International Woman Day: शहर से ज्यादा गांव में हैं बुरे हालात, राजधानी में ही एक थाने से दूसरे थाने भटकने को मजबूर महिला अफसर
भोपाल। (International Woman Day) मध्य प्रदेश में महिला पुलिस जांच अधिकारियों की भारी कमी है। शहर से ज्यादा गांव में बुरे हालात हैं। आलम यह है कि राजधानी भोपाल में ही कई थानों की महिला अफसरों को डाकिया जैसी भूमिका निभाना पड़ रही है। जिम्मेदार अफसर एडजस्टमेंट को अपनी कामयाबी बताकर सरकार के सामने वाहवाही बटोर रहे हैं। इस वाहवाही के कारण एक आम महिला पीड़ित जिसको न्याय मिलने में देरी हो रही है। जवाब मांगने पर अफसर कन्नी भी काट रहे हैं।
यह है हालात
भोपाल के टीटी नगर थाने में नवंबर, 2020 को एक जीजा के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज हुआ था। एफआईआर दर्ज करने के लिए हबीबगंज थाने से एसआई सुनीता भलराय (SI Sunita Bhalrai) को बुलाना पड़ा था। इसी तरह अवधपुरी थाने में 4 नवंबर, 2020 को विजय आनंद के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया गया। यह एफआईआर करने के लिए पिपलानी थाने से एसआई सुरेखा आरमा (SI Surekha Aarma) को बुलाना पड़ा। इसी तरह छोला मंदिर थाना पुलिस ने 5 जनवरी, 2021 को बलात्कार का मुकदमा आरोपी मोहित साहू के खिलाफ दर्ज किया था। ऐसा करने के लिए हनुमानगंज थाने से एसआई कंचन राजपूत (SI Kanchan Rajput) को वहां भेजा गया था।
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यह है वह घटनाएं जिससे शर्मसार हुआ भोपाल
मध्य प्रदेश में कुछ साल पहले स्थापना दिवस का समारोह चल रहा था। उससे कुछ दिन पहले पीएससी की तैयारी कर रही छात्रा अपने साथ हुई गैंगरेप की घटना पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने दर थाने भटक रही थी। यह लापरवाही का सिलसिला यहां नहीं रुका। कोहेफिजा इलाकेे में एक मासूम की हत्या के मामले का केस जो अब सीबीआई के पास है, उसमें भी अभी तक जांच चल रही है। दोनों घटनाएं बताती है कि सिस्टम में सीएम, डीजीपी और सीएस के रहने वाले शहर में वह होता है जो नहीं होना चाहिए।
मैदान में नहीं दिखती महिला अफसर
इस मामले में जानकारी देते हुए पूर्व डीजीपी एनके त्रिपाठी (EX DGP NK Tripathi) ने कहा कि मैदानी अफसरों को वातावरण बनाना चाहिए। थानों में महिला स्टाफ से संबंधित सुविधाएं बढ़ाना चाहिए। जैसे झूलाघर, टॉयलेट जैसे विषय ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। सरकार ने महिलाओं की भर्ती के लिए कद भी घटाया है। फिर भी महिलाएं फोर्स में नहीं आ रही है तो उसकी समीक्षा होनी चाहिए। यह कहते हुए पूर्व डीजीपी ने कहा कि मैदान में महिला पुलिस अधिकारियों की विजिबिल्टी नहीं हैं। उन्होंने कमी से निपटने के लिए महिला आरक्षकों को भी जांच करने का अधिकार देने का सुझाव दिया है।
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