Exclusive Story: राजधानी में कोर्ट रुम में झूठे आबकारी प्रकरण में असली की बजाय ‘नकली’ को पेश करने का आरोप, हूबहू जॉली एलएलबी पार्ट 2 की कहानी में फंसे दो एएसआई और दो कांस्टेबल लाइन हाजिर, प्राथमिक जांच में आरोप प्रमाणित अब विभागीय जांच का शिकंजा, पढ़िए भोपाल में पुलिस के एक ओर कारनामे की तह तक की गई पड़ताल
भोपाल। बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म जॉली एलएलबी पार्ट 2 (Jolly LLB Part-2) आपने देखी ही होगी। यह फिल्म फरवरी, 2017 में प्रदर्शित हुई थी। इसे सुभाष कपूर (Subhash Kapoor) ने लिखी और बनाई थी। यह पूरी फिल्म पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर केंद्रीत है। जिसमें एक ऐसे व्यक्ति जिसका इनकाउंटर होना था उसे कोर्ट रुम में ले जाने से पहले रिहा कर दिया जाता है। इस पात्र का नाम फिल्म में मोहम्मद इकबाल कादरी (Mohmmed Iqbal Kadri) था। उसके स्थान पर दूसरे व्यक्ति को पेश करके इनकाउंटर (Fake Encounter) किया जाता है। कुछ ऐसा ही मामला भोपाल (Bhopal News) देहात क्षेत्र के बैरसिया थाने में उजागर हुआ है। इन आरोपों पर पुलिस अधीक्षक देहात प्रमोद कुमार सिन्हा (IPS Pramod Kumar Sinha) ने चार मैदानी कर्मचारियों को प्राथमिक जांच के बाद लाइन हाजिर कर दिया है। भोपाल में बनी असली फिल्म की पटकथा के पात्र का नाम जावेद है। हमारी खोजपरक रिपोर्ट (Exclusive Story) पर अभी कई तथ्य उजागर होना बाकी है। फिलहाल शुरुआती घटनाक्रम से साफ है कि कुछ न कुछ फर्जीवाड़ा हुआ है। इसे करने वाले अभी पूरी तरह से बेनकाब होना बाकी है।
क्या यह संभव है कि पुलिस ने अपनी जेब से भरे आठ हजार रुपए
इस कारण विवाद की स्थिति बनी
बैरसिया थाने में तैनात आरक्षक जितेंद्र और भानू जब जावेद उर्फ पिस्सू उर्फ लल्लू को लेकर आए तब उसने शराब पी रखी थी। लेकिन, उसके पास से कोई शराब बरामद नहीं हुई थी। उसे थाने में पीटा गया था। इतना ही नहीं प्रकरण (Exclusive Story) से बचने के लिए एक लाख रुपए मांगे थे। सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ। जिसके बाद जावेद के भाई ने रकम का इंतजाम करके उसे सौंपा। आरक्षक जितेंद्र और भानू ने जब जावेद को हिरासत में लिया तो उसने अपना नाम बताया था। जिसके बाद तत्कालीन बैरसिया थाना प्रभारी नजीराबाद वाला जावेद समझकर उसे थाने लेकर आने बोला। दरअसल, नजीराबाद थाने में जावेद उर्फ काला (Javed@Kala) के खिलाफ स्थायी वारंट जारी था। लेकिन, वह जावेद उर्फ पिस्सू उर्फ लल्लू निकला तो उसे छोड़ा जाना था। हालांकि ऐसा करने की बजाय एक मुकदमा दर्ज करके उससे कोरे कागज पर हस्ताक्षर करा लिए गए।
थाना प्रभारी को बचाने जांच में निष्पक्षता नहीं
भोपाल पुलिस के इतिहास में यह पहली बार नहीं
बैरसिया थाने में दर्ज आबकारी के एक मामले में हुई किरकरी भोपाल पुलिस के इतिहास में पहली बार नहीं है। इससे पहले बागसेवनिया (Bagsewania) थाना पुलिस ने भी कुछ दशक पूर्व दो सगे भाई जो हूबहू एक जैसे दिखते थे उनके साथ कारनामा कर दिया था। एक भाई आदतन बदमाश था जिसके हाथ—पैर में छह—छह उंगलियां थी। पुलिस रिकॉर्ड में उसके नाम के साथ उर्फियत छंगुरियां ही लगाई थी। लेकिन, लापरवाही इतनी रही कि उसके सीधे भाई जिसके खिलाफ कोई प्रकरण नहीं था उसे गिरफ्तार कर जेल डाल दिया था। इसी तरह भोपाल के ही गांधी नगर (Gandhi Nagar) थाना पुलिस ने भी एक फर्जी गैंगरेप मामले में आरोपी बनाकर एक व्यक्ति को जेल में डाल दिया था। यह दोनों मामले उस वक्त भी मीडिया की काफी सुर्खिंयों में रहे थे। (सुधि पाठकों से अपील, हम पूर्व में धाराओं की व्याख्याओं के साथ समाचार देते रहे हैं। इसको कुछ अवधि के लिए विराम दिया गया है। आपको जल्द नए कानूनों की व्याख्या के साथ उसकी जानकारी दी जाएगी। जिसके लिए हमारी टीम नए कानूनों को लेकर अध्ययन कर रही हैं।)
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