ई-टेंडर घोटाला : घोटाला अरबों रुपयों पर पहुंचा, जांच के दायरे में साल बढ़ाए गए

Share

ओस्मो कंपनी के संचालकों की जमानत पर नहीं हो सकी सुनवाई, एनआईसी से भी होगी पूछताछ

भोपाल। मध्य प्रदेश के बहु चर्चित ई-टेंडर घोटाला अब अरबों रुपए में पहुंच गया है। दरअसल, ईओडब्ल्यू ने जांच के लिए २०१२ से हुए सभी टेंडरों को लेने का निर्णय लिया है। इधर, एनआईसी के अफसरों से भी ईओडब्ल्यू पूछताछ करने की तैयारी में हैं।

जानकारी के अनुसार आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने तीन सदस्यीय कमेटी को लेकर तफ्तीश की थी। यह कमेटी आईएएस हरिरंजन राव की निगरानी में काम कर रही थी। यह कमेटी २०१२ में बनाई गई थी। इसमें एमपीएसईडीसी के तत्कालीन ओएसडी नंद कुमार ब्रह्मे, विशाल बांगड़, विपिन गुप्ता थे। इसी मामले पर आईएएस मनीष रस्तोगी ईओडब्ल्यू मुख्यालय पहुंचे थे। उनसे डीजी ईओडब्ल्यू केएन तिवारी ने टेंडर घोटाले पर तकनीकी बिन्दुओं पर बातचीत की थी।

अर्जी पर गुरुवार को सुनवाई
इधर, आरोपियों में शामिल मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रोनिक्स डेव्हल्पमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड (एमपीएसईडीसी) के ओएसडी रहे नंद कुमार ब्रह्मे की अर्जी खारिज होने के बाद वे हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं। इधर, ओस्मो कंपनी के संचालक विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर और वरूण चतुर्वेदी की तरफ से न्यायाधीश संजीव पांडे की अदालत में जमानत अर्जी लगाई गई थी। सुनवाई बुधवार को नहीं हो सकी। अब यह सुनवाई गुरूवार को होगी।

एंट्रेस-टीसीएस कंपनी की मुश्किलें
सरकार ने ई-प्रोक्योरमेंट को लेकर एक कमेटी बनाई थी। कमेटी २०१२ में बनी थी। कमेटी ने कर्नाटक राज्य का दौरा किया था। उसकी भी रिपोर्ट उन्होंने सबमिट नहीं की थी। इधर, ईओडब्ल्यू ने मंगलवार को बैंगलुरू की एंट्रेस कंपनी के छह अफसरों से पूछताछ की थी। जिसमें यह बात निकलकर सामने आ रही है कि तत्कालीन सरकार ने प्रदेश की सरकारी एजेंसी एनआईसी को दरकिनार करके टीसीएस और एंट्रेस कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए गड़बड़ी की गई।

यह भी पढ़ें:   Bhopal News: महिला की संदिग्ध परिस्थिति में मौत

यह भी पढ़ें : भोपाल : कॉलेज बस से छात्रों को निकाल—निकालकर पीटा, देखें वीडियो

क्या है मामला
ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल, 2019 को ई-टेंडरिंग घोटाले के मामले में प्रकरण दर्ज किया था। इसमें जांच के लिए प्राथमिकी जून, 2018 में दर्ज हुई थी। जांच कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम नई दिल्ली से कराई गई। जल निगम के तीन टेंडर, लोक निर्माण विभाग के दो टेंडर, सडक़ विकास निगम के एक टेंडर, लोक निर्माण विभाग की पीआईयू का एक टेंडर ऐसे करके कुल नौ ई-टेंडरों में गड़बड़ी करना पाया गया था।

कौन है आरोपी
इस मामले में हैदराबाद की कंपनी मैसर्स जीवीपीआर लिमिटेड, मैसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड, मुंबई की कंपनियां दी ह्यूम पाइप लिमिटेड, मैसर्स जेएमसी लिमिटेड, बड़ौदा की कंपनी सोरठिया बेलजी प्रायवेट लिमिटेड, मैसर्स माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड और भोपाल की कंस्टक्शन कंपनी मैसर्स रामकुमार नरवानी लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज है। अधिकांश कंपनियों के पते पर आधा दर्जन से अधिक कंपनियां भी चल रही है। इसके अलावा साफ्टवेयर बनाने वाली ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन प्रायवेट लिमिटेड, एमपी एसईडीसी, एन्टेस प्रायवेट लिमिटेड और बैगलोर की टीसीएस कंपनी को भी आरोपी बनाया गया है।

यह भी पढ़ें : भोपाल : लचर लोकतंत्र को बयां करती मार्को की कहानी

अब तक क्या
ईओडब्ल्यू ने इस मामले में सबसे पहले 11 अप्रैल, 2019 को भोपाल के मानसरोवर में दबिश दी। यहां से तीन आरोपियों विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर और वरूण चतुर्वेदी को हिरासत में लिया। तीनों आरोपियों को 12 अप्रैल को अदालत में पेश करके 15 अप्रैल तक रिमांड पर लिया गया। इसी बीच 14 अप्रैल को नंदकुमार को गिरफ्तार किया गया। जिसे ओस्मो कंपनी के तीनों आरोपियों के साथ 15 अप्रैल को जिला अदालत में न्यायाधीश भगवत प्रसाद पांडे की अदालत में पेश किया गया। यहां से आरोपियों से अनुसंधान से जुड़ी जानकारियों के संबंध में पूछताछ करने के लिए 18 अप्रैल तक रिमांड पर लिया गया। यह रिमांड खत्म होने के बाद ईओडब्ल्यू ने संजीव पांडे की अदालत में आरोपियों को पेश किया। यहां से पहले गिरफ्तार तीन आरोपियों को तीसरी बार पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया। इसी तरह नंद कुमार को दूसरी बार पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया। चारों आरोपियों की रिमांड २२ अप्रैल को समाप्त हो गई। जिसके बाद उन्हें ६ मई तक के लिए न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।

यह भी पढ़ें:   Madhya Pradesh Rape Case: योगा ​टीचर एमएमएस ​दिखाकर करता था संभोग
Don`t copy text!