पहले एफआईआर में दिखाई अपनी मर्जी, फिर अदालत के आदेश पर दर्ज हुए प्रकरण में आरोपियों के लिए पुलिस की दरियादिली, भोपाल आईजी से हुई शिकायत
भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी में आरोपियों के लिए पुलिस कितनी रहम है उसका ताजा खुलासा हुआ है। मामला कमला नगर थाना क्षेत्र का है। यहां एक प्रकरण दर्ज करने में पुलिस को अदालत का आदेश मानना पड़ा। फिर गिरफ्तार करने की बजाय थानेदार ने लिखकर अदालत को दे दिया कि हमें जमानत दिए जाने से कोई आपत्ति नहीं है। इस मामले में शिकायत आईजी भोपाल आदर्श कटियार से की गई है। इस पूरे फर्जीवाड़े (Corrupt Officer) में कई दोषी अधिकारी है। जिनको बचाने के लिए पूरा पुलिस महकमा कितनी तल्लीनता से जुटा है, उसकी बारीकी से कहानी जुटाने का काम thecrimeinfo.com ने किया। इस फर्जीवाड़े में कितने लोग शामिल है यह देखने के लिए पढ़िए एक्सक्लूसिव (TCI Exclusive) स्टोरी।
यह है मामला
चूना भट्टी में जानकी नगर निवासी सुषमा सिंह (Sushma Singh) ने एक मकान खरीदा था। जब यह मकान खरीदा था तब सोसायटी के अध्यक्ष ने उन्हें नाले के नजदीक जमीन बताकर रजिस्ट्री कराई थी। सुषमा को लगा कि कॉर्नर का प्लॉट है इसलिए उसे खरीद लिया गया। लेकिन, विवाद तब हुआ जब उनके पड़ोस में एक नया प्लॉट बनाकर बेचा गया। जिस व्यक्ति ने यह प्लॉट खरीदा था वह रसूखदार था। उसने सुषमा के मकान के बाजू में बने हिस्से को अवैध बताकर लोकायुक्त में शिकायत कर दी। लोकायुक्त पुलिस ने सुषमा का मकान तोड़ दिया। उस वक्त मीडिया में काफी समाचार भी प्रकाशित हुए। इसके बाद सुषमा ने वास्तविकता का पता लगाकर लापरवाह लोगों के खिलाफ शिकायत की। इसी शिकायत पर कमला नगर थाना पुलिस ने कोई सहयोग नहीं किया। नतीजतन सुषमा को अदालत (Bhopal Court) का सहारा लेना पड़ा। अदालत ने मुकदमा दर्ज करके रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे। इस मामले में 2013 में जालसाजी का मुकदमा दर्ज हुआ था।
नियम विरूद्ध अदालत में दाखिल की रिपोर्ट
कमला नगर थाना पुलिस ने जालसाजी (Bhopal Forgery Case) का प्रकरण दर्ज किया था। यह प्रकरण 2013 में दर्ज हुआ था। प्रकरण दर्ज कराने के लिए सुषमा ने तत्कालीन डीआईजी सिटी (DIG City Bhopal) डी श्रीनिवास वर्मा को आवेदन दिया था। जांच के बाद कमला नगर थाना पुलिस ने जालसाजी का प्रकरण दर्ज कर लिया। इसमें बिल्डर श्याम शर्मा, गुरूदयाल जग्गी, मनीष माहेश्वरी, चंदन कुमार चंदानी, हेमलता माहेश्वरी को आरोपी बनाया गया। उस वक्त थाने के प्रभारी केएस मुकाति हुआ करते थे। उनके कार्यकाल में एफआईआर को खत्म करने के लिए रिपोर्ट बनाकर अदालत में पेश किया गया। इस रिपोर्ट बनाने के लिए उन्होंने तत्कालीन डीपीओ (District Prosecution Officer ) राजेश रैकवार की मदद ली। रैकवार की रिपोर्ट के आधार पर प्रकरण को खारिजी (Closer Report) लगाने के लिए कहा गया। लेकिन, सुषमा ने रैकवार के खिलाफ तत्कालीन डायरेक्टर अभियोजन संजय चौधरी से शिकायत की गई। रैकवार की रिपोर्ट का अध्ययन किया गया तो पता चला वह सही नहीं हैं। इस गलत रिपोर्ट बनाने के लिए रैकवार को निलंबित कर दिया गया।
आरोपियों को देते रहे वक्त
जिला अभियोजन डायरेक्टर (Director Prosecution) की रिपोर्ट को ले जाकर सुषमा सिंह ने सीजेएम (Bhopal CJM) के यहां पेश किया। सीजेएम ने मामले को नए सिर से चालू करने के आदेश दिए। अदालत ने कहा कि थाना पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार करके तीन महीने में रिपोर्ट अदालत में पेश करे। लेकिन, थाना पुलिस ने 10 महीने में भी ऐसा नहीं किया। इस बीच आरोपी श्याम शर्मा, गुरूदयाल जग्गी, मनीष माहेश्वरी, चंदन कुमार चंदानी, हेमलता माहेश्वरी अग्रिम जमानत (Interim Bell) के लिए अदालत पहुंच गए। अदालत ने थाना पुलिस से राय मांगी तो थानेदार देवीराम ने लिखकर दे दिया कि पुलिस को कोई आपत्ति नहीं हैं। जबकि जमानत का विरोध किया जाना था। इससे पहले पूरे प्रकरण में तत्कालीन अभियोजन डायरेक्टर संजय चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि थाना पुलिस की भूमिका इस मामले में संदिग्ध हैं। इसमें कार्रवाई की जाए। यह कार्रवाई भोपाल आईजी को करना थी। लेकिन, ऐसा किया ही नहीं गया।
ऐसे किया फर्जीवाड़ा
जानकारी के अनुसार सुषमा सिंह ने जब मकान खरीदा गया था तब उसे कॉर्नर का प्लॉट बताकर जमीन कावे बेचा गया। कुछ साल बाद वहां डॉक्टर मनीष माहेश्वरी (Doctor Manish Maheshwari) ने पत्नी के नाम से प्लॉट ले लिया। ऐसा करने के लिए टीएंडसीपी से नक्शा भी बदला गया। माहेश्वरी ने यह प्लॉट प्रॉपर्टी ब्रोकर (Property Broker) चंदन कुमार चंदानी और गुरूदयाल जग्गी की मदद से खरीदा था। जग्गी एलआईसी एजेंट के साथ प्रॉपर्टी ब्रोकर का भी काम करते हैं। इस मामले में पीड़ित परिवार ने आईजी भोपाल आदर्श कटियार से शिकायत की। यह पता चलने पर कमला नगर थाना पुलिस ने सोमवार को जग्गी की गुपचुप गिरफ्तारी कर ली।