नर्मदा बांध से प्रभावित गांव के नागरिकों ने राजधानी में डाला डेरा, छावनी में तब्दील संवेदनशील मैदामिल हिल्स, ट्रैफिक किया गया डायवर्ट, ग्रामीण उठने के लिए राजी नहीं
भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) में नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Aandolan) के सैंकड़ों कार्यकर्ताओं (Volunteer) ने ग्रामीणों के साथ नर्मदा भवन (Narmada Bhavan) के सामने डेरा (NBA Protest) डाल दिया। इतनी भारी संख्या में पहुंची भीड़ से पुलिस और इंटेलीजेंस के अफसर भी अनजान थे। आनन—फानन में ट्रैफिक डायवर्ट से लेकर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। ग्रामीणों की मांग है कि वह अपना हक लेकर ही यहां से जाएंगे। ग्रामीणों ने नर्मदा भवन के मैन गेट के आगे बिस्तर लगा लिया है।
जानकारी के अनुसार नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेताओं और प्रशासन के बीच बातचीत का दौर जारी था। लेकिन, शनिवार रात आठ बजे तक किसी तरह का निष्कर्ष नहीं निकल सका था। यह लोग सामाजिक कार्यकर्ता (Social Activist) मेधा पाटकर (Medha Patkar) के नेतृत्व में भोपाल पहुंचे थे। इससे पहले सितंबर, 2019 में नौ दिनों तक लगातार भूख हड़ताल (Hunger Strike) पर मेधा पाटकर रही है। उनकी भूख हड़ताल पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार (SC Behar) ने समाप्त कराई थी। अब मेधा पाटकर अकेले नहीं प्रभावितों के साथ मैदान पर उतर आई है। भीड़ और संख्या बल को देखते हुए नर्मदा भवन के नजदीक भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। बैरीकेडिंग करके यातायात को डायवर्ट भी किया गया है। इधर, शनिवार को अवकाश रहने के बावजूद नर्मदा विकास प्राधिकरण के सारे अफसर कार्यालय पहुंच गए। इन अफसरों को भी नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता बाहर नहीं निकलने दे रहे थे।
ग्रामीणों ने बताया कि केन्द्र सरकार ने नर्मदा पर बांध बनाया था। इस बांध की वजह से तीन राज्य मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र (Maharashtra) और गुजरात (Gujrat) के लाखों परिवार प्रभावित हो गए हैं। उनकी खेत, जमीन, मकान, प्लॉट से लेकर स्कूल, अस्पताल डूब में चले गए हैं। रोजगार से लेकर जीवन के लिए ग्रामीण संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने अब तक कोई संतोषजनक मुआवजा नहीं दिया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेताओं का आरोप था कि मध्यप्रदेश के 20 हजार परिवार इससे प्रभावित हैं। ग्रामीण 1987 से लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। हर बार आश्वासन का झुनझुना उन्हें पकड़ा दिया जाता है। ग्रामीणों की मांग है कि जमीन के बदले जमीन, मकान के बदले मकान दिया जाए। इसके अलावा उनके बच्चे जिनकी शिक्षा प्रभावित हो गई है उसका भी भुगतान किया जाए। इसी योजना की वजह से करीब 600 गांव प्रभावित हैं। लेकिन, सरकार 192 गांव बता रही है। इस संबंध में नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट में केस भी लड़ रहे हैं।
किसान आंदोलन की यादें ताजा
शनिवार को जिस अंदाज में नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता भोपाल शहर में ग्रामीणों के साथ दाखिल हुए उसने किसान आंदोलन की याद दिला दी। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान हजारों किसान अपनी मांग को लेकर मुख्यमंत्री निवास के बाहर धरने पर बैठ गए थे। इस धरने ने तत्कालीन भाजपा सरकार की जमकर किरकिरी कराई थी। कुछ इसी अंदाज में नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता शहर में दाखिल हो गए। इतनी संख्या में लोग शहर में कब आए यह गुप्तचर एजेंसियों को भी इसकी भनक नहीं लगी।