अफसरों का दावा मैदानी हकीकत से सरकार वाकिफ, सुझाव के तौर पर लैब के विस्तार का प्रस्ताव भेजा
केशवराज पांडे
भोपाल। कहावत है कि न्याय में देरी (Justice delay) न्याय की अवहेलना हैं। इस अवहेलना को मध्यप्रदेश पुलिस कर रही है। यह उसकी वजह से नहीं हो रहा। इसके लिए जिम्मेदार एजेंसी प्रदेश की फोरेंसिक साइंस से जुड़े अफसर हैं। यही अफसर मैदानी पुलिस अधिकारियों और न्यायालय के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है। प्रदेश की सागर में फोरेंसिक साइंस का मुख्यालय हैं। इसके अलावा भोपाल, जबलपुर में रीजनल लैब हैं। इन लैबों की हालात इन दिनों बहुत खराब हैं। यहां पुलिस से संबंधित मामलों की अलग-अलग जांच रिपोर्ट समय पर नहीं मिल पा रही है। इस कारण तीन हजार से अधिक मामलों में पुलिस के जांच अधिकारी से लेकर सुपर विजन ऑफिसर कोई फैसला नहीं ले पा रहे हैं। इस वजह से इन प्रकरणों से जुड़े करीब तीन हजार से अधिक विचाराधीन बंदियों की भी हालात आसमान से टपके और खजूर पर लटके जैसी हो गई है।
ऐसे बुरे हैं हालात
अवधपुरी थाना क्षेत्र में जनवरी, 2018 में घनश्याम नाम के एक व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। मामले के जांच अधिकारी ने मौत को लेकर बिसरा रिपोर्ट सुरक्षित रखवाया। उसे जांच के लिए भोपाल रीजनल लैब में पहुंचाया गया। तब से लेकर जून, 2019 बीत गई है लेकिन कोई रिपोर्ट (Justice delay) बिसरा की नहीं दी गई। जबकि रिपोर्ट में हो रही देरी की वजह से एसपी साउथ ने कई बार रीजनल लैब से पत्राचार भी किया गया। जानकारी के अनुसार हालात यही नहीं रूके हैं। भोपाल की रीजनल लैब में बिसरा से संबंधित एक हजार से अधिक रिपोर्ट देना बाकी है। इसी तरह सागर स्थित स्टेट लैब में डीएनए की दो हजार से अधिक रिपोर्ट जारी करना बाकी हैं। इन रिपोर्ट की वजह से कई जिलों में मामले लंबित चल रहे हैं।
क्षमता में विकास होगा
इस संबंध में thecrimeinfo.com से बातचीत करते हुए एडीजी तकनीकी सेवा डीसी सागर ने बताया कि इस संख्या को जल्द कम कर लिया जाएगा। जब उनसे कैसे पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने दावा करते हुए बताया कि भोपाल में डीएनए लैब शुरू होने के बाद यह संख्या कम हो जाएगी। पुलिस मुख्यालय ने ग्वालियर समेत कुछ अन्य जगहों पर बिसरा की जांच के लिए रीजनल लैब खोलने का प्रस्ताव भेजा हुआ है। मुझे पूरा यकीन है कि यह होने के बाद सारी समस्याएं समाप्त हो जाएगी।
पुलिस के लिए नियम पर वैज्ञानिक आजाद
बिसरा और डीएनए को लेकर कोई ठोस (Justice delay) पॉलिसी नहीं बनाई गई है। पूरी कार्रवाई में पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े होते हैं। जिसको लेकर कई बार न्यायालय में परिवाद भी दायर हुए हैं। इन्हीं में से एक परिवार पोस्टमार्टम रिपोर्ट जारी होने पर दी वाली रिपोर्ट को लेकर भी था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुधार करते हुए उसे ऑन लाइन कर दिया गया। लेकिन, बाकी कार्रवाई में कोई सुध न फोरेंसिक की तरफ से लिया जा रहा है और न ही पुलिस मुख्यालय स्तर पर। पुलिस मुख्यालय की तरफ से सभी फोरेंसिक से जुड़े मामलों में जब्ती की रिपोर्ट लेने के लिए संबंधित सामग्री (Article) को एक पखवाड़े के भीतर जमा करने के सभी थानों को आदेश हैं। देरी होने पर पुलिस अधीक्षक को वजह बताकर रिपोर्ट सैम्पल के साथ भेजनी होती है। इधर, फोरेंसिक के लिए जांच रिपोर्ट देने की अवधि तय नहीं की गई हैं।
यह है कारण जो देरी की बन रहे वजह
विभागीय अफसर इसे सामान्य कार्रवाई मानते हैं। लेकिन, फोरेंसिक विभाग के सूत्र बता रहे हैं कि संरचना बुरी तरह से बिगड़ गई है। भोपाल में
डीएनए लैब शुरू किया जाना था। जिसका काम पहले भवन फिर सेटअप न लग पाने से शुरू (Justice delay) नहीं हो सका। दूसरी वजह वैज्ञानिकों की कमी भी रही। जिसे तत्कालीन भाजपा सरकार ने गंभीरता से लेते हुए 90 वैज्ञानिकों की भर्ती की थी। यह बैच पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर मैदान अपनी सेवाएं देता उससे पहले उनमें से एक दर्जन से अधिक वैज्ञानिकों ने (Justice delay) इस्तीफा दे दिया। खबर है कि इस साल भी एक दर्जन से अधिक वैज्ञानिक इस्तीफा देने जा रहे हैं। इसकी वजह बताई जा रही है उत्तर प्रदेश में फोरेंसिक साइंस के सहायक प्राध्यापकों की निकली नियुक्तियां हैं। तीसरी मुख्य जो महत्वपूर्ण भी है उसमें स्थायी (Justice delay) डायरेक्टर न होना भी है। जानकारी के अनुसार स्टेट फोरेंसिक में पिछले एक दशक से स्थायी डायरेक्टर नहीं हैं। यहां फिलहाल डॉक्टर हर्ष शर्मा है जो प्रभारी डायरेक्टर का काम देख रहे हैं।