MP Cop Gossip: छह साल सीनियर को कैसे देते कुर्सी, इसलिए तोड़ निकालकर ऐसा अफसरों ने किया, दो आईपीएस अपने परिवार के बीच वापस लौटने में हुए कामयाब, लिफ्ट के भीतर कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद आदेश निकालकर चस्पा करना पड़ा
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस (MP Cop Gossip) विभाग काफी बड़ा है। इसमें भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। कुछ बातें मीडिया में आ जाती है तो कुछ किन्हीं कारणों से केवल कानों तक सीमित रह जाती है। ऐसे ही विषयों पर केंद्रीत हमारा नियमित साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप है। इसके जरिए हमारा मकसद किसी व्यवस्था, व्यक्ति या पद को कम—ज्यादा आंकना नहीं है। बस इस कान से उस कान में क्या चल रहा है यह बताना होता है। इस बार सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र बिंदु में तबादले रहे। जिसके बाद सारे लिंक सामने आ गए। किस अफसर पर कौन मेहरबान रहा यह भी साफ हो गया।
भोपाल में पहली बार ऐसा हुआ, क्या इतिहास टूटेगा
कहते हैं कि क्रिकेट में कोई इतिहास पुरूष नहीं होता। तेंदुलकर को लेकर कहा जाता था कि उनके जैसा कोई नहीं होगा। आज भारतीय टीम में लाइन लगी हुई है। अब आप सोच रहे होंगे कि हम पुलिस विभाग के बीच में खेल को क्यों ले आए। दरअसल, भोपाल और इंदौर में एक साथ पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी। जिसमें भोपाल की जिम्मेदारी एडीजी स्तर के अधिकारी को दी गई। जबकि इंदौर में सीनियर आईजी रैंक के अधिकारी को मिली। हालात बदले और सवा एक साल बाद ही यहां अफसरों को एक्सचेंज करना पड़ा। मतलब इंदौर वाले कमिश्नर भोपाल तो भोपाल वाले कमिश्ननर इंदौर भेजे गए। यहां गॉसिप का कॉलम यह है कि मकरंद देउस्कर 1997 बैच के आईपीएस है। जबकि मिश्रा 2003 बैच के आईपीएस। ऐसे में सीनियर कैसे अपने जूनियर को कुर्सी सौंपता। इसलिए दोनों जगहों पर यह तय किया गया कि वे अपने डिप्यूटी कमिश्नर को कुर्सी दे फिर अफसर आकर उनसे कुर्सी संभाले। अब पुलिस कमिश्नर प्रणाली के तहत पहले ही तबादले में जो इतिहास बना है उसे दूसरा अफसर कौन तोड़ेगा यह चर्चा में है।
पत्नी और पति को नजदीक पहुंचाया
पिछले दिनों हुए तबादले में कुछ अफसरों को काफी तिरस्कार झेलना पड़ा। उन्हें क्रीम वाली पोस्ट से हटाकर उस जिले में भेजा गया जहां कुछ महीनों बाद ही राजनीतिक घमासान होना है। यह अफसर राजनीति के क्षेत्र में उन बातों को लेकर ज्यादा एक्सपर्ट नहीं हैं। वे शरीर सौष्ठव के चलते चर्चा में आए थे। इधर, अपने परिवार में दो अफसरों को लौटने का मौका मिल गया। इसमें एक अफसर जिले के एसपी बनाए गए हैं। उसी जिले में उनकी पत्नी भी कमांडेंट है। इसी तरह एक अन्य अफसर को जिस जिले में एसपी बनाया गया है उससे ही सटे जिले में उनकी पत्नी डॉक्टरी का कोर्स कर रही है।
देश भक्ति जन सेवा या सिर्फ दिखावा
भोपाल में नया पुलिस नियंत्रण कक्ष बना है। इस कक्ष की तीसरी और चौथी मंजिल में भारी—भरकम काम होते हैं। जैसे पेशियां लगाना, विधानसभा के प्रश्न—उत्तर से लेकर अन्य गतिविधियां संचालित होती है। इसी चौथी मंजिल पर पुलिस कमिश्नर का भी कार्यालय है। पहले मकरंद देउस्कर जब कार्यालय आते थे तब उनके आने से पूर्व 15 मिनट का अलार्म बज जाता था। अब नए कमिश्नर ने आकर पहले दिन कुर्सी संभाली तो उसी दिन लिफ्ट में एक बाहरी व्यक्ति उनके साथ सवार हो गया। वह जानता नहीं था कि उनके सामने कौन व्यक्ति है। इसके बाद अगले दिन एक सरकारी आदेश लगा। जिसमें सफाई कर्मचारी से लेकर रैंक बताते हुए कहा गया है कि इन्हें छोड़कर बाकी लिफ्ट का इस्तेमाल करेंगे। अब चौथी मंजिल में कई बुजुर्गों को पेशी या आवेदन देने जाना होता है। वे अक्सर अफसरों को कोसते हुए भी जाते हैं। देशभक्ति जनसेवा के नाम पर जनता के टैक्स से मिलने वाली सुविधाओं को जनता से दूर किया जाता है।
प्रभात चौराहे की सुनियोजित चकल्लस
शहर का प्रभात चौराहे को अतिव्यस्तम बना दिया गया है। ऐसा नहीं है कि यहां स्टाफ मौजूद नहीं रहता। लेकिन, पीक अवर में यहां ट्रैफिक का जिस तरह से प्रबंधन किया जाता है यदि उसका किसी ने वीडियो बना लिया तो भोपाल यातायात पुलिस के अफसरों को जवाब देते नहीं बनेगा। दरअसल, यहां पर कुछ महिला अफसर तैनात रहती है। जिनके कान में ड्यूटी में तैनात रहने के दौरान बातचीत या गाने सुनने की धुन सवार रहती है। चारों चौराहों से कब किसको ट्रैफिक छोड़ना है यह भूल जाते हैं। बस हरा बटन दबाकर बैटन घुमाया और ट्रैफिक छोड़ दिया। ऐसा ही हाल दूसरे लेन से आने वाले ट्रैफिक के साथ दूसरी महिला कर्मचारी कर देती है। नतीजतन यह होता है कि पांच मिनट में निकलने वाला ट्रैफिक बुरी तरह से जाम में बदल जाता है। इसी चौराहे पर एक हिस्सा बॉटल नेक वाला है। वहां से भारी वाहन अधिक संख्या में भी नहीं निकल सकते। यह समस्या हमारी तरफ से पिछले तीन सप्ताह से बताई जा रही है। अब हमने ट्रैफिक पुलिस की तरफ से जवाब मिलने तक इसको नियमित चलाने का फैसला लिया है।
गिरफ्तारियों की अनुमति वाले आवेदन पर सरकारी झंझट
भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू होने के बाद अब किसी भी बाहरी राज्य अथवा जिले में जाकर पकड़ धकड़ से पूर्व अनुमति लेना होती है। यह काम पहले आन लाइन किया जाता था। क्योंकि मकरंद देउस्कर के आदेश थे कि वे उसे मैन्यूअल नहीं देखना चाहेंगे। इस सख्ती के चलते कई आवेदन उनके कार्यालय में आकर जमा हो गए। उनके जाने के बाद कई दिनों तक अफसरों को इस बात की सुध ही नहीं रही। जब होश आया तो उसे आन लाइन जारी करने वाले जानकार की कमी हो गई। नतीजतन अब पूरे सेटअप को फिर मैन्यूयल किया जा रहा है।
आईजी ने जो बोला उसके यह मतलब निकले
पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय पुलिस सेवा के एक अफसर ने कहा कि वे महिलाओं को 33 फीसदी हक दिलाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने महिलाओं की पुलिस विभाग में महत्ता को लेकर कई जानकारियां भी दी। इसी भाषण के कुछ दिन बाद एक महिला अधिकारी ने भी स्पीच दे डाला। महिलाएं अपने काम के बूत हक ले सकती है। उन पर किसी तरह का कोई परोपकार नहीं किया जा रहा। यह सुनने के बाद पूर्व में दिए गए पुरूष अफसर और महिला अधिकारी के बयान की पुलिस मुख्यालय के गलियारों में चर्चा होने लगी। कुछ अधिकारियों ने तो यह बात उन अधिकारी को भी जाकर बताई कि महिला अधिकारी ऐसा कह रही थी। जिसके बाद अफसर को अपनी कही गई कुछ बातें जरूर याद आ गई।
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