रिमांड पर मौजूद आरोपी ने किए खुलासे, आरोपी की गिरफ्तारी से रेलवे निविदाओं से जुड़े लोगों में मची खलबली
भोपाल। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) में दर्ज ई-टेंडर घोटाले (E-TENDER SCAM) के मामले में गिरफ्तार आरोपी मनीष खरे ने कई राज खोल दिए हैं। उसने पूछताछ में बताया है कि वह प्रदेश के ई-टेंडर से ज्यादा रेलवे के ठेकों में हुई गड़बडिय़ों से वाकिफ हैं।
डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने THECRIMEINFO.COM से बातचीत करते हुए बताया कि ऑस्मो कंपनी के संचालक जिन कंपनियों की प्राइस विड खुलनी होती थी उसके नाम-पते और फोन नम्बर ई-टेंडरिंग पोर्टल (E-TENDER SCAM) से निकालकर रख लेते थे। यह जानकारियां मनीष खरे को दी जाती थी। इसके बाद मनीष खरे कंपनियों से बातचीत करके बिड करने वाली कंपनियों से सुलह कराने की कोशिश करता था। वह कंपनियों के मालिकों से बातचीत करके उतनी रकम भरने के लिए कहता था। इसके बदले में कमीशन बांटने की शर्त होती थी। इस काम के लिए वह डेढ़ से दो प्रतिशत (E-TENDER SCAM) अपना कमीशन लेता था। यह पता चलने के बाद ऑस्मो कंपनी के संचालक विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर और वरूण चतुर्वेदी ई-टेंडरिंग पोर्टल में जाकर उस कंपनी की प्राइस बिड को बची हुई कंपनियों में जो भी कम होती थी वह रकम भरकर टैम्पर्ड कर देते थे।
सोरठिया वेल रत्ना पर कसेगा शिंकजा
तिवारी ने बताया कि बड़ौदा की कंपनी है सोरठिया वेलजी रत्ना के साथ डील किया गया था। इरीगैशन डिपार्टमेंट का टेंडर था। टैम्पर (E-TENDER SCAM) का पता चलने पर निरस्त कर दिया गया था। मनीष को इस काम के लिए कमीशन जो दिया गया था वह वापस बैंक खाते से दिया गया। यह बात आरोपी मनीष पूछताछ में कबूल चुका है। इससे यह साफ है कि सोरठिया वेलजी रत्ना कंपनी के संचालकों की अब जल्द गिरफ्तारी हो सकती है। इस कंपनी के खिलाफ ईओडब्ल्यू के पास पर्याप्त सबूत हैं।
डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी से बातचीत के अंश
कौन है मनीष खरे
गिरफ्तार आरोपी मनीष खरे (E-TENDER SCAM) मूलत: उत्तर प्रदेश के जालोन का रहने वाला है। वह फिलहाल भोपाल के चूना भट्टी इलाके में अमलतास-फेस-2 में रहता है। मनीष आरपीजी रिको कंपनी में सर्विस इंजीनियर का काम करता था। उसने 1996 में आटोमिशन का काम भोपाल से शुरू किया था। वह अस्पतालों में लगने वाले उपकरणों को बनाने का काम जानता है। मनीष ने माइल स्टोन बिल्डसज़् एंड डेव्हलपर, माइल स्टोन इंपोटज़् एंड एक्सपोटज़् और माइल स्टोन माकेज़्ट एवं डेव्हलपर नाम से तीन कंपनियां बनाई थी। यह कंपनियां 2015 में बनाई गई थी। इसके बाद वह (E-TENDER SCAM) ऑस्मो कंपनी के तीन संचालकों के संपर्क में आया। मनीष ने अपनी शिक्षा कानपुर के आईआईटी संस्थान से की है। मनीष रेलवे का पेटी ठेकेदार भी है। वह पिछले 15 साल से रेलवे के कई ठेके लेकर उसे पूरा कर चुका है। उसने कुछ रेलवे ठेकों को लेकर भी जानकारियां ईओडब्ल्यू को दी है।
क्या है मामला
ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल, 2019 को ई-टेंडरिंग घोटाले (श्व-ञ्जश्वहृष्ठश्वक्र स्ष्ट्ररू) के मामले में प्रकरण दर्ज किया था। इसमें जांच के लिए प्राथमिकी जून, 2018 में दर्ज हुई थी। जांच कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम नई दिल्ली से कराई गई। जल निगम के तीन टेंडर, लोक निमाज़्ण विभाग के दो टेंडर, सडक़ विकास निगम के एक टेंडर, लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का एक टेंडर ऐसे करके कुल नौ ई-टेंडरों (E-TENDER SCAM) में गड़बड़ी करना पाया गया था।
कौन है आरोपी
इस मामले में (E-TENDER SCAM) हैदराबाद की कंपनी मैसर्स जीवीपीआर लिमिटेड, मैसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंपनियां दी ह्यूम पाइप लिमिटेड, मैसर्स जेएमसी लिमिटेड, बड़ौदा की कंपनी सोरठिया बेलजी प्रायवेट लिमिटेड, मैसर्स् माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्टक्शन कंपनी मैसर्स रामकुमार नरवानी लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर है। साफ्टवेयर बनाने वाली ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, एमपी एसईडीसी, एन्टेस प्रायवेट लिमिटेड और बैगलोर की टीसीएस कंपनी को भी आरोपी बनाया गया है।
अब तक क्या
ईओडब्ल्यू ने इस मामले (E-TENDER SCAM) में सबसे पहले 11 अप्रैल, 2019 को भोपाल के मानसरोवर में दबिश दी। यहां से तीन आरोपियों विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर और वरूण चतुर्वेदी को हिरासत में लिया। इसी बीच 14 अप्रैल को एमएसएमई के ओएसडी नंदकुमार ब्रह्मे को गिरफ्तार किया गया। ईओडब्ल्यू इस मामले में अब तक पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर चुका है।