Nagar Nigam Logo Issue : जानिए महापौर ने किस नियमों की उड़ा दी धज्जियां

Share

Nagar Nigam Logo Issueबिना मंजूरी निगम के लोगो से अशोक चिन्ह को हटाया, नेता प्रतिपक्ष समेत अन्य नेताओं ने खड़े किए सवाल

भोपाल। राजधानी के निगम में इन दिनों उसके (Nagar Nigam Logo Issue) लोगों पर घमासान जारी है। महापौर आलोक शर्मा जिद पर अड़े हैं। वहीं नेता प्रतिपक्ष मोहम्मद सगीर इसे जायज ठहरा रहे हैं। लेकिन, दोनों ही नियमों के अनुसार नहीं लड़ रहे। नेता प्रतिपक्ष के पास कानूनी समझ की कमी हैं। वहीं महापौर एक ऐसे कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं जिसके लिए बकायदा नोटिफिकेशन 11 साल पहले जारी किया गया था।

यह कहता है कानून
भारत के प्रतीक चिन्हों को लेकर भारत में बकायदा कानून बना हुआ है। इस कानून को भारत का राज्य संप्रतीक अधिनियम संशोधन 2005 नाम से पुकारा जाता है। इसमें भारत के प्रतीक चिन्हों में शामिल अशोक स्तंभ को लेकर बकायदा व्याख्या दी गई है। इसमें अंतिम संशोधन वर्ष 2007 में हुआ था। इस कानून के तहत अशोक चिन्ह स्तंभ को अंडाकार आकार में ही इस्तेमाल किया जा सकता है। मंत्रालय, विभाग अथवा अन्य किसी का नाम बड़ा हो रहा है तो उसको शार्टकट में लिखा जा सकता है। अशोक स्तंभ हटाने या फिर उसको बदलने के लिए केन्द्र से अनुमति लेना अनिवार्य होगी। इसके बावजूद निगम इस अधिनियम की सुध न लेकर अपने मनमर्जी से बदलाव कर रहा है। यह बदलाव भोपाल महापौर आलोक शर्मा को आगे जाकर महंगा पड़ सकता है।

यह भी पढ़ें : निगम के उस डिप्टी कमिश्नर का कारनामा, टैक्स को कैसे बनाया कमाई का जरिया

क्या है अशोक चिन्ह
भारत के प्रतीक चिन्ह में से प्रमुख अशोक चिह्न को राजकीय प्रतीक माना जाता है। यह सारनाथ में मिली अशोक लाट से लिया है। इसमें चार शेर हैं जो चारों दिशाओं की ओर मुंह किए खड़े हैं। इसके नीचे एक गोल आधार है जिस पर एक हाथी के एक दौड़ता घोड़ा, एक सांड़ और एक सिंह बने हैं। ये गोलाकार आधार खिले हुए उल्टे लटके कमल के रूप में है। हर पशु के बीच में एक धर्म चक्र बना है। इस प्रतीक को 26 जनवरीख् 1950 में अपनाया गया। इसी दिन भारत का संविधान भी बना था। इसलिए यह चिन्ह काफी संवेदनशील माना जाता है। इस प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में अंकित किया जाना अनिवार्य है। यह शब्द मुंडकोपनिषद से लिए गए हैं, जिसका मतलब होता है केवल सच्चाई की विजय होती है।

यह भी पढ़ें:   Bhopal Crime: महर्षि हॉस्टल के पांच कमरों के ताले टूटे

निगम का इतिहास
भोपाल को वर्ष 1907 में राज्य का दर्जा मिला था। इसकी पहली नगरीय निकाय को मजलिस ए इतेजामिया कहते थे। पहले निगम की सीमा वर्ष 1956 तक काफी छोटी हुआ करती थी। इसका विस्तार हुआ और 1975 में सीमा बढ़ाकर 71 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा की गई। अब यह सीमा 285 वर्ग किलोमीटर हो गई है। पहले निकाय को 20 सदस्यीय समिति संभालती थी। जिसके अध्यक्ष अब्दुल करीब बाबू मियां और उपाध्यक्ष दीनदयाल हुआ करते थे। भोपाल म्यूनिसिपल बोर्ड से इसे म्यूनिसिपल कौंसिल बनाया गया। फिर 1983 में कौंसिल से हटाकर नगर निगम बनाया गया। उस वक्त छह वार्ड हुआ करते थे। पहले महापौर शहर के आरके बिसारिया बने थे। अभी 85 वार्ड हैं और महापौर आलोक शर्मा हैं।

यह भी पढ़ें : चोर—चोर मौसेरे भाई की कहावत को दो पार्टी के नेता कैसे कर रहे थे चरितार्थ

Nagar Nigam Logo Issue
निगम का वह लोगो जिसको बदलने शहर में नेताओं के बीच घमासान मचा है

क्या खासियत थी लोगो की
भोपाल में नवाबों की पहली रियासत थी। इस कारण हैदराबाद निजाम का भी दखल रहता था। जब बोर्ड बनाया गया था उस वक्त दो मछलियों के साथ (Nagar Nigam Logo Issue) लोगो बनाया गया था। मछली को स्वच्छता का प्रतीक भी माना जाता है। इसके बाद वर्ष 1994 में तत्कालीन महापौर उमाशंकर गुप्ता ने इस लोगो को पहली बार बदलवाया। उन्होंने पुराने लोगो के साथ-साथ सांची स्तूप और अशोक स्तंभ को जोड़ा गया था। अब इन सबको हटाकर राजा भोज की प्रतिमा का प्रतीक लगाया गया है।

मामला मंत्रालय पहुंचा
इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। निगम कमिश्रर बी.विजय दत्ता मंत्रालय तलब कर लिए गए। महापौर आलोक शर्मा से प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया गया। लेकिन, वे उपलब्ध नहीं हो सके। वहीं नेता प्रतिपक्ष मोहम्मद सगीर ने कहा कि संवैधानिक नियमों को ताक पर रखकर भोपाल शहर की पहचान माने जाने वाले (Nagar Nigam Logo Issue) लोगो को बदला जा रहा है। इसके अलावा विधायक आरिफ मसूद ने भी निगम कमिश्रर को चेतावनी देते हुए कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। सरकार इस मसले पर विचार करेगी और लोगो को बदले जाने के निर्णय को बदला जाएगा।

यह भी पढ़ें:   Bhopal News: यूआरसी कंस्ट्रक्शन कंपनी का ड्रायवर गिरफ्तार
Don`t copy text!