MP Labor Court News: पत्रकारों और गैर पत्रकारों संगठनों को परेशान करने गुपचुप तरीके से जारी किया आदेश, हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ जाने की तैयारी
भोपाल। मध्यप्रदेश के श्रम न्यायालयों (MP Labor Court News) में चल रहे पत्रकारों, श्रमजीवी पत्रकारों और संगठनों से जुड़े मामले में सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। हालांकि इस फैसले के खिलाफ पत्रकारों के संगठन ने विरोध जताने का मन बना लिया है। श्रम न्यायालयों में चल रहे प्रकरणों को लेकर जारी इस एकतरफा आदेश के खिलाफ न्यायालय की शरण में जाने का मन पत्रकारों ने बना लिया है। सरकार की तरफ से यह आदेश एक दिन पहले गुपचुप तरीके से जारी कर दिया गया है। यह आदेश श्रम विभाग के डिप्टी सेकेट्री जगदीश चंद्र जटिया ने जारी किया है। जानकारी मिलने के बाद आदेश की कॉपी शुक्रवार को दिनभर सोशल मीडिया में बंटती रही।
यह बोलकर लिया गया फैसला
सरकार की तरफ से जारी यह आदेश 611/375—377/2022/ए—16 है। इसमें डिप्टी सेकेट्री जगदीश चंद्र (Jagdish Chandra Jatiya) ने लिखा है कि श्रम विभाग को मध्यप्रदेश से संचालित समाचार पत्रों दैनिक भास्कर, नवदुनिया और राजस्थान पत्रिका की तरफ से दूसरे न्यायालय में प्रकरणों की सुनवाई करने का आवेदन प्राप्त हुआ था। जिसका पत्रकार संगठनों की तरफ से विरोध करते हुए श्रम विभाग में आपत्ति लगाई गई थी। श्रम न्यायालय में इन्हीं तीन प्रमुख समाचार पत्रों के दर्जनों पत्रकारों ने केस लगाए हैं। जिसकी लगभग अंतिम सुनवाई लगभग हर प्रकरण में होने वाली है। इसी बीच सरकार ने यह बोलकर आदेश जारी किया है कि भोपाल न्यायालय एक नंबर में चल रहे प्रकरणों की सुनवाई के संबंध में पक्षों के मध्य मतभेद है। इसलिए यह प्रकरण भोपाल से होशंगाबाद न्यायालय (Hoshangabad Labor Court) में ट्रांसफर किए जाते हैं। श्रम विभाग ने यह फैसला औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 33—बी की उपधारा 1 में दी गई शक्तियों के आधार पर लिया है।
इसलिए चल रहे हैं दांवपेंच
इस आदेश (MP Labor Court News) के खिलाफ पत्रकार संगठन एकजुट हो गए हैं। श्रम विभाग के इस आदेश को सरकार का न्यायालयीन कार्य में हस्तक्षेप मानते हुए विरोध करने की तैयारी की जा रही है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश के कई समाचार पत्रों के कर्मचारी उनके वेतनमान को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। जहां से यह आदेश पारित हुआ था कि समाचार पत्र के कर्मचारियों को शहर के अनुसार ग्रेड तय करके उनका वेतनमान निर्धारित करके उन्हें भुगतान किया जाए। लेकिन, अधिकांश संस्थानों ने ऐसा करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा यह बोलकर पेश कर दिया कि कर्मचारी बड़ा हुआ वेतनमान नहीं लेना चाहते हैं। जिसके बाद पूरे देश के अधिकांश श्रम न्यायालयों में सैंकड़ों पत्रकार और कर्मचारी उनके प्रबंधन से सीधी टक्कर ले रहे हैं। इन्हें दबाने और डराने के लिए बड़े—बड़े समाचार पत्र समूह के मालिक सरकार से हाथ मिलाकर अधिकारों से वंचित करने का दांवपेंच चल रहे हैं।
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