MP Mardani News: भारत में कब सोचा गया कि पुलिस में महिलाओं को शामिल किया जाए, एमपी पुलिस के नवाचार फुलवारी में आईपीएस से लेकर महिला कांस्टेबल पद नहीं पक्षियों के नाम से पहचानी गईं, महिला पुलिस के लिए फुलवारी का तीसरा शानदार संस्करण पचमढ़ी में हुआ संपन्न, भोपाल पुलिस का नाम पूरे प्रदेश में फिर चर्चा में आया
भोपाल। भारत में महिला पुलिस कर्मचारियों की आवश्यकता कब महसूस हुई। वहीं विश्व में इससे पहले कब महिला अधिकारी कहां नियुक्त हुई। क्या आप जानते हैं, नहीं न यह बात कई मैदानी कर्मचारी भी नहीं जानते। इस जानकारी को देते हुए मध्यप्रदेश पुलिस के डीजीपी सुधीर कुमार सक्सेना ने फुलवारी कार्यक्रम को संबोधित किया। यह मध्यप्रदेश पुलिस में तैनात महिला कर्मचारियों (MP Mardani News) के लिए शुरू किया गया तीन संस्करण हैं। यह कवायद एडीजी अनुराधा शंकर सिंह के पहल पर शुरू की गई है। जिसका आयोजन पचमढ़ी स्थित पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में आयोजित किया जाता है। यहां पहुंचने वाली हर महिला कर्मचारी को पुरूष कर्मचारी बकायदा सैल्यूट देकर आत्मीय तरीके से तीन दिनों तक जगह—जगह स्वागत करते रहे।
पद को लेकर कोई घमंड न दिखे इसलिए ऐसा किया गया
कार्यक्रम की योजना बेहद सकारात्मक तरीके से बनाई गई। इसमें तीन दिनों तक एडीजी से लेकर कांस्टेबल को शामिल किया जाता है। यह प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। इस बार 125 महिलाओं का चयन किया गया। इसमें एडीजी से लेकर महिला कांस्टेबल भी शामिल थी। लेकिन, इन्हें रैंक की बजाय बनाई गई अलग—अलग नाम की टीम से पुकारा जाता था। यह नाम पक्षियों और मिठाई के नाम पर रखे गए थे। जैसे मैना, कोयल, इमरती आदि। प्रत्येक समूह में आईपीएस, राज्य पुलिस सेवा की महिला अधिकारी के अलावा टीआई से लेकर कांस्टेबल को शामिल किया गया। हर समूह में तीन दिनों तक चली गतिविधियों में सदस्य इधर—उधर भी किए गए थे। ताकि वहां मौजूद सभी महिला अधिकारी कर्मचारी एक—दूसरे को जान सके।
थाने में रखे जाए सैनेटरी पैड
कार्यक्रम के दौरान मैदानी कर्मचारियों से थाने या ड्यूटी के दौरान सामने आने वाली समस्याओं के बारे में जाना गया। इसमें थानों में पुरूष कर्मचारियों की तरफ से लूज टॉक या डबल मीनिंग बातचीत सामान्य थी। इसमें सुझाव भी मांगा गया तो कई महिला कर्मचारियों ने कहा कि थाने में महिलाओं के बाथरूम की कमी महसूस होती है। वहीं मासिक धर्म के दौरान ड्रेस को पहनने की बाध्यता को लेकर सामने आने वाली परेशानी बताई गई। इसके अलावा यह भी सुझाव दिया गया कि पुलिस में महिला नव आरक्षकों की भर्ती चल रही है। जिस कारण कई अपने बच्चों की परवरिश को लेकर चिंतित रहती है। इसलिए संभाग स्तर पर झूलाघर खोला जाए। जिसमें कर्मचारी भी पुलिस विभाग से तैनात किया जाए। इसके अलावा थानों में ही कई बार ड्यूटी के दौरान मासिक धर्म आने को लेकर चिंता जताई गई। इसमें परेशानी तब ज्यादा होती है जब रात का समय होता है। ऐसी अवस्था में प्रत्येक थाने में सैनेटरी पैड मशीन रखने की बात भी सामने आई। इन बिंदुओं पर बजट के आधार पर पुलिस मुख्यालय निर्णय लेगा। इससे पहले दो संस्करणों में किए गए कार्यक्रम में आई समस्याओं का निदान किया जा चुका है।
जिम्बांबे और सेनेगल की महिला अधिकारी भी हुई शामिल
समस्याओं की श्रेणी में यह बात भी सामने आई कि थानों में तैनात कई महिला अधिकारी अटैचमेंट में दूसरे स्थानों पर तैनात है। उनकी तैनाती पुलिस लाइन से दर्शाई जाए। ताकि थानों में महिला बल की वास्तविकता सामने आ सके। कार्यक्रम के दौरान भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी रूचिवर्धन मिश्रा (Ruchiwardhan Mishra) ने सभी टीम को मेडिटेशन की तकनीक बताई। परिवार के बीच नौकरी में संतुलन रखने के टिप्स भी दिए। कार्यक्रम में आर्थिक मामलों के जानकार ओमनाथ शर्मा (Omnath Sharma) ने निवेश करने के तरीके बताए। उन्होंने शेयर बाजार के अलावा दूसरे विकल्पों पर कैसे चुनाव करें इस विषय पर जानकारी दी। इसके अलावा हम थियटर ने अपनी प्रस्तुती दी थी। कार्यक्रम में वह महिला अधिकारी (MP Mardani News) जो यूएन मिशन में गई थी उन्होंने अपने अनुभव वहां साझा किए। इसके अलावा जिम्बांबे और सेनेगल की महिला अधिकारियों ने भी मैदानी कर्मचारियों का उत्साह बढ़ाया। हिमाचल प्रदेश की महिला अधिकारी शुभ्रा तिवारी (Shubha Tiwari) ने भी एमपी पुलिस की महिला कर्मचारियों की फुलवारी जैसे नवाचार की सराहना की। इसे पूरे भारतीय स्तर पर लागू करने की जरूरत बताई।
आप जैसी हैं बहुत अच्छी है, पुरूष से अपनी तुलना न करें: डीजीपी
इस अवसर पर डीजीपी सुधीर कुमार सक्सेना (DGP Sudhir Kumar Saxena) ने भी फुलवारी के प्रतिभागियों के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा कि इस कवायद से आपके पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बहुत परिवर्तन आएगा। उन्होंने बताया कि 1845 में पहली बार न्यूयार्क में महिला अधिकारी की आवश्यकता महसूस हुई। जिसके बाद 1890 में शिकागो में पहली बार नियुक्ति हुई थी। ऐसा ही भारत में 1930 के आस—पास महिला कर्मचारी और अधिकारियों की आवश्यकता महसूस हुई। उस वक्त देश में लेबर लॉ को लेकर आंदोलन चल रहे थे। इस कारण 1938 में महिलाओं की भर्ती शुरू की गई। मध्यप्रदेश में अभी लगभग छह हजार महिला अधिकारी और कर्मचारी है। उन्होंने अपनी इच्छा जताते हुए कहा कि यह पुरूषों के मुकाबले 33 फीसदी होना चाहिए। हमारी तरफ से यह प्रयास भी किया जा रहा है। डीजीपी सुधीर कुमार सक्सेना ने कहा कि पहले देश में लैंगिक अवेयरनेस की बात होती थी। अब लैंगिक समानता को लेकर डिबेट चल रही है। यह बहुत कारगर पहल देखने को मिल रही है। डीजीपी ने कहा कि आप जैसी भी जितना काम करती है उतना ही करें। अपनी तुलना पुरूषों से नहीं करें।
इंटरपोल भी यह मानता है कि महिला ही दिला सकती है विश्वास
डीजीपी ने अपने संबोधन में कहा कि पुलिस मुख्यालय ने 2022 में एमपी के 180 थानों में सर्वे कराया था। इसमें यह देखा गया था जहां महिला डेस्क होती है वहां महिलाओं की एफआईआर ज्यादा होती है। वहीं इंटरपोल भी यह मानता है कि जनता का विश्वास जीतने के लिए पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। दरअसल, भारत ही नहीं पूरे विश्व में पुलिस के प्रति जनता का रवैया सकारात्मक नहीं रहता है। डीजीपी ने कहा कि महिला पुलिस के चलते थानों में भी पुरूष कर्मचारी संयमित रहता है। इसलिए थानों से मिलने वाली पूर्व की शिकायतों की संख्या में कमी आ रही है। पूरे सत्र को लेकर निमिषा पांडे (Nimisha Pandey) ने ब्योरा दिया। कार्यक्रम में महिला अधिकारी सुषमा सिंह (Sushma Singh) समेत कई अन्य महिला अधिकारी भी थी। भोपाल से भेजी गई टीम का चयन डीसीपी विनीत कपूर (DCP Vineet Kapur) ने किया था। उन्होंने गोविंदपुरा उर्जा डेस्क से सोनिया पटेल (Soniya Patel) को भेजा था। दरअसल, पटेल ने आटो चालकों की मदद से कई केस का समाधान कराया। यह रोल मॉडल दूसरे जिलों में भी बनाया जा सकता है।
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