MCU Scam News: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुए नियुक्ति घोटाले की खात्मा रिपोर्ट वापस लौटाई, नए सिरे से चार बिंदुओं पर होगी संघ के करीबी कुठियाला की जांच
भोपाल। मध्यप्रदेश में पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के रूप में चर्चित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुए नियुक्ति घोटाले की खात्मा रिपोर्ट भोपाल कोर्ट ने वापस लौटा दी। इस मामले की जांच आर्थिक प्रकोष्ठ विंग ईओडब्ल्यू ने की थी। यह मुकदमा तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्याकाल में दर्ज किया गया था। उनकी कुर्सी जाते ही भाजपा सरकार में इस प्रकरण में खात्मा लगा दिया गया था। इस घोटाले में यूनिवर्सिटी का पैसा भाजपा से जुड़े उनके संगठनों में लुटाने का भी था। मुख्य आरोप यहां के कुलसचिव रहे प्रोफेसर बीके कुठियाला पर लगा था। आरएसएस के बेहद करीबी रहे कुठियाला ने माखनलाल में दो बार तीन—तीन साल का कार्यकाल पूरा किया था। खात्मा रिपोर्ट से कोर्ट ने असहमति जताते हुए उसे ईओडब्ल्यू को नए सिरे से जांच करने के लिए भेज दिया है। इस मामले में प्रदेश सरकार में एक मंत्री की बहन का भी नाम है।
यहां से शुरु हुई थी कहानी
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि में कुलपति का चयन पदेन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में किया जाता है। इसमें नेता प्रतिपक्ष भी होते हैं। यहां जनवरी, 2019 में जगदीश उपासने को कुलपति बनाया गया था। यह पदभार उन्होंने प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला से लिया था। कुठियाला माखनलाल में लगातार दो बार कुलपति रहे। उपासने अपनी पारी शुरु करते उससे पहले ही कमलनाथ की सरकार आ गई। जिसके बाद कुलपति पद से उपासने की विदाई हो गई। उनकी जगह मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी को कुर्सी सौंपी गई। उन्हीं की सिफारिश पर कुलसचिव दीपेन्द्र सिंह बघेल के आवेदन मिलने के बाद 14/19 धारा 420/120/7 जालसाजी, साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। कुलसचिव के आवेदन देने से पहले एक जांच कमेटी बनाई थी। जिसमें एम गोपाल रेड्डी, भूपेन्द्र गुप्ता और संदीप दीक्षित शामिल थे। तीनों सदस्यों ने 2003 से लेकर दिसंबर, 2018 केे बीच हुई नियुक्तियों और व्यय की जांच के लिए दस्तावेजों की पड़ताल की थी।
एफआईआर के बाद भूमिगत हुए थे कुलपति
समिति ने अपनी रिपोर्ट (MCU Scam News) मार्च, 2019 में दे दी थी। रिपोर्ट और कुलसचिव दीपेन्द्र सिंह बघेल के आवेदन पर तत्कालीन डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने एफआईआर के आदेश दिए थे। इसमें सबसे पहला नाम तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला का था। उसके बाद प्राध्यापक डॉक्टर अनुराग सीठा, डॉक्टर पी.शशिकला, डॉक्टर पवित्र श्रीवास्तव, डॉक्टर अविनाश बाजपेयी, प्रोफेसर अरुण भगत, प्रोफेसर संजय द्विवेदी, डॉक्टर मोनिका वर्मा, डॉक्टर कंचन भाटिया, डॉक्टर मनोज कुमार पचारिया, सह प्राध्यापक डॉक्टर आरती सारंग, रंजन सिंह, डॉक्टर सौरभ मालवीय, सूर्य प्रकाश शाह, प्रदीप कुमार डहेरिया, उनके भाई सत्येन्द्र कुमार डहेरिया, डॉक्टर गजेन्द्र अवास्या, डॉक्टर कपिल राज चौरसिया, रजनी नागपाल और सुरेन्द्र पाल को आरोपी बनाया गया था। इसमें सुरेन्द्र पाल की मौत हो चुकी है। कुठियाला की गिरफ्तारी के लिए ईओडब्ल्यू को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। वे कई दिनों तक भूमिगत रहे। फिर अदालत के जरिए गिरफ्तारी को टालते रहे।
पत्नी को विदेश घुमाने भेजा
प्रशासनिक अधिकारी की बेटी को भी ऐसे ही करके भर्ती कर लिया गया। ईओडब्ल्यू की एफआईआर में आरोप था कि आरएसएस और एबीवीपी के कार्यक्रमों में करीब साढ़े सत्रह लाख रुपए यूनिवर्सिटी के बजट से खर्च किए गए। जम्मू कश्मीर के अध्ययन केंद्र ने रविशंकर के आश्रम में आयोजित संगम केे लिए तीन लाख रुपए दिए। कुठियाला ने यूनिवर्सिटी के बजट पर विदेश और पत्नी को भी यात्राएं कराई। यूनिवर्सिटी (MCU Scam News) के बजट से खरीदे गए मोबाइल और लैपटॉप को जमा नहीं कराया। मामले की जांच ईओडब्ल्यू में बीके संधू ने की थी। जिसके बाद उच्चतम न्यायालय में याचिका लंबित होने का हवाला देकर कोई निष्कर्ष नहीं देना बताकर आरोपों के खिलाफ सबूत नहीं मिलने की जानकारी ईओडब्ल्यू ने कोर्ट को दी थी। जिसके खिलाफ जिला अदालत में याचिका लगाई गई थी।
पाकिस्तानी अखबार के लिए पैसा लुटाया
जिला अदालत में खात्मा रिपोर्ट पर दीपेन्द्र बघेल, संदीप दीक्षित, भूपेन्द्र गुप्ता, आशुतोष मिश्रा, अवनीश श्रीवास्तव और पंकज गौतम के बयान दर्ज किए गए। बघेल को भाजपा सरकार बनने के बाद भोपाल से खंडवा भेज दिया गया था। वहीं प्रोफेसर संजय द्यिवेदी आईआईएमसी भेजकर उनकी तरक्की कर दी गई है। यह मामला जब दर्ज किया गया था उस वक्त एसपी रहे अरुण मिश्रा अपने निलंबन के खिलाफ अदालत में संघर्ष कर रहे हैं। सरकार आने के बाद केएन तिवारी को भी हटा दिया गया था। संदीप दीक्षित दिल्ली में पूर्व मुख्यम़ंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं। वह भी सांसद होने के साथ सोनीपत जिंदल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं। आरोप था कि यूनिवर्सिटी ने यूजीसी मानकों को नजर अंदाज करके भर्तियां की थी। बिना मापदंडो के यूनिवर्सिटी ने कई जिलों में सेंटर खोल दिए थे। इसके अलावा पाकिस्तान में उर्दू भाषा में प्रकाशित समाचार पत्रों के शोध के लिए बजट में पैसा खर्च किया गया था। बिसनखेड़ी में तैयार भवन में भी आर्थिक अनियमितता की गई थी। आशुतोष मिश्रा ने ही ई—मेल के जरिए ईओडब्ल्यू की क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दी थी। उन्होंने अदालत को बताया कि संजय द्यिवेदी यूजीसी की गाइड लाइन के अनुसार आज भी प्रोफेसर नहीं बन सकते हैं।
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