ट्रांसपैरेंसी के नाम पर सिर्फ दिखावा, अब तक कोई एक्शन प्लान मैदान में नहीं लाया गया, दो साल के भीतर आधा दर्जन से अधिक आरोप
भोपाल। आम तौर पर पुलिस (Bhopal crime branch) की छवि पब्लिक में भ्रष्ट और नागरिकों को परेशान करने वाले महकमे के रूप में है। यह बात किसी हद तक सच भी है, ऐसे तमाम उदाहरण सामने आते भी रहे हैं। जब पुलिस की कार्यशैली और बनावट पर सवालिया निशान खड़े होते रहे हैं। लेकिन, ज्यादातर आरोप सुने-सुनाए या फिर धारणा के आधार पर भी लगते हैं। द क्राइम इन्फो (thecrimeinfo.com) ने अपनी तहकीकात में पाया कि पुलिस के बारे में आम धारणा यूं ही नहीं बन गई। राजधानी की (Bhopal crime branch) क्राइम ब्रांच अब “कमाई ब्रांच” बनती दिखाई दे रही है। यहां हम वे चार कहानियां बता रहे हैं जिनसे यह साबित होता है कि भोपाल की क्राइम ब्रांच कैसे कमाई का जरिया बन गई है और यहां ट्रांसपैरेंसी के नाम पर महज दिखावा किया जा रहा है। दो साल के भीतर आधा दर्जन से अधिक आरोपों से घिरी क्राइम ब्रांच की ओर से कोई एक्शन प्लान जमीन पर नहीं उतारा गया है।
पहली कहानी : सटोरियों को छोडऩे मांगी रकम
क्राइम ब्रांच (Bhopal crime branch) ने अगस्त, 2017 में एक ऑन लाइन चलने वाला सट्टा पकड़ा था। इसके आरोपियों में पुलिसकर्मी नीलम विश्वकर्मा का रिश्तेदार भी फंस गया। उसने क्राइम ब्रांच के अफसरों से संपर्क साधा। उससे भेंट चढ़ाने की मांग की गई। विभागीय होने के बावजूद कोई रियायत न देते हुए मोटी रकम मांगी गई। इस बात की रिकॉर्डिंग कर ली गई। नीलम उस वक्त ईओडब्ल्यू में तैनात थी। मामला काफी दिन तक दबा रहा। इसी बीच रिश्वत मांगने का ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया। यह सुनने और भोपाल पुलिस की फजीहत होने के बाद टीआई नीरज वर्मा समेत अन्य को लाइन हाजिर कर दिया गया।
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दूसरी कहानी : गांजे में जब्ती दिखाने से बचने यह किया
क्राइम ब्रांच ने मार्च, 2017 में सर्वधर्म पुलिया के नजदीक एक स्कार्पियो पकड़ी थी। इसमें लगभग तेरह किलो गांजा बरामद हुआ था। इस मामले में यावेंद्र प्रताप सिंह और चंद्र प्रकाश सिंह दांगी को गिरफ्तार किया गया था। आरोपी यावेंद्र प्रदेश के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री बिसाहू लाल का बेटा है। क्राइम ब्रांच (Bhopal crime branch) ने इस मामले में तोड़ करने के लिए एक बड़ा षडयंत्र रचा। जिस स्कार्पियो को जब्त किया गया था उसका नंबर क्राइम ब्रांच में बदला गया। वह इसलिए क्योंकि वाहन एक केन्द्रीय कर्मचारी का था जिसमें वह भी फंस रहा था। इस काम के बदले में छह लाख रुपए दिए गए थे। मामला मीडिया में भी आया लेकिन क्राइम ब्रांच देखने वाले जिम्मेदार अफसरों ने इंजन या फिर चेचिस नंबर देखकर भी वास्तविक वाहन स्वामी का पता ही नहीं लगाया।
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तीसरी कहानी : क्राइम ब्रांच के कर्मचारियों ने लूटा अड्डा
क्राइम ब्रांच अपने एक अधिकार का जमकर दुरूपयोग करती है। उसे शहर में कहीं भी दबिश देने का अधिकार है। वह किसी थाने को सूचना भी नहीं देती। इस कारण कोई अफसर सवाल-जवाब भी नहीं करता। इसका ही फायदा उठाकर क्राइम ब्रांच के कर्मचारियों ने एक जुए के अड्डे पर दबिश देकर उसे लूट लिया था। कर्मचारियों (Bhopal crime branch) की यह करतूत अफसरों तक पहुंच गई। जिसके बाद गुपचुप एक जांच कमेटी डीएसपी क्राइम की अगुवाई में बनाई गई। रिपोर्ट मिलने के बाद डीआईजी सिटी ने पांच पुलिस कर्मचारियों को लाइन हाजिर कर दिया था। घटना को छुपाने के लिए अफसरों ने तर्क दिया कि यह कर्मचारी लंबे अरसे से क्राइम ब्रांच में जमे हुए थे। इसलिए प्रशासनिक कारणों के चलते हटाया गया है।
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चौथी कहानी : रंगदारी दिखाकर ऐंठ ली रकम
इस चौथी कहानी का पीडि़त ढाबा मालिक मुकेश पठारिया है। वह खजूरी सड़क में पंजाब ढाबा नाम से कारोबार चलाता है। मामले की शिकायत 4 जून, 2019 को आईजी भोपाल जयदीप प्रसाद से की गई। व्यापारी ने बताया कि एक दिन पहले रात आठ बजे बोलेरो से सिविल ड्रेस में 10 लोग सादी वर्दी में थे। वे लोग मेरे कर्मचारी राहुल नागर को पकड़ ले गए। ग्राहकों को भगा दिया गया। मुझे छह पेटी शराब के साथ झूठे केस (Bhopal crime branch) में फंसाने की धमकी दी गई। मुझसे जो बातें कर रहा था वह महेश धाकड़ नाम बता रहा था। प्रकरण से बदलने के एवज में मुझसे पहले दो लाख रुपए मांगे। फिर 60 हजार रुपए लिए गए।
क्या कहते हैं अफसर
इस मामले में एएसपी क्राइम निश्चल झारिया ने बताया कि उनके पास जांच के लिए कोई आवेदन नहीं आया है। शिकायत आला अधिकारियों के पास की है अथवा किसी दूसरी मंशा से सोशल मीडिया में वायरल की है यह बात शिकायतकर्ता ही बेहतर बता सकते हैं।