता। अभी दो दिन पहले भी उन्होंने मोबाइल झपटने की एफआईआर भी दर्ज नहीं की है। यह बात भी मीडिया में आ चुकी है।

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फोन पर रिएक्ट नहीं किया होता तो रवानगी तय थी

पिछले दिनों राजधानी के थाने में गुप्तचर विभाग की कितनी चलती है वह उजागर हो गई। दरअसल, डीजे वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश का सर्कुलर जारी किया था। लेकिन, कोई नहीं माना। थाने तब सक्रिय हुए जब एक बालक डीजे की धुन पर नाचते वक्त दुनिया से चला गया। उसके बाद हर कोई कार्रवाई करने आगे आया। लेकिन, शहर के कुछ थानों के प्रभारियों ने फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की। वे उस आदेश पर बचे रह गए। इधर, जिस जगह पर बालक की मौत हुई वहां आईपीएस, आईएएस और विधि क्षेत्र से जुड़े अधिकारियों के निजी बंगले थे। वहां डीजे के शोर को लेकर आगाह करते हुए कार्रवाई के लिए फोन पहुंचे थे। वह तो प्रभारी महोदय का भला हो उन्होंने उसी पर कार्रवाई कर दी जिस कारण बालक की मौत हुई। यदि वह बच जाता और फोन पर एक्शन न लिया होता तो थाने से विदा होना तय था। (सुधि पाठकों से अपील, हम पूर्व में धाराओं की व्याख्याओं के साथ समाचार देते रहे हैं। इसको कुछ अवधि के लिए विराम दिया गया है। आपको जल्द नए कानूनों की व्याख्या के साथ उसकी जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए हमारी टीम नए कानूनों को लेकर अध्ययन कर रही हैं।)

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