कम नहीं हो रहीं प्रज्ञा ठाकुर की मुश्किलें, बैन के बाद अब जारी हुआ नोटिस
भोपाल। भोपाल लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर (Pragya Thakur) की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं है। अब एक बार फिर जिला निर्वाचन अधिकारी (District election officer) एवं कलेक्टर ने प्रज्ञा ठाकुर (Pragya Thakur) को नोटिस (Notice) थमा दिया है। चुनाव आयोग द्वारा प्रचार पर रोक लगाए जाने के बाद भी कैंपेन करने की शिकायत पर जवाब-तलब किया गया है। बता दें कि शहीद हेमंत करकरे और बाबरी विध्वंस पर विवादित बयान देकर फंसी प्रज्ञा ठाकुर (Pragya Thakur) के खिलाफ चुनाव आयोग ने सख्त कार्रवाई की थी। प्रज्ञा के चुनाव प्रचार पर 72 घंटे की रोक लगा दी गई थी । अयोध्या में विवादित ढ़ांचा गिराए जाने को लेकर दिए गए बयान पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई की गई थी। आयोग ने इसे आदर्श आचार संहिता की धारा 3 (1) का उल्लंघन मानते हुए प्रज्ञा के चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी । ये रोक 2 मई सुबह 6 बजे से ये रोक लागू की गई। अगले तीन दिन तक प्रज्ञा ठाकुर (Pragya Thakur) चुनाव प्रचार पर रोक थी। लेकिन कांग्रेस का आरोप है कि इस दौरान प्रज्ञा ठाकुर ने चुनाव आयोग के आदेश की अवहेलना की और प्रचार जारी रखा। 18 अप्रैल को मुंबई आतंकी हमले में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे को लेकर विवादित बयान दिया था। जिसके बाद 20 अप्रैल को प्रज्ञा ठाकुर ने अयोध्या में विवादित ढ़ांचे को गिराने बाबरी विध्वंस को लेकर भी विवादित बयान जारी किया था। दोनों ही मामलों में जिला निर्वाचन अधिकारी ने प्रज्ञा ठाकुर से जवाब तलब किया था। जवाब से संतुष्ट न होते हुए जिला निर्वाचन अधिकारी ने प्रज्ञा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
आयोग ने माना प्रज्ञा ने दिया भड़काऊ भाषण
चुनाव आयोग द्वारा जारी आदेश के मुताबिक आयोग ने शहीद हेमंत करकरे को लेकर दिए गए बयान जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी किए गए नोटिस पर प्रज्ञा के जवाब को संतोषजनक नहीं माना है। लेकिन बाबरी विध्वंस पर दिए गए बयान पर आयोग ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि साध्वी प्रज्ञा का बयान धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला हैं और इसका असर सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र में ही सीमित नहीं रहेगा। बल्कि इस डिजिटल युग मेेें यह बयान दो समुदायों के बीच धार्मिक विद्वेष पैदा कर सकता है।
ये कहती है धारा -3
आदर्श आचार संहिता की धारा 3 के मुताबिक चुनाव में वोट पाने के लिए किसी जाति या समुदाय की भावनाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। साथ मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि धार्मिक स्थल का इस्तेमाल चुनावी प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है। इन तथ्यों के आधार पर जिला निर्वाचन अधिकारी ने साध्वी प्रज्ञा के बयान को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना है। और उनके बयानों की कड़ी निंदा की है। साध्वी प्रज्ञा को निर्देश दिया गया है कि वे भविष्य में चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह के दोनों मामलों की तरह कोई बयान नहीं देंगी।
शहीद पर ये दिया था बयान
प्रज्ञा ठाकुर ने हेमंत करकरे के लिए कहा था कि
“हेमंत करकरे को जांच आयोग के सदस्य ने बुलाया और कहा कि जब सबूत नहीं है तो साध्वी जी को छोड़ दो। सबूत नहीं है तो इनको रखना गलत है, तब करकरे ने कहा कि मैं कुछ भी करूंगा लेकिन सबूत लेकर आऊंगा। मैं साध्वी को नहीं छोड़ूंगा। ये उसकी कुटिलता थी, ये देशद्रोह था।“
प्रज्ञा ने आगे कहा, ‘यह उसकी कुटिलता थी। यह देशद्रोह था, यह धर्मविरुद्ध था। तमाम सारे प्रश्न करता था। ऐसा क्यों हुआ, वैसा क्यों हुआ? मैंने कहा मुझे क्या पता भगवान जाने। तो क्या ये सब जानने के लिए मुझे भगवान के पास जाना पड़ेगा। मैंने कहा बिल्कुल अगर आपको आवश्यकता है तो अवश्य जाइए। आपको विश्वास करने में थोड़ी तकलीफ होगी, देर लगेगी। लेकिन मैंने कहा तेरा सर्वनाश होगा।’
साध्वी प्रज्ञा ने हिरासत के दौरान उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए कहा, ‘इतनी यातनाएं दीं इतनी गंदी गालियां दीं जो असहनीय थी मेरे लिए और मेरे लिए नहीं किसी के लिए भी। मैंने कहा तेरा सर्वनाश होगा। ठीक सवा महीने में सूतक लगता है। जब किसी के यहां मृत्यु होती है या जन्म होता है। जिस दिन मैं गई थी उस दिन इसके सूतक लग गया था। ठीक सवा महीने में जिस दिन इसको आतंकवादियों ने मारा उस दिन सूतक का अंत हो गया।’
बाबरी विध्वंस पर ये थे प्रज्ञा के बोल
‘’राम मंदिर हम बनाएंगे एवं भव्य बनाएंगे, हम तोड़ने गए थे ढ़ांचा, मैंने चढ़कर तोड़ा था ढ़ांचा इस पर मुझे भयंकर गर्व है। मुझे ईश्वर ने शक्ति दी थी हमने देश का कलंक मिटाया है।‘’
दिग्विजय सिंह ने की नामांकन रद्द करने की मांग
प्रज्ञा ठाकुर के प्रचार पर रोक लगने के बाद सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर उनका नामांकन रद्द करने की मांग की है। उन्होंने लिखा कि- ‘’चुनाव आयोग का यह निर्णय अभिनंदनीय है। भाजपा सांप्रदायिक विद्वेष की राजनीति करने वालों तथा आतंकवाद के आरोपियों को जब उम्मीदवार बनाएगी तब ऐसा होना स्वाभाविक है। आदर्श लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना व संरक्षण हेतु इस प्रकार के प्रत्याशियों का नामांकन रद्द करना श्रेयस्कर होगा’’।