कार्यालय में तैनात रहे दो निज सचिवों से चल रही है पूछताछ, गिरफ्तारी की तलवार लटकी
भोपाल। मध्यप्रदेश के चर्चित घोटालों में से एक ई-टेंडर स्कैम (E-Tender Scam) जांच की आंच पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के चौखट पर पहुंच गई हैं। मामले की जांच कर रही आर्थिक प्रकोष्ठ विंग (EOW) पूर्व मंत्री के निज सचिवों से दो दिन से पूछताछ कर रही है। दोनों के खिलाफ ईओडब्ल्यू के पास पर्याप्त सबूत है और उनकी गिरफ्तारी के संकेत मिल रहे हैं।
ईओडब्ल्यू डीजी केएन तिवारी ने बताया कि ई-टेंडर स्कैम (E-Tender Scam) मामले में निर्मल अवस्थी और वीरेन्द्र पांडे से पूछताछ की जा रही है। हालांकि पूछताछ के बिंदु जन सामान्य के लिए न होने का कहते हुए यह बताने से डीजी ने इनकार कर दिया। यह दोनों तत्कालीन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के कार्यालय में तैनात थे। मिश्रा जल संसाधन विकास मंत्री रहे हैं और उनके कार्यकाल में भी टेंडर जारी हुए थे। उस टेंडर (E-Tender Scam) में गुजरात की कंपनी ने भाग लिया था। जिसको ठेका दिलाने के लिए निर्मल अवस्थी और वीरेन्द्र पांडे की भूमिका थी। कंपनी का नाम सोरठिया वेल जी रत्ना कंपनी हैं। इस कंपनी को दो ठेके मिले थे जिसमें 116 करोड़ रुपए का ठेका था। इसी मामले में दोनों से पूछताछ की जा रही है। उनसे प्रश्रावली बनाकर तथ्य मांगे जा रहे है जिसके बाद ईओडब्ल्यू अगला निर्णय लेगी।
सोरठिया वेल रत्ना पर कसेगा शिंकजा
बड़ौदा की कंपनी है सोरठिया वेलजी रत्ना के साथ (E-Tender Scam) डील किया गया था। इरीगैशन डिपार्टमेंट का टेंडर था। टैम्पर का पता चलने पर निरस्त कर दिया गया था। मनीष को इस काम के लिए कमीशन जो दिया गया था वह वापस बैंक खाते से दिया गया। यह बात आरोपी (E-Tender Scam) मनीष पूछताछ में कबूल चुका है। इससे यह साफ है कि सोरठिया वेलजी रत्ना कंपनी के संचालकों की अब जल्द गिरफ्तारी हो सकती है। इस कंपनी के खिलाफ ईओडब्ल्यू के पास पर्याप्त सबूत हैं। मनीष की गिरफ्तारी के बाद पूर्व मंत्री के निजी स्टाफ से चल रही पूछताछ इस पर मुहर भी लगा रही है।
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कौन है मनीष खरे
गिरफ्तार आरोपी (E-Tender Scam) मनीष खरे मूलत: उत्तर प्रदेश के जालोन का रहने वाला है। वह फिलहाल भोपाल के चूना भट्टी इलाके में अमलतास-फेस-2 में रहता है। मनीष आरपीजी रिको कंपनी में सर्विस इंजीनियर का काम करता था। उसने 1996 में आटोमिशन का काम भोपाल से शुरू किया था। वह अस्पतालों में लगने वाले उपकरणों को बनाने का काम जानता है। मनीष ने माइल स्टोन बिल्डर्स एंड डेव्हलपर, माइल स्टोन इंपोर्ट एक्सपोर्ट और माइल स्टोन मार्केट एवं डेव्हलपर नाम से तीन कंपनियां बनाई थी। यह कंपनियां 2015 में बनाई गई थी। इसके बाद वह (E-Tender Scam) ऑस्मो कंपनी के तीन संचालकों के संपर्क में आया। मनीष ने अपनी शिक्षा कानपुर के आईआईटी संस्थान से की है। मनीष रेलवे का पेटी ठेकेदार भी है। वह पिछले 15 साल से रेलवे के कई ठेके लेकर उसे पूरा कर चुका है। उसने कुछ रेलवे ठेकों को लेकर भी जानकारियां ईओडब्ल्यू को दी है।
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क्या है मामला
ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल, 2019 को ई-टेंडरिंग घोटाले (E-Tender Scam) के मामले में प्रकरण दर्ज किया था। इसमें जांच के लिए प्राथमिकी जून, 2018 में दर्ज हुई थी। जांच कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम नई दिल्ली से कराई गई। जल निगम के तीन टेंडर, लोक निर्माण विभाग के दो टेंडर, सडक़ विकास निगम के एक टेंडर, लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का एक टेंडर ऐसे करके कुल नौ ई-टेंडरों में गड़बड़ी करना पाया गया था।
कौन है आरोपी
इस मामले में (E-Tender Scam) हैदराबाद की कंपनी मैसर्स जीवीपीआर लिमिटेड, मैसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंपनियां दी ह्यूम पाइप लिमिटेड, मैसर्स जेएमसी लिमिटेड, बड़ौदा की कंपनी सोरठिया बेलजी प्रायवेट लिमिटेड, मैसर्स् माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्टक्शन कंपनी मैसर्स रामकुमार नरवानी लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर है। साफ्टवेयर बनाने वाली ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, एमपी एसईडीसी, एन्टेस प्रायवेट लिमिटेड और बैगलोर की टीसीएस कंपनी को भी आरोपी बनाया गया है।