MP Police Commissioner System: दिग्विजय सिंह के शासन काल से लेकर अब तक पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लेकर कब—कब बयान और क्या हुआ काम उसकी पूरी रिपोर्ट
भोपाल। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो दिन पहले कृषि कानून बिल को वापस लेने का ऐलान किया था। यह पूरे देश को चौंका देने वाला संदेश था। दरअसल, लोगों को यकीन था कि पीएम पीछे नहीं हटेंगे। वहीं विपक्ष अपनी रणनीतियों को लेकर चिंता में आ गया था। कुछ इसी तरह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। उन्होंने एमपी के दो शहरों भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली (MP Police Commissioner System) लागू करने का ऐलान किया। हालांकि ऐसा ऐलान पहली बार उन्होंने नहीं किया है। यह हम नहीं बल्कि मीडिया रिपोर्ट कह रही है। यदि उन समाचारों पर यकीन किया जाए तो नौ साल पहले सीएम ने इस व्यवस्था को टाल दिया था।
राजनीति का विषय रही है पुलिस
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह बोलकर सुर्खियां बटोरी हो। यह परंपरा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासन काल से चली आ रही है। उन्होंने सबसे पहले 2000 में यह बात बोली थी। जिसके संबंध में दैनिक सच एक्सप्रेस की मीडिया रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट 2018 में प्रकाशित हुई थी। कुछ इसी तरह का समाचार फरवरी, 2020 में सामने आया था। उस वक्त कांग्रेस के ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आईपीएस मीट में यह बयान दिया था। यह कार्यक्रम मिंटो हॉल में आयोजित हुआ था। कमलनाथ ने काफी डिप्लोमैटिक जवाब दिया था। उन्होंने इस प्रणाली को मंजूर नहीं तो खारिज भी नहीं किया था। मीडिया रिपोर्ट ही है कि 2012 में तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री और गृहमंत्री बाबूलाल गौर चैन्नई इस प्रणाली को लागू करने के लिए अध्ययन यात्रा में गए थे। वहां से आकर रिपोर्ट सीएम शिवराज सिंह चौहान की टेबल पर रखी भी गई थी।
गृहमंत्री के दामाद के अधिकार छीने!
प्रदेश की भाजपा पार्टी के भीतर ही भीतर कुछ चल रहा है। यह हम यूं ही नहीं कह रहे। जी न्यूज ने 27 अक्टूबर, 2021 को यह बयान दिया था कि प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू नहीं होगी। यही बात दिसंबर, 2020 में दूसरे अंदाज में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दोहराई थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि सीएम जब चाहेंगे तब प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो जाएगी। ऐसे ही सैंकड़ों मीडिया रिपोर्ट एमपी की पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लेकर न्यूज वेबसाइट में दी गई है। दैनिक जागरण समाचार पत्र ने तो गणतंत्र दिवस में इसके ऐलान करने की बात बोलते हुए समाचार दिया था। हालांकि वहां केवल झंडावंदन हुआ और सामान्य भाषण देकर सीएम उस वक्त भी चले गए थे। यदि यह प्रणाली लागू हुई तो कलेक्टर के मजिस्ट्रीयल अधिकार बांटने पड़ेगे। अभी कलेक्टर अविनाश लवानिया है जो गृहमंत्री के रिश्तेदार भी है।
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में यह कहा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ से लगभग एक मिनट का वीडियो बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर है। पुलिस अच्छा काम कर रही है। पुलिस—प्रशासन ने मिलकर कई उपलब्धियां हासिल की है। लेकिन, शहरी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। महानगरों का विस्तार हो रहा है भौगोलिक दृष्टि से। जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। इसलिए कानून व्यवस्था की कुछ नई समस्याएं पैदा हो रही है। उनके समाधान और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए हमने फैसला किया है कि प्रदेश के दो बड़े महानगरों में राजधानी भोपाल और स्वच्छ शहर इंदौर में हम पुलिस कमिश्नर सिस्टम (MP Police Commissioner System) लागू कर रहे हैं। ताकि अपराधियों पर और बेहतर नियंत्रण कर सके। इस संदेश के बाद गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने स्वागत योग्य यह कदम बताया।
चैन्नई की रिपोर्ट अभी भी नहीं हुई सार्वजनिक
इसी कवायद के चलते भोपाल में डीआईजी प्रणाली लागू की गई। इसके पहले यहां एसपी व्यवस्था थी। इतना ही नहीं भोपाल के अशोका गार्डन और हबीबगंज थाने में भी एक प्रयोग इसी काम के लिए किया गया था। यहां कानून—व्यवस्था और क्राइम कंट्रोल के लिए अलग—अलग यूनिट बनाई गई थी। ऐसा करते वक्त तब भी कहा गया था कि यह पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लिए किया जा रहा है। हालांकि उस वक्त प्रयोग के सार्थक परिणाम सामने नहीं आए थे। इसी तरह पूर्व गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी। उसमें बताया गया था चैन्नई में उस वक्त 60 लाख की आबादी में 135 से अधिक थाने थे। उस लिहाज से भोपाल और इंदौर काफी पिछड़ा हुआ था। अगर इस रिपोर्ट में भी यकीन किया जाए तो भोपाल में 43 थाने हैं जो महानगर होने की बात दूर—दूर तक अभी भी साबित नहीं कर रहे।
फोर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर न बने बहाना
सरकार यदि यह फैसला ले रही है तो उसके फायदे और नुकसान उसको ही भोगने होंगे। इस व्यवस्था से आईएएस खेमा बहुत पहले ही दो गुटों में बंट गया है। जबकि इन दोनों शहरों में डीआईजी प्रणाली के अब तक कोई बेहतर परिणाम सामने नहीं आए है। उसकी वजह शासन स्तर पर ही है। लेकिन, पुलिस के अफसर यह बोल नहीं सकते। पुलिस कमिश्नर प्रणाली (MP Police Commissioner System) को लेकर भारी इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा मैन पावर की आवश्यकता पड़ेगी। जमीनी हालात यह है कि राजधानी भोपाल में ही अभी तक सरकार सायबर क्राइम का नोडल थाना नहीं दे सकी है। वहां तकनीकी और प्रशिक्षित स्टाफ की बहुत ज्यादा कमी है। शहर में जब डीआईजी प्रणाली लागू हुई थी तब भी अफसरों की संख्या बढ़ी थी। जबकि मैदानी कर्मचारियों को यहां—वहां से कांट—छांटकर उन अफसरों के कार्यालयों और बंगलों में भेजा गया था। डीआईजी प्रणाली में ही सामने आई कई चुनौतियों का समाधान नहीं हो सका है।
यह कहते हैं एक्सपर्ट
पुलिस कमिश्नर प्रणाली से जनता को फायदा होगा अथवा नहीं यह भविष्य ही बताएगा। हालांकि इसके लागू होने या नहीं होने को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लेकिन, वीडियो बयान से इसे लागू होना माना जा रहा है। रिटायर्ड डीजीपी एनके त्रिपाठी ने कहा कि यह सकारात्मक कदम है। उन्होंने कहा कि इससे पहले कलेक्टर—एसपी के बीच जिम्मेदारी तय करने को लेकर सवाल खड़े होते थे। अब यह साफ हो जाएगा कि निर्णय लेने वाला ही जिम्मेदार होगा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि संसाधन देने तो पड़ेंगे। उसको सुदृण करना भी पड़ेगा। इसके लिए क्राइम कंट्रोल यूनिट और दूसरे कामों के लिए अलग यूनिट बनानी होगी। तभी यह कारगर हो सकेगा।
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