MP Cop Gossip: कमिश्नर प्रणाली शुरु होने के बाद थानों से दूरी बनाता पुलिस का 151 वाला ‘दंड’
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस महकमा काफी बड़ा होता है। इसमें भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। बहुत कुछ मीडिया में आ जाता है तो कुछ नस्ती के बोझ में दबा रहा जाता है। ऐसे ही किस्सों को द क्राइम इंफो में हर गुरुवार सुबह 7 बजे एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) कॉलम से उसे पेश किया जाता है। इस बार भी कुछ ऐसी ही बातें जो थानों के भीतर चल रही है।
कैबिन में तो नहीं जाएगी फ्रीज
भोपाल के थानों में पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर ने दो शानदार सौगात दी है। इसके अच्छे संदेश मैदानी कर्मचारियों में जा रहे हैं। लेकिन, उसको लेकर एक—दूसरे के कान में मंत्र भी फूंका जा रहा है। अब हर थाने में सिम के साथ मोबाइल नंबर होगा। दरअसल, पहले कर्मचारियों को सरकारी सिम तो मिली थी। लेकिन, उसे लगाना अपने निजी मोबाइल पर पड़ता था। ऐसे में कई कर्मचारी यहां—वहां होने पर नंबर भी घुमता था। इसलिए फैसला लिया गया है कि एक स्थायी नंबर के साथ थाने की सिम होगी। इसी मोबाइल नंबर में हाईकोर्ट समेत अन्य कोर्ट के नोटिस भी डिस्पले होंगे। इसके अलावा दूसरा आदेश थानों में फ्रीज को लेकर जारी हुआ है। भोपाल के सभी थानों को फ्रीज मिलने जा रहा है। इसको लेकर कानाफूंसी चल रही है कि कहीं थाना प्रभारी ने उसे अपने कैबिन में सुरक्षित कर दिया तो उसका सुख उन्हें कैसे मिलेगा। क्योंकि आदेश में फ्रीज को रखने का स्थान तय नहीं किया गया है।
कमजोर होती पुलिस की यह धारा
शहर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हुई है। उसके बाद से कई थानों में 151 शांतिभंग की कार्रवाई की संख्या घटने लगी है। उसके पीछे एक तकनीकी वजह है जिसका सामना मैदानी कर्मचारी ज्यादा कर रहे हैं। इसलिए वे ‘खता’ में फंसने से अच्छा उसको ‘खाज’ मानकर इससे दूरी बना रहे हैं। उसमें एक तकनीकी कारण बहुत ज्यादा है। ऐसे मामले जिसमें 151 में कार्रवाई के बाद धारा 107 और 116 करना होता है। उसमें मैदानी कर्मचारियों को कई जगहों पर मौका दिया नहीं जा रहा। तुरंत कार्रवाई के बाद उसे अगली प्रक्रिया से गुजरना होता है। जिसके खिलाफ कार्रवाई की उसे थाने में छोड़ने के बाद संबंधित एसीपी कार्यालय से बुलावा आ जाता है। जहां घंटों समय मैदानी कर्मचारियों को बिताना पड़ रहा है। कई एसीपी कार्यालय तो बिना नोटिस और समंस ऐसा कर रहे हैं। इसलिए कर्मचारियों को बचाव में थाने के रोजनामचे में रिपोर्ट डालकर रवानगी लेनी पड़ रही है।
थानों में ड्यूटी का समय बढ़ा
यहां तक तो ठीक था लेकिन, एसीपी कार्यालयों में थाना स्टाफ को घंटों इंतजार करने के बाद उसका पक्ष सुना जाता है। जबकि जिसके खिलाफ कार्रवाई की गई वह दस गवाह के साथ अपने मामले को पहले निपटा लेता है। अब आप समझ ही गए होंगे कि इसके लिए दान वहां कौन दे रहा होगा। कई मैदानी कर्मचारियों के पास केस डायरी भी होती है। जिसके फरियादी या गवाह को सुनना भी उसका काम होता है। इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल उसकी होती है जिसकी नाइट गश्त होती है। ऐसे में उसको कार्रवाई में काफी जूझना पड़ता है। आशा है कि जल्द धारा 151 की कम होती संख्या से अफसर रुबरु होंगे और इस विषय को लेकर कोई रोस्टर बनाकर उसका एसओपी जारी करेगा। एकतरफ प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा मैदानी कर्मचारियोें की छुट्टियों को लेकर चिंता जता रहे हैं। वहीं दो शहरों में मैदानी कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ गए हैं।
जुगाड़ के लिए जमावड़ा शुरु
भोपाल में 100 से अधिक ऐसे अफसर (MP Cop Gossip) है जिनके कार्यकाल को तीन साल हो चुके हैं। इनमें से एक अफसर ने तो संभाग की कुर्सी में जमे रहने का रिकॉर्ड तक तोड़ दिया है। अब इन सभी की रुख्सती की कवायद शुरु होने जा रही है। दरअसल, उसकी वजह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव है। शहर और उससे जुड़े राजनीतिक सरोकारों की समझ वाले व्यक्तियों की तलाश की जा रही है। जल्द ही उनके नाम सार्वजनिक भी होंगे। उससे पहले कई राजनीतिक रसूख रखने वाले पुलिस के अफसर आका की चौखट पर अपने चेहरे दिखाने के लिए बहाने खोज रहे हैं। इसमें सबसे अच्छा मौका होली का नजर आ रहा है। गुलाल के बहाने गुलगुले बनाने कई अफसर नरम और सुंगधित पैकेट खरीद चुके हैं।
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