E-Tender Scam : गिरफ्तारी के डर से हाईकोर्ट की शरण में कंपनियां

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रिमांड पर चल रहे एन्ट्रेस कंपनी के अफसर को देखकर बौखलाए दूसरे डायरेक्टर हो गए भूमिगत

भोपाल। ई-टेंडर घोटाले (E-Tender Scam) में अब आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) को मुंह की खानी पड़ रही है। दरअसल, मामले से जुड़ी कंपनियों के डायरेक्टर (Companies Directors) गिरफ्तारी से बचने के लिए हाई कोर्ट (High Court) पहुंचकर अग्रिम जमानत लेने लगे हैं। इस बात से बेखबर ईओडब्ल्यू (EOW) को अब कैवियट लगाने की योजना की सुध आ रही है। ईओडब्ल्यू इस मामले में अब तक पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।

जानकारी के अनुसार ई-टेंडर घोटाले में गुजरात के बड़ौदा शहर की एक कंपनी सोरठिया बैल बेलजी प्रायवेट लिमिटेड को भी आरोपी बनाया गया है। यह पता चलने पर कंपनी के डायरेक्टर गुजरात हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने हाईकोर्ट में जाकर एडवांस बैल एप्लीकेशन दाखिल किया। जिसे अदालत ने स्वीकारते हुए उन्हें जमानत दे दी। यह जानकारी ईओडब्ल्यू को अब लगी है। जिसके बाद वह अपनी कमजोरी को छुपाने के बहाने तलाशने लगा है। इधर, एन्ट्रैस सिस्टम लिमिटेड कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट मनोहर एमएन को २ अप्रैल, २०१८ को गिरफ्तार किया गया था। उसे अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है। मनोहर पर आरोप है कि उन्होंने ओस्मो कंपनी से मिलीभगत करके ई-टेंडर से जुड़ी गोपनीयता को भंग किया था। ईओडब्ल्यू को मनोहर के अलावा कंपनी के दूसरे डायरेक्टरों से भी पूछताछ करनी थी। लेकिन, इससे पहले वे मनोहर की गिरफ्तारी देखकर भूमिगत हो गए।

कमेटी पर खामोश अफसर
ईओडब्ल्यू ने तीन सदस्यीय कमेटी को लेकर तफ्तीश की थी। यह कमेटी आईएएस हरिरंजन राव की निगरानी में काम कर रही थी। यह कमेटी 2012 में बनाई गई थी। इसमें एमपीएसईडीसी के तत्कालीन ओएसडी नंद कुमार ब्रह्मे, विशाल बांगड़, विपिन गुप्ता थे। इसी मामले पर आईएएस मनीष रस्तोगी ईओडब्ल्यू मुख्यालय पहुंचे थे। उनसे डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने टेंडर घोटाले पर तकनीकी बिन्दुओं पर बातचीत की थी। लेकिन, उसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों की भूमिका पर बातचीत ईओडब्ल्यू में बंद हो गई है।

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इतने ठेके पर हुई गड़बड़ी
ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल, 2019 को ई-टेंडरिंग घोटाले के मामले में प्रकरण दर्ज किया था। इसमें जांच के लिए प्राथमिकी जून, 2018 में दर्ज हुई थी। जांच कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम नई दिल्ली से कराई गई। जल निगम के तीन टेंडर, लोक निर्माण विभाग के दो टेंडर, सडक़ विकास निगम के एक टेंडर, लोक निमाज़्ण विभाग की पीआईयू का एक टेंडर ऐसे करके कुल नौ ई-टेंडरों में गड़बड़ी करना पाया गया था।

कौन है आरोपी
इस मामले में हैदराबाद की कंपनी मैसर्स जीवीपीआर लिमिटेड, मैसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंपनियां दी ह्यूम पाइप लिमिटेड, मैसर्स जेएमसी लिमिटेड, बड़ौदा की कंपनी सोरठिया बेलजी प्रायवेट लिमिटेड, मैसर्स माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्टक्शन कंपनी मैसर्स रामकुमार नरवानी लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज है। अधिकांश कंपनियों के पते पर आधा दजज़्न से अधिक कंपनियां भी चल रही है। इसके अलावा साफ्टवेयर बनाने वाली ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, एमपी एसईडीसी, एन्टेस प्रायवेट लिमिटेड और बैगलोर की टीसीएस कंपनी को भी आरोपी बनाया गया है।

अब तक क्या
ईओडब्ल्यू ने इस मामले में सबसे पहले 11 अप्रैल, 2019 को भोपाल के मानसरोवर में दबिश दी। यहां से तीन आरोपियों विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर और वरूण चतुवेदज़्ी को हिरासत में लिया। तीनों आरोपियों को 12 अप्रैल को अदालत में पेश करके 15 अप्रैल तक रिमांड पर लिया गया। इसी बीच 14 अप्रैल को नंदकुमार को गिरफ्तार किया गया। जिसे ओस्मो कंपनी के तीनों आरोपियों के साथ 15 अप्रैल को जिला अदालत में न्यायाधीश भगवत प्रसाद पांडे की अदालत में पेश किया गया। यहां से आरोपियों से अनुसंधान से जुड़ी जानकारियों के संबंध में पूछताछ करने के लिए 18 अप्रैल तक रिमांड पर लिया गया।

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सोमवार को होगी पेशी
यह रिमांड खत्म होने के बाद ईओडब्ल्यू ने संजीव पांडे की अदालत में आरोपियों को पेश किया। यहां से पहले गिरफ्तार तीन आरोपियों को तीसरी बार पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया। इसी तरह नंद कुमार को दूसरी बार पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया। चारों आरोपियों की रिमांड 22 अप्रैल को समाप्त हो गई। जिसके बाद उन्हें 6 मई तक के लिए न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया। इसके पहले चारों आरोपियों की तरफ से न्यायाधीश संजीव पांडे की अदालत में जमानत अर्जी लगाई गई थी। जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।

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