हाईकोर्ट ने प्रहलाद लोधी की सजा पर लगाई थी रोक, दो दिन में सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाएगी एसएलपी
जबलपुर। बीजेपी नेता प्रहलाद लोधी के मामले (BJP Leader Prahlad Lodhi Case) में मध्यप्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Govt) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जाएगी। प्रहलाद लोधी (Prahalad Lodhi) की सजा पर हाईकोर्ट (High Court) के फैसले सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। 7 नवंबर को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने (MP High Court) लोधी की दो साल की सजा पर 7 जनवरी तक रोक लगाते हुए उन्हें जमानत दे दी थी। पवई से विधायक प्रहलाद लोधी को भोपाल ट्रालय कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई थी, जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति (Vidhansabha Speaker NP Prajapati) ने लोधी को अयोग्य घोषित कर दिया था। महाधिवक्ता शशांक शेखर (Sashank Shekhar) ने कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अवकाश याचिका (एसएलपी) दायर करने जा रही है, जिसमें अयोग्य ठहराए गए भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सजा रोक लगाने वाले हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि एसएलपी एक या दो दिन में दायर की जाएगी।
भोपाल की जिला अदालत में जनप्रतिनिधियों के मामले के लिए गठित विशेष अदालत (Special Court) के न्यायाधीश सुरेश सिंह (Justice Suresh Singh) ने पिछले दिनों फैसला (Bhopal Court Judgement) सुनाया था। मामला 28 अगस्त, 2014 का था। जिसमें प्रहलाद लोधी पर बलवे, मारपीट, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने के आरोप साबित हुए थे। इस मामले में लोधी समेत 12 लोगों को जिला अदालत ने दोषी करार देते हुए दो साल की जेल और साढ़े तीन हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। घटना सतना जिले के तहसील रैपुरा की थी। यहां तत्कालीन तहसीलदार आरके वर्मा के साथ रेत (Illegal Sand Transportation) से भरी ट्रैक्टर—ट्राली जब्त करने पर मारपीट की गई थी। 31 अक्टूबर को, लोधी ने भोपाल ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की पवई सीट शून्य घोषित करने की मीडिया से की गई बातचीत के कुछ देर बाद ही भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) ने विरोध जता दिया। इस मामले में जबलपुर से सांसद और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह (BJP MP State President Rakesh Singh) ने बयान जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि विधासनभा अध्यक्ष का यह निर्णय अभिभावक के लिहाज से नहीं है। निर्णय को अलोकतांत्रिक, प्राकृतिक न्याय के खिलाफ बताते हुए कहा गया कि फैसला दलीय राजनीति से हटकर लिया जाना था। फैसला ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह राजनीतिक लिहाज से लिया गया है।