MP Water Resources Scam: थाने से गायब घोटाले की केस डायरी मामले में नई एफआईआर दर्ज 

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MP Water Resources Scamऑस्ट्रेलिया की कंपनी ने मध्यप्रदेश सरकार को 14 करोड़ रूपए का चपत लगाकर भागी, जांच में फंसे पुलिस के तीन अफसर और कर्मचारी के खिलाफ भी कार्रवाई

MP Water Resources Scam
टीटी नगर थाना, जिला भोपाल— फाइल चित्र

भोपाल। मध्यप्रदेश का नाम लेते साथ कोई न कोई घोटाला सामने आता है। अब ताजा घोटाले के साथ नया चौका देने वाला घटनाक्रम भी उजागर हुआ है। दरअसल, जल संसाधन विभाग ने ऑस्ट्रेलिया की कंपनी से पानी की गुणवत्ता सुधारने करीब 14 करोड़ रुपए का अनुबंध किया था। ग्लोबल टेंडर हासिल करने के बाद कंपनी जल संसाधन विभाग से भुगतान लेकर भाग गई। इसी मामले की दस साल पहले एफआईआर हुई थी। इस एफआईआर की केस डायरी संदिग्ध परिस्थितियों में पुलिस विभाग से गायब हो गई। जिसकी जांच के बाद अब नए सिरे से घोटाले की एफआईआर दर्ज की गई है। यह प्रकरण भोपाल (MP Water Resources Scam)सिटी के टीटी नगर थाने में दर्ज हुआ है।

बोरिया बिस्तर समेटकर भागी कंपनी

जल संसाधन विभाग ने 2006 में ग्लोबल टेंडर निकाला था। यह टेंडर प्रदेश के पांच कच्छारों में मौजूद पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए निकाला गया था। इस योजना के तहत सिंध, केन, टोंस, बेतवा और चंबल नदी के पानी को सुधारने सरकार की मंशा थी। निविदा में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी स्मैक इंटरनेशनल लिमिटेड (Australia’s Srinath M.Nickel Smack International Limited ) प्रतिस्पर्धा में खरी पाई गई। ठेका 13 करोड़, 27 लाख रूपए से अधिक का था। कंपनी को जल संसाधन विभाग ने 2007 से 2008 के बीच भुगतान भी कर दिया। इस कंपनी का भारत में दफ्तर हरियाणा स्थित गुड़गांव के सायबर सिटी में भी था। कंपनी को ठेका मध्यप्रदेश सरकार की एमपी वॉटर सेक्टर रिस्ट्रैक्चरिंग प्रोजेक्ट के तहत दिया गया था। इसका बकायदा करार भी किया गया था। लेकिन, कंपनी ने काम करने की बजाय रातोंरात बोरिया बिस्तर समेटा और भाग गई।

ऐसे सामने आया घोटाला

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सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

एमपी वॉटर सेक्टर रिस्ट्रैक्चरिंग प्रोजेक्ट (MP Water Sector Restructuring Project) के तहत जल संसाधान विभाग ने पानी की गुणवत्ता का परीक्षण कराया। यह परीक्षण ग्वालियर की स्वर्ण नदी और सिंध नदी का था। जिसमें कोई सुधार नहीं पाया गया। यहां से कंपनी गतिविधियों की पड़ताल शुरु हुई थी। जिसमें पता चला कि कंपनी ने (MP Water Resources Scam) इस काम के लिए जितने विशेषज्ञों की नियुक्ति करने का करार किया था वह है ही नहीं। इसके अलावा कंपनी ने विशेषज्ञता के नाम पर पार्थ नियोगी को उसका जानकार बताया था। इस परामर्श देने वाली कंपनी को भी जल संसाधन विभाग ने करीब 83 लाख रुपए का भुगतान किया था। पार्थ नियोगी की कंपनी ऑस्ट्रेलिया की कंपनी से अनुबंधित थी। यह दोनों कंपनियां जल संसाधन विभाग को भ्रम में रखकर कोई काम नहीं कर रही थी। यह बात सामने आने के बाद विभागीय प्रतिवेदन बनाकर सरकार को भेजा गया। सरकार ने प्रमुख सचिव जल संसाधन विभाग के जरिए प्रकरण दर्ज कराने के आदेश दिए थे।

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केस डायरी थाने से हो गई गायब

जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री एनके सिंह पिता एबी सिंह उम्र 57 साल ने इस मामले की रिपोर्ट 19 अप्रैल, 2012 में हबीबगंज थाने में दर्ज गराई थी। उस वक्त थाना पुलिस ने 196/12 धारा 420/463/465/34 (जालसाजी, डिजीटल झूठे सबूत बनाना, कूटरचना के लिए दंड और एक से अधिक आरोपी का मुकदमा) दर्ज किया गया था। इसमें श्रीनाथ एम.एनिकल स्मैक इंटरनेशनल लिमिटेड ऑस्ट्रेलिया को (MP Water Resources Scam) आरोपी बनाया गया था। यहां तक सबकुछ सामान्य चला। लेकिन, प्रकरण दर्ज होने के बाद इस घोटाले की केस डायरी गायब हो गई। दरअसल, जल संसाधन विभाग कार्यालय घटनास्थल था। उस वक्त यह तीन थानों हबीबगंज, कमला नगर और टीटी नगर के बीच जांच का विषय बना था। यह हद तय करने के लिए थाना पुलिस एसपी कार्यालय के जरिए मार्गदर्शन मांग रही थी। केस डायरी इस दौरान धक्के खाते हुए गायब हो गई। मामला बेहद संवेदनशील था जिसमें पुलिस पार्टी बन रही थी।

जिस भवन में एग्रीमेंट हुआ वह जमींदोज

पुलिस विभाग से गफलत जल संसाधान विभाग के कार्यालय के चलते हुई। दरअसल, जल संसाधन विभाग का एक मुख्यालय कोलार गेस्ट हाउस के पास था। जबकि उसका दूसरा कार्यालय टीटी नगर स्थित बारह दफ्तर में लगता था। हबीबगंज पुलिस ने कार्यपालन यंत्री एनके सिंह (EE NK Singh) के बयान दर्ज किए। जिसमें पता चला कि कंपनी से करार बारह दफ्तर कार्यालय में हुआ था। इसलिए केस डायरी टीटी नगर भेजी जा रही थी। ऐसा करने के दौरान (MP Water Resources Scam) ही वह गायब हो गई। वहीं जिस भवन में यह एग्रीमेंट हुआ वह भी स्मार्ट सिटी के चलते जमींदोज हो चुका है। अब दस साल पुराने इस मामले में नए सिरे से सबूत जुटाने का काम पुलिस कर रही है। फिलहाल टीटी नगर थाना पुलिस ने इस मामले में 460/22 धारा 420/463/465/34 का मामला दर्ज कर लिया है। यह प्रकरण पुराने दस्तावेजों और किरिकॉर्ड में फिर दर्ज किया गया है। ऐसा करने से पहले पुलिस विभाग को अपने ही महकमे के खिलाफ चाबुक भी चलाना पड़ा।

तीन कर्मचारियों के खिलाफ जांच जारी

पुलिस सूत्रों के अनुसार घोटाले की केस डायरी गायब होने का मामला तूल पकड़ता उससे पहले उसको काफी दबाया गया। जल संसाधन विभाग के इस घोटाले के संबंध में जांच की आंच कुछ अधिकारियों पर भी आ रही थी। इनमें से अधिकांश कर्मचारी अब सेवानिवृत्त हो गए हैं अथवा दूसरे स्थानों पर तबादले पर चले गए हैं। इसके अलावा पुलिस विभाग की तरफ से हबीबगंज थाने के तत्कालीन मुंशी जसराम (Munsi Jasram) के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। यह केस डायरी आखिरी बार एसआई कल्याण सिंह (SI Kalyan Singh) के पास थी। वे सेवानिवृत्त होने के बाद केस डायरी थाने के राजमुंशी को सौंप गए थे। जिसके बाद वह पहेली बन गई थी। इसमें दो अन्य कर्मचारियों पर भी कार्रवाई की गई थी। जिनके नाम अभी सामने नहीं आए हैं। हालांकि सूत्रों ने बताया कि इस घोटाले में कई बड़े अधिकारियों के इशारे पर केस डायरी को यहां—वहां किया गया।

टेंडर की इन शर्तो का भी नहीं किया पालन

जल संसाधन विभाग ने जांच में पाया कि ऑस्ट्रेलिया की कंपनी ने गुणवत्ता तो दूर करार की दूसरी शर्तों का भी पालन नहीं किया। कंपनी को मध्यप्रदेश के छह शहरों में अपने कार्यालय खोलने थे। इस काम में लगने वाला इंफ्रास्ट्रक्चर, हार्डवेयर, साफ्टवेयर समेत अन्य सामान ऑस्ट्रेलिया ले जाने का अधिकार नहीं था। यह सामान जल संसाधन विभाग को सौंपा जाना था। लेकिन, ऐसा हुआ ही नहीं। दफ्तर खोलना तो दूर इंफ्रास्ट्रक्चर का सामान भी वह बटोर ले गए। अब इन सभी परतों को पुलिस विभाग नए सिरे से खंगालने का काम करेगा। हालांकि इसमें तेजी आएगी यह अभी दूर की कौड़ी ही लग रहा है। दरअसल, एक दशक बीतने के बाद नए सिरे से घोटाले की एफआईआर दर्ज की गई है। इसके अलावा छोटे कर्मचारियों पर पुलिस विभाग की तरफ से कार्रवाई हुई है। बाकी जल संसाधन विभाग को सरकार ने अभी तक कोई जिम्मेदार नहीं माना है। जबकि एफआईआर कराने और उसके स्टेट्स को लेकर जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव को प्रतिवेदन भेजा जा रहा था।

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