दो महीने से पशोपेश में थे सीएम बघेल और सीबीआई डायरेक्टर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एडेसमेटा नरसंहार मामले में दर्ज हुई एफआईआर, छह साल पहले हुई मुठभेड़ में चार बच्चों समेत आठ आदिवासियों की हुई थी मौत, जांच रिपोर्ट से असंतुष्ट थी सुप्रीम कोर्ट की बैंच
रायपुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए (Edesmeta Massacre) एडेसमेटा नरसंहार मामले में आखिरकार सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज किया गया हैं। मामले में छत्तीसगढ़ सरकार और सीबीआई डायरेक्टर करीब 2 महीने से पशोपेश में थे। राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के बाद बिना सहमति सीबीआई की एंट्री पर रोक लगा दी गई है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सीबीआई इस मामले में आगे नहीं बढ़ पा रही थी। एडेसमेटा नरसंहार मामले में सीबीआई जांच का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विशेष निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक जांच में छत्तीसगढ़ कैडर या छत्तीसगढ़ सीबीआई का कोई भी अधिकारी शामिल नहीं होगा। यहीं वजह है कि एफआईआर मध्यप्रदेश के जबलपुर में दर्ज की गई है। ताकि मामले की निष्पक्ष जांच हो सके।
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में (Edesmeta Massacre) दिसंबर, 2018 में ही सत्ता परिवर्तन हुआ है। बदलाव के बाद वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बने। बघेल को चुनाव से पहले ही सीबीआई ने मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार किया था। चुनाव जीतते ही उन्होंने केन्द्र की सीबीआई की जांच और एफआईआर पर रोक लगा दी थी। इस कारण सीबीआई वहां कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं। इसी बीच बीजापुर जिले के गंगलूर थाना क्षेत्र में हुए चर्चित एडेसमेटा नरसंहार के मामले में मई, 2019 में सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच ने फैसला सुनाया था। इसमें सीबीआई डायरेक्टर को आदेश दिए गए थे कि (Edesmeta Massacre) मामले में एफआईआर की जाए।
क्या है मामला
छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर जिले के गंगलूर थाना क्षेत्र के (Edesmeta Massacre) एडेसमेटा गांव में 17 और 18 मई, 2013 की रात को आठ आदिवासियों और नक्सलियों से निपटने के लिए बनी कोबरा पुलिस फोर्स के एक जवान की मौत हुई थी। जिन आदिवासियों की मौत हुई थी वह मादिया और कोया जनजाति के थे। मरने वालों में करीम सोमालू (35), पूनेम सोमू (30), बैज पॉन्डम (37), करम गुड्डू (10), करम मसा (16), करम बदरू (18) और पुनीम लक्कू (15) की मौत हो गई थी। स्थानीय पुलिस और कोबरा टीम का दावा था कि इन ग्रामीणों का इस्तेमाल (Edesmeta Massacre) माओवादियों ने मानव ढ़ाल के रूप में किया था। हालांकि यह बात अफवाह साबित हुई थी। हंगामा बढऩे पर छत्तीसगढ़ राज्य की तरफ से जांच करने के लिए स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम बनाई गई थी। यह टीम पांच साल तक जांच ही करती रही और केवल पांच गवाह ही तलाश पाई।
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मानव अधिकार मंच की जीत
बेहद संवेदनशील इस (Edesmeta Massacre) मामले को लेकर देशभर के मानव अधिकार संगठनों ने नाराजगी जताई थी। इसके अलावा दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू से एक प्रतिनिधि मंडल अपनी तरफ से जांच करने भी गया था। कई मानवाधिकार मंच ने गांव में जाकर ग्रामीणों से बातचीत करके अपनी रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी। इन्हीं रिपोर्ट में बताया गया कि जहां यह घटना हुई उसके नजदीक एडेसमेटा गांव पड़ता है। इस गांव में कुल 67 घर ही हैं। यह इलाका पूरी तरह से जंगल से घिरा हुआ है। जिसमें कोया और मादिया जनजाति के ही लोग रहते हैं। इस जनजाति के लोग बारिश से पहले चार दिन का पर्व मनाते हैं। इस पर्व को बीज उत्सव कहा जाता है। जिस दिन (Edesmeta Massacre) घटना हुई उस दिन गांव के नजदीक खुले मैदान पर बीज उत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। जिसमें शामिल होकर पुलिस गोलियों में मारे गए ग्रामीण लौट रहे थे।
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टारगेट करके गोलियां बरसाई गई
मानवाधिकार मंच ने इसे (Edesmeta Massacre) साजिश बताते हुए कथित मुठभेड़ कहा है। कई मंच ने ग्रामीणों से बातचीत करते हुए बताया कि कुछ मरे हुए होने की नौटंकी भी करते रहे। जिसके बाद बचकर आए और अब उन्हें खतरा महसूस हो रहा है। इनमें से कई ग्रामीण यहां-वहां चले गए हैं। मानवाधिकार संस्थाओं के एक प्रतिनिधि मंडल की रिपोर्ट की माने तो पुनेम सुक्खू, करम बुदरा और करम लखमा वहां मौजूद थे। रात का वक्त था इसलिए गोलियां चलती हुई उनके सामने से दिख भी रही थी। चीख-पुकार मची हुई थी। ग्रामीण चट्टानों की ओट लेकर अपनी जान बचा रहे थे। मानवाधिकार संस्था की (Edesmeta Massacre) रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि कांस्टेबल देव प्रकाश की मौत पुलिस की गोली की गोली लगने से ही हुई थी। इस मामले में गंगलूर थाने में बलवा, हत्या के प्रयास, हत्या और साजिश के तहत अज्ञात लोगों पर मामला दर्ज किया गया था। यह मामला एसआई सखाराम मांडवी की शिकायत पर दर्ज हुआ था। लेकिन, संस्थाओं की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गोलियां बरसाकर नरसंहार का मामला है।
क्या है स्थिति
इस मामले (Edesmeta Massacre) को लेकर कई मानवाधिकार मंच ने लड़ाई भी लड़ी। एसआईटी की जांच और स्थानीय पुलिस कर्मचारियों और स्टाफ को बचाने के लिए केस को बदलने का आरोप भी लगे। याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामे में सरकार से जवाब मांगा था। जिसके बाद न्यायाधीश एल.नागेश्वर राव और एम.आर. शाह की बैंच ने सुनवाई की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद मई, 2019 में आदेश दिया। यह आदेश सीबीआई के डायरेक्टर को दिया गया। सीबीआई से कहा गया था कि इस (Edesmeta Massacre) नरसंहार की जांच के लिए एक स्वतंत्र अधिकारी तैनात किया जाए। वह अधिकारी छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़ा हुआ न हो। इस आदेश पर पालन करते हुए सीबीआई की जबलपुर यूनिट को एफआईआर की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। जांच अधिकारी सारिका जैन को बनाया गया है। जांच के यह आदेश सीबीआई एसपी पीके पांडे ने जारी किए हैं।