MP Cop Gossip: सम्मान के ​लिए बुलाकर किया अपमान

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MP Cop Gossip: न्यायालय के निशाने पर आए एसपी, नोटिस के बाद पुलिस मुख्यालय हिल गया, नोटिस की खबर मिलते ही हाईकोर्ट पहुंचे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, तीन कुर्सी के लिए मंत्री लगवा रहे रेस

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सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग काफी बड़ा होता है। जिसमें भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। इन्हीं बातों का हमारा नियमित कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) है। जिसमें वह बातें सार्वजनिक की जाती है जो सामने नहीं आई। इसके जरिए हमारा मकसद सिर्फ यह बताना होता है कि बातें छुपती नहीं है। किसी व्यक्ति, संस्था, पद को कम—ज्यादा बताना उद्देश्य नहीं हैं।

अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ा सामाजिक बदलाव वाला कार्यक्रम

पिछले दिनों भोपाल पुलिस में एक बड़ा आयोजन किया गया। जिसके लिए कई समय से भीतर ही भीतर तैयारियां चल रही थी। लेकिन, जब उसका आयोजन किया गया तो वह अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया। इसमें कई अशासकीय संस्था और उनसे जुड़े बच्चों को भी बुलाया गया था। भर दोपहरी में वे मुख्य अतिथि के इंतजार में भूखे—प्यासे बैठे रहे। ऐसा नहीं है कि वहां कूलर के इंतजाम नहीं थे। वह थे जरूर लेकिन उमस से पंडाल में उमस बरकरार थी। इसमें भी पानी के इंतजाम होने के बावजूद उसे नहीं दिए गए। जिनके लिए आयोजन रखा गया था उन्हें कार्यक्रम शुरू होने से पंद्रह मिनट पूर्व पीछे धकेला गया। मुख्य अतिथि आधा घंटा बाद वहां पहुंचे थे। इसमें दूसरा पहलू यह भी था कि मंच में लगाए गए बैनर में अधिकारी और संरक्षण सुधारकर अलग से लगाए गए थे।

अधिकारी के ड्रायवर कर रहे रखरखाव का काम

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भोपाल में एक अधिकारी के ड्रायवर इन दिनों कंबल ओढ़कर खूब पी रहे हैं। दरअसल, इन महाशय को विभाग से जुड़े एक रखरखाव का काम दिया गया है। जिसके लिए ड्रायवर महोदय जो किसी अफसर के पॉवर से कम नहीं है वह मनमाफिक बिल ठोक रहे हैं। जबकि नियम यह है कि कार्य को पीडब्ल्यूडी विभाग की तरफ से कराया जाना चाहिए था। ऐसा करने की बजाय नियम विरूद्ध चल रहे इस तरह के कार्यक्रम को लेकर अब पुलिस नियंत्रण कक्ष की चौपाल में खूब चर्चाएं चल रही है।

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भागे—भागे कोर्ट पहुंचे एसपी

एमपी के एक जिले के एसपी से जुड़ी यह खबर है। दरअसल, सरकारी मुआवजा वितरण में एक अफसर बुरी तरह से फंसे हैं। जिन्हें बचाने के लिए नेता नगरी से पुलिस (MP Cop Gossip) पर काफी दबाव है। उनके नाम का पिछले दिनों वारंट जारी हो गया। उस वारंट पर विभाग से प्रतिक्रिया लेकर कोर्ट को जानकारी देना था। लेकिन, एसपी ने अतिउत्साह में आकर जो लिखकर कोर्ट को दिया उससे न्यायालय ने अवमानना का पत्र मान लिया। फिर क्या था न्यायालय ने एसपी को सस्पेंड करने के आदेश डीजीपी को देकर जिसके खिलाफ वारंट जारी है उन्हें गिरफ्तार कर पेश करने के लिए कहा गया। यह खबर पुलिस मुख्यालय में चारों तरफ फैली। एसपी भागे—भागे हाईकोर्ट भी पहुंच गए।

मंत्री की कुर्सी का मामला है इसलिए चेयर रेस

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इसी साल विधानसभा चुनाव है। इस कारण शहर के तीन थानों को लेकर पुलिस महकमे में जमकर कानाफूसी चल रही है। दरअसल, तीनों थानों के प्रभारी लंबे अरसे से तैनात नहीं किए गए हैं। निर्णय से पहले मंत्री की रजामंदी जरूरी है। क्योंकि चुनाव में उनके क्षेत्र में थाना प्रभारी का रोल बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। एक मंत्री के क्षेत्र में तो दो थानों के टीआई खाली है। इन्हीं दोनों थानों से मंत्री के भाग्य का भी फैसला होगा। इसलिए वे कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहे। वहीं एक मंत्री ने तीसरे थाने की पोस्टिंग पर ग्रहण लगा रखा है। क्योंकि वहां से कौन लड़ेगा यह फायनल नहीं हुआ है। यह भीतर से तय होते ही कुर्सी आवंटित किया जाना है।

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