वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह का कॉलम
भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजे 10 नवंबर को घोषित हो जाएंगे। अनुमान है कि भाजपा कड़े मुकाबले के बीच सरकार बचाने में कामयाब हो जाएगी पर प्रतिष्ठा घट जाएगी। नतीजे मंगलवार को आना है इस लिहाज से 26- 27 घंटे ही बचे हैं। कांग्रेस तो सभी सीटों की जीत का दावा कर रही है लेकिन भाजपा के लोग भी 28 से 14 -15 सीट जीतने की बात कर रहे हैं। बस यही आंकड़ा बताता है कि दिल्ली में मोदी की मजबूत सरकार, प्रदेश में जननायक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ग्वालियर के महाराज ज्योति राजे सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, भाजपा के युवा तुर्क प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के साथ परिवार का सहारा इसके बाद भी लगभग 15 -16 सीट भी यदि जीती तो यह हार के बराबर है। इसलिए कहा जाएगा सरकार तो बच पर इज्जत चली गई।
यह बात इसलिए भी कही जाएगी क्योंकि मुकाबले में जो कांग्रेस है उसका नेतृत्व दो पूर्व मुख्यमंत्री और बुजुर्ग कमलनाथ व दिग्विजय सिंह नेता कर रहे हैं। इनमें अच्छी भली चलती सरकार गिरने का बड़ा कारण कमलनाथ को बताया गया और 2003 के बाद 15 साल तक कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने की दिग्विजय सिंह बताए गए। इसके बावजूद भाजपा पिछला आम चुनाव इन्हीं दो उम्र दराज नेताओं के सामने हार गई। अभी भी इन्हीं दोनों नेताओं की जोड़ी भाजपा को पानी पिला रही है। इस बात का भाजपा के नेता बुरा मान सकते हैं मगर हकीकत यही है।
विधानसभा उपचुनाव में यदि एक एक सीट पर अलग-अलग बात की जाए तो शायद ही कोई 5 सीटें ऐसी हो जहां से भाजपा भारी बहुमत से जीत दर्ज करती दिख रही हो। ग्वालियर चंबल से लेकर मालवा और महाकौशल तक भाजपा के नेता बिखरी कांग्रेस के बुजुर्ग नेता जिनमें भाजपा ने एक को बंटाधार और दूसरे को कलंक नाथ का नाम दिया हुआ है इनसे मुकाबला करते करते पार्टी पसीना पसीना हो रही है। सिंधिया के चमकदार चेहरे को भी चंबल, ग्वालियर में में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मतदान के बाद की जो तस्वीर है उसमें सिंधिया और उनके समर्थकों को नुकसान होता दिखाई दे रहा है।
चुनाव क्षेत्र में काम करने वाले भाजपा कार्यकर्ता और नेता गणों ने भी इस तरह की रिपोर्टिंग पार्टी मुख्यालय को संघ कार्यालय को की हुई है। बातचीत में तो यहां तक कहा जाता है यदि बहुमत नहीं मिलता है तो मध्य प्रदेश मध्यावधि चुनाव की तरफ जाता दिखेगा। लेकिन यह बड़ा सवाल है और इस पर सूरत सूरत में कोई उत्तर नहीं मिल पाएगा। लेकिन आने वाले दिनों में बहुमत की तंगी हुई तो इस तरह की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। भाजपा कैंप की बात करें तो इस चुनाव में संगठन की कमजोरी और बड़े नेताओं की कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता कम नजर आई। यही पार्टी के लिए संकट की बड़ी वजह है। भाजपा जैसे तैसे चुनाव जीत भी जाए तो आने वाले दिनों में संगठन में साफ-सुथरी छवि के शालीन नेताओं को जगह मिली तो आने वाले वर्ष उसके लिए और भी चुनौतीपूर्ण होंगे। हालांकि अभी टीम वीडी शर्मा का पूरी तौर पर बनना बाकी है इसे एक अवसर के रूप में प्रदेश भाजपा भुना सकती है।
अभी तक पार्टी कारपोरेट कल्चर के मैनेजरों के हवाले है। आगे से बदलाव नहीं हुआ तो भविष्य के चुनाव ज्यादा चमत्कारी नतीजों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह चुनाव एक तरह से शिवराज और सिंधिया से लेकर भाजपा संगठन की परीक्षा के तौर पर देखे जा रहे हैं नतीजे बताएंगे उनमें सिंधिया कितने सफल रहे हैं और संगठन कितना दमदार रहा। लेकिन अभी तक जो खबरें हैं भाजपा में खुश होने की तो बात छोड़ दीजिए मुस्कुराने की भी इजाजत नहीं देती है। हम पहले भी लिखते रहे हैं कि उपचुनाव में जिस कमलनाथ को कांग्रेस के बागी और भाजपा नेताओं ने खलनायक बताया था वह प्रचार अभियान के दौरान उम्मीद से ज्यादा समर्थन पाते दिखाई दिए। उनके साथ शानदार संगठक के रूप में दिग्विजय सिंह की सक्रियता ने सबको एक बार फिर चौका दिया है।
कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में यह खबरें आ रही थी कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच दरार पैदा हो गई है लेकिन उपचुनाव के अभियान ने इसे गलत साबित किया है। दूसरी तरफ भाजपा में कहा जाता था कि विष्णु दत्त शर्मा के अध्यक्ष बनने के बाद संगठन ज्यादा ताकतवर और असरदार होगा लेकिन यह अनुमान लगाने वाले लोग भी सही साबित नहीं हुए। करीब 24 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति से संगठन विवादों में आया और चुनाव में उसका नुकसान भी देखने को मिला। जिला इकाइयां कार्यकर्ताओं को लेकर जनता के बीच में प्रभाव नहीं छोड़ पाई। यही वजह है कि सावेर, सांची और सुरखी से लेकर ग्वालियर चंबल तक में असंतुष्ट को मनाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगाना पड़ा फिर भी नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं दिखे। चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश भाजपा और राज्य सरकार मंत्री परिषद का विस्तार होगा। कुछ मंत्री हारे तो जाहिर है नए चेहरे आएंगे। इसी तरह संगठन में जो उपयोगी नेता है उन्हें शायद जगह मिल जाए। सब कुछ सकारात्मक हुआ तो आने वाले दिनों में शिवराज सरकार और शर्मा के संगठन में अच्छे लोग देखने को मिल सकते हैं।
उपचुनाव के नतीजों की संभावनाओं को देखते हुए भाजपा सरकार, संगठन और सभी परिवार के लोग आने वाली किसी भी परिस्थिति से निपटने की रणनीति बना रहे हैं। इसमें बहुमत का संकट होने पर सपा बसपा और निर्दलीय विधायकों पर भी नजर रखी जा रही है। मैंने पिछले दिनों कुछ मंत्रियों के बंगले पर आने वाले बसपा और निर्दलीय विधायकों को यह कहते सुना था ” हम तो चाहते हैं किसी को भी बहुमत ना मिले अभी तो हमारी पूछ परख बढ़ेगी ” बहुमत के अभाव में एक बार फिर विधायकों के इधर उधर जाने और खरीदी बिक्री की खबरें भी सुनाई देंगी।
इंदौर भोपाल के अतिक्रमण चर्चा में…
कमलनाथ की सरकार में हनी ट्रैप कांड के दौरान खबरों को लेकर चर्चा में आए जीतू सोनी का मीडिया हाउस निशाने पर था।उसके अखबार का ऑफिस और व्यापारिक संस्थान अतिक्रमण के कारण तोड़फोड़ का शिकार हुए। भाजपा सरकार में इंदौर में कभी भाजपा फिर बाद में कांग्रेस के हुए कंप्यूटर बाबा क संस्थान अतिक्रमण के कारण तोड़ दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इसे बदले की कार्रवाई बताया। इसके पहले भोपाल में कांग्रेस विधायक मसूद का बड़ी झील किनारे बना शिक्षण संस्थान अतिक्रमण के कारण तोड़ दिया गया। लेकिन इसमें खास बात यह है यह सब सरकार की समझ में तब आया जब इन दोनों संस्थानों के मालिकों ने उपचुनाव में जमकर खिलाफत की। आरिफ मसूद के शिक्षण संस्थान का अतिक्रमण पुराना था और यह भाजपा की नजर में पिछले 15 सालों में कभी नहीं आया मगर उस पर कार्रवाई तब की गई जब मसूद ने फ्रांस को भारत सरकार के समर्थन के बावजूद सबक सिखाने की बात की और यह भी कहा कि भारत सरकार को एक धार्मिक मामले में फ्रांस के खड़ा होना चाहिए।
आने वाले दिनों में इस तरह की कार्रवाई की प्रशंसा और आलोचना भी होगी मगर सरकार को अपनी निष्पक्षता बताने के लिए अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ प्रदेश व्यापी अभियान चलाने के लिए भी मजबूर होता लोग देखेंगे। 10 नवंबर के बाद प्रदेश की राजनीति और प्रशासन में बड़े फेरबदल का अनुमान है। यह मौसम विभाग की तरह भविष्यवाणी भी हो सकता है की भारी वर्षा होगी लेकिन कई बार ज्यादा बारिश के बजाय गरज चमक के साथ बछड़ा भी पड़ जाती है और कभी कभी तेज हवा के साथ अंधड़ भी आते हैं। देखिए इस बार अनुमान के हिसाब से कितना कुछ सही घटित होता है।
ये विचार वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह के हैं। उनकी अनुमति से कॉलम प्रकाशित किया गया है।
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