Bhopal Custodial Death: बैरागढ़ के निजी अस्पताल से हमीदिया ले जाने की बजाय नर्मदा अस्पताल ले जाते वक्त हुई मौत, ग्रामीणों पर ठीकरा फोड़ने हत्या का दूसरे थाने में दर्ज हुआ गुपचुप मुकदमा
भोपाल। पुलिस अभिरक्षा में एक व्यक्ति की मौत का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस मामले में कई तरह के तकनीकी पेंच पैदा कर दिए गए हैं। इसलिए यह पूरा मामला ही संदिग्ध बन गया है। घटना भोपाल (Bhopal Custodial Death) सिटी के खजूरी सड़क इलाके से शुरू हुई थी। जिसके केंद्र बिंदु में भोपाल का क्राइम ब्रांच थाना है। भोपाल शहर में आठ महीने पहले पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू हुई थी। इस दौरान अब तक कस्टोडियल डेथ का यह दूसरा मामला हो गया है।
यहां से शुरू हुई कहानी
एडीसीपी सचिन अतुलकर के मुताबिक शाजापुर के कुछ संदिग्धों के खजूरी सड़क इलाके में होने की जानकारी मिली थी। संदिग्ध को ग्रामीणों ने घेर लिया था। जिसके बाद क्राइम ब्रांच की टीम (Bhopal Custodial Death) संदिग्ध को लेकर बैरागढ़ के एक निजी अस्पताल पहुंची थी। संदिग्ध का नाम घनश्याम उर्फ दिनेश पिता लच्छू उम्र 25 साल बताया जा रहा है। वह शाजापुर का रहने वाला है। उसके चोर होने की संभावना थी। इसलिए ग्रामीणों ने उसे बुरी तरह से पीटा था। बैरागढ़ से उसको इलाज के लिए नर्मदा अस्पताल (Narmada Hospital) ले जाया जा रहा था। इसी दौरान संदिग्ध की मौत हो गई। चूंकि उस वक्त वह पुलिस अभिरक्षा में था इसलिए न्यायिक जांच के लिए आवेदन जिला न्यायालय से किया गया है। ताकि निष्पक्षता के साथ जांच की जा सके। यह बताते हुए एडीसीपी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खजूरी सड़क थाने में दर्ज प्रकरण 353/22 धारा 302 हत्या के मामले की जांच पुलिस ही करेगी। इस मामले में आरोपी अभी अज्ञात ग्रामीण है। लेकिन, जांच के बिंदु न्यायिक जांच रिपोर्ट को शामिल करने के बाद तय होंगे।
यहां पैदा हो रहे हैं सवाल
यह पूरा मामला 10 अगस्त का था। जिसका खुलासा चैबीस घंटे बाद मीडिया में हुआ। जबकि बुधवार और गुरूवार सुबह बनने वाली पुलिस रिपोर्ट में खजूरी सड़क थाने में दर्ज हत्या का मुकदमा गायब था। यह रिपोर्ट जिले से डीजीपी कार्यालय तक जाती है। मतलब साफ है कि मैदानी अफसरों की तरफ से आला अधिकारियों को अब तक अंधेरे में रखा गया है। न्यायिक जांच के आदेश होने के बावजूद क्राइम ब्रांच (Bhopal Custodial Death) से जुड़े अधिकारियों को लेकर पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर (CP Makrand Deauskar) और अतिरिक्ति पुलिस उपायुक्त सचिन अतुलकर (Additional CP Sachin Atulkar) कोई निर्णय नहीं ले पाए थे। एक तरफ खजूरी सड़क थाने में हत्या का प्रकरण अज्ञात व्यक्ति पर दर्ज कर दिया गया है। वहीं न्यायिक जांच केे आदेश भी दे दिए गए हैं। मतलब साफ है कि पुलिस प्रशासन ने पहले अपनी एफआईआर काटी फिर उसके बाद न्यायालय को इस मौत के मामले में जवाबदेही तय करने के लिए अवसर दिया।
यह पूरा मामला सामने आने के बाद कोई भी मैदानी अधिकारी आधिकारिक रूप से बातचीत करने के लिए राजी नहीं था। क्राइम ब्रांच थाना प्रभारी का फोन नहीं उठ रहा था। वहीं एडीसीपी शैलेन्द्र सिंह चैहान की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि खजूरी सड़क थाने में जब ग्रामीणों का बवाल हुआ तो स्थानीय थाना पुलिस की बजाय सूचना क्राइम ब्रांच तक कैसे पहुंच गई। वहीं ग्रामीणों से बचाव करने क्राइम ब्रांच खजूरी सड़क पर कब चली गई। क्राइम ब्रांच के रोजनामचे में खजूरी सड़क के लिए रवानगी डालने वाले अधिकारी और कर्मचारी कौन थे। किस अधिकारी अथवा कर्मचारी को सबसे पहले खजूरी सड़क थाना क्षेत्र में चल रहे बवाल की खबर मिली थी। इसके अलावा बैरागढ़ के निजी अस्पताल से हमीदिया अस्पताल घनश्याम उर्फ दिनेश (Ghanshyam@Dinesh) को क्यों नहीं ले जाया गया। जबकि हमीदिया अस्पताल (Hamidia Hospital) सरकारी है और वहां दक्ष चिकित्सक है। नर्मदा अस्पताल ले जाने की सलाह किसकी तरफ से दी गई थी। इन तमाम बिंदुओं और सवालों को लेकर कोई भी पुलिस अधिकारी ठोस बातचीत करने के लिए तैयार नहीं था।
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