MP Cop Gossip: मसाज पर जब भीतर जानकारी अफसरों से टीआई को पता चली तब ऐसा हुआ, वायरल वीडियो पर थाना प्रभारी मूक—बधिर हो गए

भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस (MP Cop Gossip) विभाग काफी बड़ा हैं। उसके भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। कुछ बातें मीडिया में आ जाती है बहुत कुछ फाइलों में दबी रह जाती हैं। इन्हीं बातों का साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप है। जिसमें इस बार चटखारे दो बातें आपको चकित भी कर सकती है। हमारा मकसद सिर्फ यह बताना है कि सिस्टम के भीतर क्या चल रहा है।
हिस्ट्रीशीटर रहे नेता पुत्र की कड़वी कहानी
पिछले दिनों अपर लेक किनारे का एक वीडियो वायरल हुआ। जिसमें तीन लड़के थे और एक लड़की वहां मौजूद थी। दृश्य आधी रात का था। जिसमें एक युवक छुरा लेकर युवती को धमका रहा था। वहीं दूसरा युवक उसको तमाचा मार रहा था। यह सोशल मीडिया में काफी चर्चित रहा। इससे पहले भी राजधानी में एक युवती की मटरगस्ती करने वाला वीडियो सामने आया था। उसमें पुलिस ने स्टंट करने वाले बाइक सवार और युवती को तलाश लिया था। लेकिन, कार से उतरकर रंगदारी दिखा रहे इस वीडियो पर पूरा सिस्टम मौन हो गया। अब उसकी वजह क्या है यह बात तो कुर्सी पर बैठे अफसर ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकते हैं। लेकिन, उस वीडियो में दिख रहे युवक कौन है यह पूरा शहर जानता है। एक युवक जिसके हाथ में छुरा है उसके पिता हिस्ट्रीशीटर बदमाश रहे हैं। पिता के खिलाफ भोपाल शहर के कई थानों में मुकदमे दर्ज हैं। फिलहाल वे एक राजनीतिक पार्टी के नेता बन गए हैं। वहीं उनके पुत्र के खिलाफ भी कई प्रकरण दर्ज हैं। वीडियो में छुरा दिखने से लेकर युवती के साथ सरेराह मारपीट करने वाला यह वीडियो बता रहा है कि सिस्टम का इंटेलीजेंस नेटवर्क कितना एक्टिव हैं। बहरहाल, हम भी उतना ही बोल सकते है जितना वज्र की तरह दिखने वाले वर्दी पहने अफसर कहेंगें। हालांकि वे इस मामले में खामोश हैं। जब भी वह टूटेगी तो पर्देदारी की वजह जरुर पता लगाई जाएगी।
यह है राजधानी में कुर्सी पाने का सर्टिफिकेट

पिछले दिनों हाईकोर्ट में भोपाल शहर के एक थाने का मामला पहुंचा। कई चरणों की सुनवाई के बाद माननीय न्यायाधीश महोदय ने शहर के एक थाना प्रभारी को जमकर लताड़ लगाई। यह लताड़ केवल उस कक्ष तक ही सीमित नहीं रही। न्यायाधीश महोदय ने थाना प्रभारी के वेतन पर भी तलवार चलाते हुए आदेश पुलिस महानिदेशक महोदय को पहुंचा दिया हैं। इन प्रभारी महोदय की खासियत यह है कि इनके इलाके में होने वाली हर मोबाइल झपटमारी के मामले को वे सीआईईआर पोर्टल में पहुंचा देते हैं। ऐसा करने पर वे कई प्रकरणों में पकड़े भी जा चुके हैं। अदालत ने बकायदा उनकी जांच करने की शैली को निम्न स्तर का भी मानकर उन्हें अहसास करा दिया कि सिस्टम में दीमक अभी इतनी नहीं लगी हैं। बहरहाल उनके कार्य की निगरानी करने वाले अफसर फैसले को लेकर खामोश हैं।
चुंगी पर भी कर ली चुंगी
पिछले दिनों शहर के कई स्पा सेंटर पर दे दना दन छापे मारे गए। जिसकी जद में विभाग के ही कई अफसर आ गए। कुछ को लाइन अटैच भी कर दिया गया है। जिसके बाद शहर के कई स्पा सेंटर पर कर्मचारियों की जानकारी नहीं देने के मामले तड़ातड़ दर्ज किए गए। यह सबकुछ जोन स्तर पर चल रहा था। इधर, सीपी स्तर पर भी निगरानी की जा रही थी। जिसके बाद सभी थानों को उनके क्षेत्र में चल रहे स्पा सेंटर की सूची बनाकर भेजी गई। यहां तक तो सबकुछ रुटीन था। लेकिेन, सूची एक थाना प्रभारी को मिली तो वे चौक गए। यहां संख्या पर गौर मत कीजिएगा बस मुद्दे को पकड़कर को विषय की गंभीरता को समझिएगा। दरअसल, उन्हें अपने क्षेत्र में पता था कि 30 स्पा सेंटर हैं। जिसका हिसाब उनके पास थाने का एक वफादार हर महीने पहुंचाता था। लेकिन, जो सूची आला अफसरों के पास से उनके पास पहुंची उसमें संख्या 50 थी। अब 20 सेंटरों का हिसाब कहां गया इस बात को लेकर एक थाने के भीतर जंग चल रही है। आप कुछ समझे, यकीन न हो तो हाईवे वाले एक थाने के सामने खड़े हो जाइए सबकुछ पता चल जाएगा।
इंदौर, ग्वालियर, मउगंज और रीवा आ गया, भोपाल का एक थाना बच गया
इस बार एमपी पुलिस की होली गम में डूब गई। पुलिस मुख्यालय को अपना वार्षिक आयोजन टालना पड़ा। दरअसल, मउगंज जिले में हुई हिंसा में एक एएसआई शहीद हो गए। यहां पुलिस के साथ जमकर टकराव हुआ था। ऐसे ही परिस्थितियां इंदौर जिले में भी विधि क्षेत्र के दर्जनों लोगों के साथ बनी। इन दोनों घटनाओं के साथ—साथ रीवा और ग्वालियर की घटनाओं ने पूरे प्रदेश के कई अधिकारियों के मोबाइल की डीपी पर ब्लैक कर दिया। लगभग यह ट्रेंड बरसों पुराना भी हो चुका है। बहरहाल इस विषय पर फिर कभी प्रमाण के साथ सार्थक चर्चा होगी। लेकिन, जब पूरे प्रदेश के कई जिलों में यह खबरें चल रही थी उसी राजधानी के एक थाने की पुलिस चौकी के भीतर दे घपा घप, दे घपा घप चल रहा था। यह पूरा मामला किसी भी मैन स्ट्रीम मीडिया के कहीं पर भी सिंगल—संक्षेप भी नहीं बन सका। इसमें हैरानी वाली बात नहीं है जब मैन स्ट्रीम मीडिया मणिपुर में छह सदस्यीय सुप्रीप कोर्ट के न्यायाधीशों के यात्रा के समाचार को कांट—छांट सकता है तो यह भोपाल का एक सामान्य थाने की ही घटना तो हैं। हालांकि यह बात अलग है कि जिस क्षेत्र की यह घटना है वह प्रदेश के एक मंत्री का विधानसभा क्षेत्र हैं।
ट्रांसफर—पोस्टिंग के आदेशों पर डाला जाता है पर्दा

पिछले दिनों शहर के एक डीसीपी ने एसीपी को सजा दे डाली। वहीं एक डीसीपी ने एक थाना प्रभारी महोदय के खिलाफ उनके ही थाने में प्रकरण दर्ज करा दिया। यह दोनों खबरें मैन स्ट्रीम मीडिया के जरिए ही सामने आई। लेकिन, इस संबंध में पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय का एक भी अफसर या अधिकारी मामले को लेकर बयान जारी नहीं कर सका। इन व्यवस्थाओं को लेकर मैन स्ट्रीम मीडिया में भी यह बातें नहीं आई। क्योंकि हमें इन गंभीर चूक जैसी घटनाओं को लेकर अंधेरे में रखने का आदी बनाया जा रहा है। यह सिलसिला यहां भी नहीं थमता है। शहर के ही एक थाने में रातोंरात एसआई को हटाकर वहां निरीक्षक को तैनात कर दिया गया। इसके अलावा एक परीवीक्षाधीन अवधि में प्रभारी की कुर्सी संभालने वाले भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी की पोस्टिंग के संबंध में भी आदेश मैन स्ट्रीम मीडिया को बताने की जेहमत किसी भी अफसर ने नहीं जुटाई। ऐसा ही कई अन्य अधिकारियों को लेकर भी हुआ है। कई निरीक्षकों के तो सिंगल आदेश जारी किए गए। इससे साफ है कि कहां से करंट चला होगा और किसे लगा होगा। इसलिए भय लगता है कि कहीं उनकी कमजोरी की वजह का पता न चल जाए। वह तो भला हो कुछ हिकमत अमली के खिलाफ बोलने वाले खबरनवीस का जो इन बातों पर भी चुटकी ले लेते हैं। हमारा तो सिर्फ इतना कहना है भैया कार्रवाई की है तो उसे बताने में हिचकना क्यों, यदि हिचक है तो कार्रवाई करना क्यों।
एसीपी के ड्रायवर ने कर दिया परेशान
पिछले दिनों एक विभाग से संबंधित मामला पुलिस थाने में पहुंचा। यहां के थाना प्रभारी की खासियत है जितनी भी बड़ी वारदात हो जाए साहब कभी फोन नहीं उठाते हैं। क्योंकि उन्होंने कुर्सी जुगाड़ से पाई है। इसलिए उन्हें पता है कि कहा जाकर बटर ब्रेड पर लगाना है। लेकिन, अब वे भागते फिर रहे हैं। क्योंकि एक एसीपी के ड्रायवर के मामले ने उनकी योग्यता की पोल खोलकर रख दी है। दरअसल, मामला कुछ ऐसा है कि दो सिपाही कांस्टेबल पति—पत्नी के बीच घरेलू कलह चल रही है। दोनों का प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है। पति के पास बच्चा है जो उसने कोर्ट के आदेश पर हासिल किया है। उसकी देखरेख के लिए एक केयरटेकर भी रख ली है। यही केयर टेकर असली विवाद की वजह है। कांस्टेबल पत्नी को लगता है कि वह उसकी गर्लफ्रेंड है। जबकि वह थाने में हुई शिकायत में उसे केयरटेकर बताकर पिंड छुड़ा रहा है। कांस्टेबल पति शहर के ही एक एसीपी का सरकारी रथ चलाता है। इस कारण उसके प्रति ज्यादा दरियादिली दिखाने के चक्कर में थाना प्रभारी अब चकरघिनी बने हुए हैं। क्योंकि यह प्रकरण अब सीधे पुलिस मुख्यालय पहुंच गया है। जहां से आने वाले फोन को सुनने के लिए वे बकायदा खड़े होकर चेस्ट इन और चेस्ट आउट करते—करते थक गए हैं।
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