MP Cop News: आईजी दीपिका सूरी समेत चार पुलिस अधिकारियों को मिला सम्मान, सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर ने इन विषयों को लेकर दिए यह महत्वपूर्ण सुझाव
भोपाल। द प्रैकेडमिक एक्शन रिसर्च इनिशिएटिव फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच लैब (परिमल) और जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय कार्यशाला (MP Cop News) शुरू की गई है। जिसमें जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) विषय पर मंथन किया गया। पुलिस मुख्यालय के आफिसर मेस में आयोजित इस कार्यशाला के पहले दिन की एक्सेस टू जस्टिस, इंक्लूशन एंड एविडेंस बेस्ड प्रेक्टिस थीम के अंतर्गत “जेंडर, लॉ इंफोर्समेंट एंड एविडेंस बेस्ड प्रेक्टिस विषय पर विचार व्यक्त किए गए। कार्यक्रम का पहला दिन महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर केंद्रित रहा।
सत्र के पहले दिन यह पहुंचे थे मेहमान
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने महिला ऊर्जा हेल्प डेस्क एवं संचालन के संबंध में शोधपत्र प्रस्तुत किए। पुलिस मुख्यालय स्थित पुलिस ऑफिसर्स मेस के पारिजात हॉल में आयोजित कार्यशाला के उद्धघाटन सत्र को मुख्य अतिथि विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव श्री बीके द्विवेदी (Shri BK Diwedi) ने संबोधित किया। अध्यक्षता भोपाल पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्र (Commissioner Harinarayanchari Mishra) ने की। अतिथियों में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर और मध्यप्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला, पुलिस मुख्यालय में आईजी दीपिका सूरी, सुष्मा सिंह, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रो.गीता ओबेराॅय, जे-पल व युनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया के प्रोफेसर संदीप सुखंतकर एवं प्रोफेसर गेब्रियला, जे-पल व यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर अक्षय मंगला उपस्थित रहे। संचालन परिमल के सचिव एवं डीसीपी डॉ. विनीत कपूर ने किया। उद्घाटन सत्र का आभार प्रदर्शन एसपी पीटीएस, पचमढ़ी निमिषा पांडे और समापन सत्र में आभार प्रदर्शन मध्यप्रदेश पुलिस अकादमी, भौंरी के डिप्टी डायरेक्टर मलय जैन ने किया।
यह बोले भोपाल पुलिस कमिश्नर
भोपाल पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्र ने कहा कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं। उसका सही भाव तभी सामने आ सकता है जब न्याय का प्रवाह, न्याय का प्रकाश अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। हम लगातार प्रयास तो करते हैं, लेकिन मौलिक चिंतन भी जरूरी है। यह लड़ाई और यात्रा को आगे लेकर जाएगा। हमारे जीवन में तकनीक का जो प्रवेश हुआ है उसने न्याय की लड़ाई को धार दी है, पारदर्शिता दी है। महिलाओं ने जुड़े अपराधों को रोकने में तकनीक का काफी लाभ हुआ है। इसी तरह डायल 100 में जो कॉल आते हैं, हम पाते हैं कि ये किसी विशेष क्षेत्र से होते हैं, हम इनकी मैपिंग कर ऐसे इलाकों को चिह्नित कर सकते हैं और इन पर निगरानी रख सकते हैं। पुलिस अपने संसाधनों और तकनीक का प्रयोग ऐसे स्थानों पर कर सकती है। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। पुलिस कई बार अपनी वैधानिक परिधि से बाहर आकर भी समाज में अपना योगदान देती है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को न्याय दिलाने में पुलिस अपनी इसी परिधि से बाहर आकर कार्य कर रही है। पुलिस ने हेल्प डेस्क स्थापित की हैे और इसका सीधा लाभ नागरिकों को हो रहा है।
कार्यक्रम में अपने दायित्वों का निर्वहन करने के साथ शोध कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रैक्टिसनर्स को सम्मानित किया गया। इस दौरान उत्तरप्रदेश पुलिस (MP Cop News) में एडीजी डॉ जीके गोस्वामी, एमपी पीएचक्यू में प्रशासन आईजी दीपिका सूरी और एआईजी डॉक्टर वीरेंद्र मिश्रा और नई दिल्ली सीबीआई में पदस्थ एसपी प्रवीण मंंडलोई को उनके कार्यों के लिए जीवा सम्मान दिया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव बीके द्विवेदी ने कहा सही न्याय तभी मिल पाता है जब विवेचना अच्छे ढंग से की गई हो। तकनीक के सहयोग से विवेचना की गुणवत्ता बढ़ी है। यही वजह है कि माननीय न्याय पालिकाओं के जो निर्णय आ रहे हैं वो सही और अच्छे आ रहे हैं। आगामी समय में यह और अच्छे होते रहेंगे। चुनौतियां यदि जीवन में नहीं होगी तो हम आगे नहीं बढ़ेंगे। समाज के लोगों को दृष्टिगत रखते हुए जब आप उचित विवेचना करते हैं तो उचित न्याय दिलाना आसान हो जाता है। न्यायालयों में सुनवाई के दौरान कई बार महिलाएं और बच्चे गवाही देने में हिचकिचाते थे, किंतु अदालतों में महिला जजों की संख्या बढ़ने से सुनवाई के दौरान गवाही ठीक से हो रही है। आज कई लॉ यूनिवर्सिटी और कॉलेज से बच्चियां सफल होकर न्याय पालिकाओं में आ रही हैं। मेरा मानना है कि वह दिन दूर नहीं है जब जिला अदालतों में भी महिला जज अधिक संख्या होंगी।
रिसर्च की ओर ध्यान देकर समाज में योगदान दें प्रैक्टिसनर्स
कार्यक्रम में सेवानिवृत्त डीजीपी ऋषि शुक्ला (DGP Rishi Shukla) ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई हम सैकड़ों वर्षों से हम अपने अनुभवों के आधार पर करते आए हैं। पुलिस की कार्रवाई में धीरे-धीरे सुधार हुआ है। क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन मात्र 200 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। उसमें भी हम धीरे-धीरे प्रगति की ओर अग्रसर हैं। साइंटिफिक इंवेस्टीगेशन शामिल होता आया है। पहले कुछ सीमित क्षेत्र तक इंवेस्टीगेशन होता था, इसमें आरोपी और पीड़ित एक ही क्षेत्र के हुआ करते थे। वर्तमान में आरोपी और फरियादी कहीं के भी हो सकते हैं। विगत दो दशकों में महिला अपराध काफी बढ़े हैं। भारत जैसे देश में इंटरनेट की दुनिया में महिलाओं की सुरक्षा बहुत बड़ी चुनौती है। प्रतिदिन नई चुनौतियां सामने आ रही हैं और हम उनका सामना कर रहे हैं। कई पुलिस अधिकारियों ने अपने दायित्वों के साथ रिसर्च में रुचि ली है। समाज में अपने योगदान के लिए उन्होंने कर्तव्यों का निष्ठा से निर्वहन किया। यह आसान नहीं है क्योंकि जिस तेजी से परिवर्तन होता है, उस तेजी से प्रैक्टिसेस में बदलाव संभव नहीं है। वर्तमान परिदृश्य में छोटे विवादों को सुलझाने की अन्य व्यवस्था निष्फल हो चुकी हैं, केवल पुलिस ऐसे विवादों को सुलझा रही है। कार्रवाई के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि आरोपी और पीड़ित दोनों के अधिकारों का हनन ना हो रहा हो, किंतु यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि न्याय की गुहार लगाने वाले का पड़ला भारी हो। मुझे आशा है कि प्रैक्टिसनर्स रिसर्च की ओर अग्रसर होंगे और समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
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