TCI News Impact: खबर का असर पर पूरे एमपी में दवा की चल रही कमी, केवल एक जिले के अधिकारी को नोटिस दिलाकर एसटीओ ने अपनी जान बचाई, दवा की कमी के बावजूद सब नेशन सर्टिफिकेट का भी शुरू कर दिया गया काम
वीडियो में सुनिए वह पूरी कहानी जिस पर मानवाधिकार आयोग ने थमाया है नोटिस
भोपाल। पूरे मध्यप्रदेश के सरकारी भंडार से टीबी जैसे रोग की दवा नहीं हैं। यह बात द क्राइम इंफो ने पिछले दिनों प्रमुखता के साथ प्रकाशित की थी। इस समाचार को पीपुल्स समाचार में संवाददाता प्रवीण श्रीवास्तव ने भी प्रमुखता से प्रकाशित किया। अब इस समस्या को लेकर मानवाधिकार आयोग ने जिले के क्षय अधिकारी से पूरे घटनाक्रम पर रिपोर्ट (TCI News Impact) मांग ली है। हालांकि आयोग पूरे घटनाक्रम से वाकिफ नहीं हैं। दरअसल, इस दवा खरीदी और कमी को लेकर मध्यप्रदेश में एनएचएम का एसटीओ जिम्मेदार होता है। इधर, दवा की कमी के बावजूद प्रदेश में सब नेशनल सर्टिफिकेशन फॉर टीबी फ्री डिस्ट्रिक्ट के सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है।
जवाब देने की बजाय समाचार देने पर आया आक्रोश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 2025 को लक्ष्य बनाकर टीबी हारेगा देश जीतेगा नाम से अभियान चलाया है। इसी अभियान के तहत सब नेशनल सर्टिफिकेशन फॉर टीबी का सर्वे किया जाता है। यह चार कैटेगरी ब्रांज, सिल्वर, गोल्ड के अलावा टीबी फ्री स्टेट है। ब्रांज वाले जिले अथवा प्रदेश को 25 लाख, फिर सिल्वर में 50 लाख, गोल्ड श्रेणी में 80 लाख और टीबी फ्री स्टेट होने पर एक करोड़ रूपए का पुरूस्कार दिया जाता है। यह टीबी रोग के क्रमश 20 से लेकर 80 फीसदी कम होने पर दिया जाता है। इसी पुरूस्कार की श्रेणी में 2020 में बैतूल (Betul) और 2021 में उज्जैन (Ujjain) को ब्रांज का अवार्ड मिला है। जबकि 2021 में खरगोन (Kharogone) को गोल्ड का पुरस्कार मिला है। इन्हीं विषयों को लेकर एसटीओ वर्षा राय (Dr Varsha Rai) से प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया गया। जब उनसे पूछा गया कि प्रदेश में पायराजिनामाइट और सिंफाम्पसिन नाम की दवा नहीं है तो सर्वे की सफलता पर सवाल खड़े होते हैं। इसके बाद वे नाराज हो गईं। उन्होंने कार्यालय में आकर बातचीत करने के लिए बोला। जबकि हम उनसे इसी विषय पर बातचीत करने के लिए समय मांग रहे थे। यह प्रयास हमारी तरफ से एक सप्ताह से किया जा रहा है। हमारे पास इसके प्रमाण भी मौजूद हैं।
यह होता है सर्वे का नियम इसलिए एमपी का पिछड़ना तय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi Dream Project) के टीबी मुक्त भारत को ड्रीम मिशन केेंद्रीय स्वास्थ्य विभाग मानता है। इसलिए करोड़ों रूपए का बजट टीबी निदानी प्रोग्राम के लिए दिया गया है। इसमें निगरानी भी उतनी ही की जा रही है। लेकिन, मैदान में निगरानी की प्रक्रिया को अंगूठा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल, भारत स्तर पर सर्वे के परिणाम पर चार तरह के अवार्ड मिलते हैं। इसके लिए ही सबनेशन सर्वे का काम होता है। इसमें टीम ड्रग सेल, दवा की खपत, टीबी स्कोर एनएनटी यानि परीक्षण रिपोर्ट के आंकड़े मिलाती है। प्रत्येक श्रेणी में परीक्षण के लिए नौ से अधिक उसके भीतर कैटेगरी होती है। जिसमें डॉक्टर से लेकर टीबी मरीज और उसके आस—पास रहने वालों से बातचीत भी शामिल है। प्रदेश में पायराजिनामाइट और रिफाम्पिसन दवा (TCI News Impact) नहीं हैं। यह परिजनों से पता चलेगा। वहीं एमपी में लगभग एक पखवाड़े एनटीईपी का स्टाफ स्ट्राइक रहा। इस कारण कई पैरामीटर के लिए जरूरी काम अटक गए थे।
टीबी रोग निदान के लिए विवादित चेहरे का चुनाव
इतने भारी भरकम बजट वाले टीबी निदान प्रोग्राम के लिए एसटीओ का चयन ही सरकार को कठघरे में लाता है। दरअसल, यह प्रोजेक्ट जिसको पीएमओ सीधे मॉनिटर करता है वहां दो महीने से बंदरबाट चल रही है। प्रदेश सरकार की तरफ से अब तक कोई सक्रियता भी दिखाई नहीं गई। इस प्रोग्राम के लिए एसटीओ डॉक्टर वर्षा राय बनाई गई है। जिन्हें जुलाई, 2019 में टीकमगढ़ जिले के प्रभारी सीएमएचओ पद से हटाया गया था। उनके खिलाफ वहां के विधायक राकेश गिरी ने मोर्चा (TCI News Impact) खोल रखा था। राय पर आरोप था कि उन्होंने अपने पद का गलत इस्तेमाल करके पति के 10 से 100 बिस्तर के अस्पताल को अनुमति दी। इसी संबंध में सत्र के दौरान सवाल सदन में पूछा जाता उससे पहले जिले से डॉक्टर वर्षा राय को चलता कर दिया गया था।
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