विकास दुबे पैदा नहीं होते, परवरिश ‘विकास’ बना देती है
पिपरिया। (Pipariya News) देशभर में कानपुर वाले विकास दुबे (Vikas Dubey) की चर्चा हो रही है। हो सकता है कि एनकाउंटर के बाद विकास के साथ कई राज दफ्न हो गए हो। लेकिन मौजूं सवाल अब भी जिंदा हैं, कि एक गैंगस्टर के ‘विकास’ में किन लोगों का हाथ था ? कौन इस कानपुर वाले विकास की परवरिश कर रहा था ? किन राजनीतिक, प्रशासनिक परिस्थितियों में 60 से ज्यादा जघन्य अपराधों का आरोपी, जिनमें 20 हत्याओं के केस हों, खुलेआम घूम रहा था, गैंग चला रहा था ?
परवरिश विकास बना देती है
इस मामले में फौरी तौर पर एक बात निकलकर सामने आई कि कानपुर देहात थाना पुलिस ही विकास के साथ मिली हुई थी। लेकिन सोचिए क्या एक थाने की पुलिस से सेटिंग से ही इतना ‘विकास’ हो सकता है। जाहिर सी बात है आपका जवाब न में ही होगा। 8 पुलिसकर्मियों की शहादत और दुर्दांत अपराधी के एनकाउंटर के बीच एक बात हमें समझनी होगी कि विकास पैदा नहीं होते। समाज के रखवालों की परवरिश उन्हें ‘विकास’ बना देती है।
शुरुआत ऐसे ही होती है
आप सोच रहे होंगे कि पिपरिया (Pipariya) डेडलाइन से लिखी जा रही खबर में राष्ट्रीय स्तर के केस की बात क्यों की जा रही है ? जी हां मैं आपकों खबर के माध्यम से ही कनेक्ट कर रहा हूं। क्यों कि तमाम सबूतों के होने के बावजूद जब आरोपी खुलेआम घूमते है, तो मामले, इसी तरह कनेक्ट हो जाते है।
द क्राइम इन्फो ने किया था खुलासा
अधिकारियों का आरोपियों से रिश्ता पार्ट-1 में द क्राइम इन्फो ने एक खुलासा किया था। उम्मीद थी कि आरोपी से अधिकारी का ‘रिश्ता’ टूट जाएगा । आरोपी के खिलाफ कार्रवाई होगी। लेकिन अजब मध्यप्रदेश की गजब पिपरिया के अधिकारी मुद्दें से ही भटक गए। आरोपी युवती के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गई।
मिनरल वाटर की तरह साफ दिखने वाले मामले में भी ढुलमुल रवैया अपनाया जा रहा है। गंभीर आपराधिक मामले की आरोपी का पुलिस रिकॉर्ड देखे बिना एसडीएम मदन रघुवंशी, उसका चरित्र प्रमाण पत्र जारी कर देते है। चरित्र प्रमाण पत्र में एसडीएम रघुवंशी अपने और आरोपी के बीच बीते 3 साल से जान-पहचान होने की बात भी लिखते है।
आरोपी के खिलाफ गंभीर धाराओं में दर्ज है केस
1 जुलाई को एसडीएम पिपरिया मदन रघुवंशी (SDM Madan Raghuwanshi) के दफ्तर से धारा 452 (घर में घुसना) 294 (गाली-गलौच करना) 323 (मारपीट) 34 (एक से अधिक आरोपी) की आरोपी का चरित्र प्रमाण पत्र जारी हुआ था। 2 जुलाई को द क्राइम इन्फो ने इस मामले का खुलासा कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक खबर पढ़ने के तुरंत बाद ही एसडीएम रघुवंशी ने आरोपी युवती का रिकॉर्ड मंगलवारा थाने से तलब भी करा लिया था। जिसके बाद एक्शन लेने की बजाए पूरे मामले को ही ठंडे बस्ते के अंदर सरका दिया गया।
विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि 3 जुलाई को स्थानीय मीडिया के प्रतिनिधियों ने भी इस मामले में एसडीएम से सवाल पूछे थे। जिसके जवाब में मदन रघुवंशी ने बताया था कि उन्होंने आरोपी युवती से शपथ पत्र लिय़ा था और उसी के आधार पर चरित्र प्रमाण पत्र बना दिया था। आरोपी जना बैंक की पिपरिया शाखा में कर्मचारी है।
गोलमोल जवाब से रफा-दफा करने की कोशिश
मतलब साफ है कि आरोपी युवती ने अनुविभागीय दंडाधिकारी (एसडीएम) के सामने एक फर्जी शपथ पत्र पेश किया। उसके आधार पर चरित्र प्रमाण पत्र भी बनवा लिया। जाहिर है कि आरोपी युवती के खिलाफ एसडीएम साहब को धोखाधड़ी (420) और कूटरचित दस्तावेज (467) पेश करने का मामला दर्ज कराना चाहिए। लेकिन बीते 10 दिनों में कार्रवाई करने की बजाए, गोलमोल जवाब ही दिए जा रहे है।
इस बीच द क्राइम इन्फो ने एसडीएम मदन रघुवंशी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की। ज्यादातर फोन तो साहब ने रिसीव नहीं किए। लेकिन 7 जुलाई को उन्होंने बताया था कि 4 जुलाई को उन्होंने आरोपी को समन जारी किया था। 8 जुलाई को आरोपी युवती की पेशी है। एसडीएम का कहना था कि 8 जुलाई को पेशी के बाद शाम को वे मीडिया को मामले की जानकारी देंगे। लेकिन साहब ने फोन उठाना ही बंद कर दिया। खबर पर प्रतिक्रिया के लिए उन्हें मैसेज भी किए गए, लेकिन कोई रिप्लाई नहीं आया। वहीं मामले में कलेक्टर धनंजय सिंह भदौरिया से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि प्राप्त नंबर बंद ही आ रहा है।
मामले में लब्बोलुआब ये है कि इस मामले में आरोपी के पक्ष में जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है। वहीं तो ‘विकास’ बनाने की विधि है। इसी तरह की प्रशासनिक क्लीनचिट आरोपियों का मनोबल बढ़ाती हैं, और उन्हें विश्वास हो जाता है कि कोई उनका कुछ नहीं कर सकता। सिस्टम की इसी नाफरमानी का नतीजा हैं कि आम आदमी का न्याय से भरोसा उठता जा रहा है।
अवैध उत्खनन जारी है
वहीं दूसरी कुछ दिनों की शांति के बाद पिपरिया की पाली नदी से रेत का अवैध उत्खनन शुरु हो गया है। विहिप नेता रवि विश्वकर्मा हत्याकांड के दो-तीन दिन पहले से सड़कों पर बेधड़क दौड़ती ट्रैक्ट्रर ट्रॉलियां रुक गई थी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि रेत का खेल फिर शुरु हो गया है। नेताओं, अधिकारियों, पुलिस और रेत माफिया का ये गठजोड़ फलफूल रहा है।
अधिकारियों का आरोपियों से रिश्ता पार्ट- 1 पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें