Indore Property Fraud: भूमाफिया ने पांच हेक्टेयर से अधिक की विवादित जमीन दो कारोबारियों को अलग—अलग तारीखों में 23 करोड़ बेची, पहली बार जमीन खरीदने वाले व्यक्ति ने कोर्ट में दाखिल की थी याचिका, जिसके बाद दूसरा पक्ष उसमें पार्टी बना तो हुआ यह वाला खेल…
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इंदौर/भोपाल। भूमाफिया ने पांच हेक्टेयर से अधिक की एक जमीन में फर्जीवाड़ा कर दिया। उसने एक ही जमीन का सौदा अलग—अलग व्यक्तियों से अलग—अलग तारीखों में किया। यह घटना मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर (Indore Property Fraud) जिले की है। जिसके बाद पहले सौदा करने वाले कारोबारी ने जमीन बेचने वाले भूमाफिया समेत दूसरी पार्टी जिसने दाम से ज्यादा भाव लगाकर उसे खरीदा उसको अदालत में पार्टी बना दिया। वहीं उस जमीन पर जारी टीएंडसीपी को भी निरस्त कराया गया। जिसके बाद दूसरी पार्टी ने आर्थिक प्रकोष्ठ विंग में जाकर इसी साल आवेदन दिया। हैरानी वाली बात यह है कि कई घोटालों में सालों लंबित फाइल रखकर जांच करने वाली ईओडब्ल्यू ने छह महीने में जांच करके प्रकरण दर्ज कर लिया। जबकि सभी पक्षकार अदालत में पहले से मौजूद हैं।
कंपनी में यह थे पार्टनर जिन्होंने जमीन बेची
डील टूटने पर देना थे पंद्रह करोड़ रूपए
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खरीदी गई जमीन पर विकास गुलाटी कनक रेसीडेंसी बनाने (Kanak Residency) जा रहे थे। जिसके लिए टीएंडसीपी से अनुमति भी नवंबर, 2018 में ली गई। जब यह कवायद की गई तो मैसर्स इंस्टीट्यूट इंफ्रा कंस्ट्रक्शन प्रायवेट लिमिटेड (M/S Institute Infra Private Limited) सामने आ गई। उसने विकास गुलाटी की फर्म से हुई खरीदी को चुनौती देते हुए उसको भी अदालत में दाखिल परिवाद में पार्टी बना दिया। इस विवाद (Indore Property Fraud) के चलते टीएंडसीपी ने जुलाई, 2022 में कनक रेसीडेंसी को जारी सारी अनुमतियों को निरस्त कर दिया। जबकि कॉलोनाइजर तब तक 46 ग्राहकों को भूखंड बेचने का करार कर चुका था। ईओडब्ल्यू की जांच में सामने आया है कि मामले में आरोपी महावीर जैन, अनिल कुमार सोगानी, राहुल कासलीवाल और रितेश उर्फ चंपू अजमेरा ने उक्त जमीन का सौदा मैसर्स इंस्टीट्यूट इंफ्रा कंस्ट्रक्शन प्रायवेट लिमिटेड के साथ अगस्त, 2012 में ही कर लिया था। इसके बदले में आरोपियों ने कंपनी से नौ करोड़ रूपए भी ले लिए थे। लेकिन, आरोपियों ने पूर्व में किया करार तोड़ दिया। ऐसा करने पर आरोपियों को सबसे पहले जमीन खरीदने वाली फर्म को 15 करोड़ रूपए चुकाना थे। इसमें से आरोपियों की कंपनी ने चार करोड़ रूपए चुका भी दिए थे।
पूरे मामले में इस कारण है तकनीकी पेंच
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